तारिक कासमी को उम्रकैद का फैसला तथ्यों से परे: रिहाई मंच


गोरखपुर सीरियल ब्लॉस्ट मामले में आजमगढ़ के तारिक कासमी को आजीवन कारावास के फैसले पर रिहाई मंच ने कहा कि, यह फैसला तथ्यों से परे है. मंच ने कहा कि, इससे पहले भी निचली अदालतों द्वारा आतंकवाद के विभिन्न मामलों में सजा सुनाए जाने के बाद ऊपरी अदालतों ने फैसले को पलट दिया और बेगुनाह बरी किए गए. अक्षरधाम मामला इसकी मिसाल है जिसमें फांसी की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि 25 मई 2007 को गोरखपुर में हुई घटना के महीनों बाद 12 दिसंबर 2007 को तारिक़ का यूपी एसटीएफ ने आजमगढ़ से अपहरण किया था. इस बात को यूपी सरकार द्वारा गठित आरडी निमेष आयोग ने भी सही ठहराते हुए दोषी पुलिस वालों के खिलाफ करवाई की सिफारिश की थी. 19 सितंबर 2008 बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर के बाद पुलिस ने नई थ्योरी लाई और कहा कि गोरखपुर सीरियल ब्लास्ट इंडियन मुजाहिदीन ने किया था. जबकि पहले महीनों तक किसने किया इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया बाद में इसका ज़िम्मेदार हूजी को बताया गया फिर आईएम को. इस तरह देखें तो पुलिस की थ्योरी में भारी अंतर्विरोध है.

इससे पहले भी लखनऊ में तारिक कासमी के मामले में ट्रायल पूरा होने से पहले ही सजा सुना दी गई थी. इससे साफ होता है कि तारिक कासमी को लेकर एक पूर्वाग्रह है. यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि यूपी में आतंकवाद के मामलों में झूठे फसाए जा रहे युवाओं को लेकर जो आंदोलन हुए उसकी शुरुआत तारिक कासमी के मामले से हुई.

गौरतलब है कि मायावती सरकार ने उस दौरान यूपी में हुई विभिन्न आतंकी घटनाओं की सीबीआई जांच की बात कही थी लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार ने नहीं करवाया. यहां गौर करने की बात है कि इसी दौरान विभिन्न हिंदुत्वादी संगठनों के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर आतंकवाद के विभिन्न मामलों में आरोप लगे और गिरफ्तारियां हुई. वहीं सपा सरकार में गोरखपुर मामले में तारिक़ का मुकदमा वापस ले लिया था.

राजीव यादव ने कहा कि रिहाई मंच ने जांच एजेंसियों पर सवाल उठाते हुए विवेचना की धांधलियों को परत दर परत खोलती गोरखपुर सीरियल ब्लास्ट पर रिपोर्ट लाई थी. जिसमें कहा गया कि गोरखपुर सीरियल ब्लास्ट मामले में तारिक कासमी समेत सैफ, सलमान, मिर्जा शादाब बेग को झूठी कहानी और झूठे साक्ष्य गढ़कर फसाया गया जिसका मकसद उन हिन्दुत्वादी सांप्रदायिक तत्वों को बचाना था, जो इस पूरे मामले के असल अभियुक्त हैं.

इस रिपोर्ट में कहा गया है-

कोई भी ऐसा चश्मदीद गवाह नहीं है जिसने किसी भी व्यक्ति को गोरखपुर के तीनों स्थलों पर साइकिलें खड़ी करते हुए और उसने उन्हीं साइकिलों से विस्फोट होते हुए देखा था. पुलिस द्वारा घटना के बाद जो स्केच जारी किए गए और जिनका प्रकाशन हुआ वो किसकी चश्मदीद गवाही और शिनाख्त के बाद बनाए गए थे, वो किसके थे यह मुकदमें के किसी भी रिकार्ड से साबित नहीं है. इसी तरह इस मामले के अहम गवाह मरहूम मौलाना अफजालुल हक का बयान कि तारिक कासमी 21 मई की शाम को उनके मदरसे में दो अन्य के साथ साइकिलें लेकर आया था, भी विश्वसनीय नहीं है. राजू उर्फ मुख्तार जिसको सैफ बताया जा रहा है और छोटू जिसको सलमान बताया जा रहा है, इस पूरे मामले में पुलिस द्वारा दो गढ़े गए व्यक्ति हैं. पहले आफताब आलम अंसारी को राजू उर्फ मुख्तार बताया जा रहा था परंन्तु लखनऊ न्यायालय द्वारा यह नहीं माना गया और आफताब को बरी कर दिया गया.

वाराणसी कचहरी विस्फोट के मामले में सैफ को अभियुक्त बनाया गया था और मुकदमे में उस पर यह आरोप था कि उसी ने राजू उर्फ मुख्तार नाम रखकर धमाके किए परन्तु विवेचना के दौरान ही यह कहानी दम तोड़ गई और सबूत के अभाव में विवेचक द्वारा अन्तर्गत धारा 169 सैफ को बरी कर दिया गया. तारिक कासमी जो कथित इकबालिया बयान दिनांक 22 दिसंबर 2007 पुलिस बताती है, वह निमेष आयोग द्वारा फर्जी करार दिया जा चुका है.

इस पूरे मामले में कोई सीधा और परिस्थितिजन्य साक्ष्य पुलिस के पास नहीं. धमाके कैसे हुए और इसकी किस तरह तैयारियां की गईं इस संबनन्ध में जो तारिक और सलमान के बयान पुलिस रिकार्ड में हैं वो सभी परस्पर विरोधी हैं. तारिक कासमी सलमान और सैफ की कोई शिनाख्त परेड तथाकथित गवाहों के सामने नहीं कराई गई बल्कि तारिक कासमी का फोटो दिखाकर साइकिल विक्रेताओं के झूठे बयान लिख लिए गए.


रिहाई मंच द्वारा जारी


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