बहराइच का दोहरा हत्याकांड: मॉब लिंचिंग मानना तो दूर, एक में FIR नदारद तो दूसरे में धारा 302 गायब


बहराइच के नानपारा से पिछले दिनों मॉब लिंचिंग की एक खबर आयी थी। सामाजिक संगठन रिहाई मंच ने इस घटना की तफ्तीश की है। साथ ही कुछ दिन पहले हैदर अली नाम के मारे गये युवक के मामले में भी संगठन ने पड़ताल की है जो दिल दहलाने वाली है।

पड़ताल के मुताबिक 19 अप्रैल 2020 को नानपारा के घसियारन टोला के मोहम्मद रजा की मौत के मामले के साथ ही दस दिन पहले 9 अप्रैल को कुछ मुस्लिम युवक जब खेत में भैंस चरा रहे थे तो एक व्यक्ति हैदर अली को लोगों ने घेर कर मार डाला था। मोहम्मद रजा के मामले में जहां अब तक एफआइआर दर्ज नहीं की गयी वहीं स्थानीय विधायक के दबाव में हैदर अली हत्या की घटना में 302 के तहत मुकदमा दर्ज न होने का परिजनों का आरोप है।

बहराइच पुलिस ने एसपी के वीडियो के हवाले से कहा है कि नानपारा के घसियारन टोला मोहल्ले में मोहम्मद रजा, पुत्र खलील अहमद का शव पाया गया था। शव का पोस्टमार्टम कराया गया है, मौत का कारण स्पष्ट न होने के कारण विसरा सुरक्षित रखा गया है। वीडियो में एसपी ने कहा है कि परिजनों की तरफ से कोई तहरीर प्राप्त नहीं हुई। अगर प्राप्त होती है तो जांच कर विधिक कार्रवाई की जाएगी। वहीं मीडिया में आया कि रजा भोजन की तलाश में निकला था, जिन लोगों ने उसे मारा उन्होंने उसे बिजली का शॉक भी दिया।

मोहम्मद रज़ा

बहराइच एसपी कहते हैं कि उन्हें कोई तहरीर प्राप्त नहीं हुई जबकि मोहम्मद रजा के परिजनों से एक तहरीर प्रभारी निरीक्षक कोतवाली नानपारा के नाम से मंच को प्राप्त हुई है। इसमें उनकी मां नाजमा बेगम कहती हैं कि उनका बेटा रजा सुबह घर से बिना बताए चला गया था। ढूंढ़ने पर उसकी लाश नई बस्ती राढ़न टोला के खाली पड़े मैदान में मिली। मृत्यु का सही कारण जानने के लिए उन्होंने पोस्टमार्टम कराने की मांग भी की।

मंच के महासचिव राजीव यादव के मुताबिक प्रथम दृष्टया रजा हत्याकांड की टाइमिंग पर गौर किया जाय तो वह पूरी कानून व्यवस्था पर सवाल उठा देती है। दिन में तकरीबन तीन बजे के उसको मारने-पीटने की बात सामने आयी और देर शाम साढ़े सात-आठ बजे के करीब जब उसके परिजन घटनास्थल पर पहुंचते हैं तो उसके बाद आधिकारिक तौर पर पुलिस आती है जबकि उसके परिजनों के मुताबिक पुलिस चौकी मात्र सौ मीटर की दूरी पर है। सवाल यह है कि आखिर पुलिस को क्या इस घटना की जानकारी नहीं मिली?

लॉकडाउन के समय में कैसे वह शोरगुल को नहीं सुन सकी? जबकि जो वीडियो इस घटना को लेकर सोशल मीडिया में आया उसमें दिन के उजाले में पुलिस के आने की बात व्यक्ति कह रहे हैं। वहीं रजा के परिजन तो यह भी कह रहे हैं कि लॉकडाउन में पुलिस के डर से वह सड़क से भागा था जिसके बाद उन लोगों के हाथों आया जिन्होंने उसे मारा-पीटा और उस बीच पुलिस आयी भी और उसने भी मारा पीटा और बाद में उन लोगों से उसे छोड़ने की भी बात कही। क्या ऐसा तो नहीं कि बाद में उग्र भीड़ के सामने पुलिस ने आत्मसमर्पण कर दिया। क्या उसने अपने अपराध और अक्षमता को छुपाने के लिए ही अब तक एफआइआर दर्ज नहीं किया। क्या वह जानती है कि जांच की दिशा में आगे बढ़ने पर रजा हत्याकांड में उसकी संलिप्तता आ सकती है।

यह सवाल भी अहम है कि पुलिस सोशल मीडिया पर सूचनाओं को प्रसारित होने को लेकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का जिक्र तो कर रही है पर उस रिपोर्ट को परिजनों को आखिर क्यों नहीं दे रही जबकि पुलिस मजबूती से कह रही है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण स्पष्ट न होने के कारण विसरा सुरक्षित रखा गया है।

सामाजिक कार्यकर्ता अधिवक्ता असद हयात के मुताबिक पुलिस अधीक्षक का यह कथन है कि परिजनों के अनुरोध पर पोस्टमार्टम कराया गया है परंतु उन्होंने कोई तहरीर लिखकर नहीं दी जबकि मृतक की मां ने जो एक प्रार्थना पत्र की प्रति मीडिया को दी है उसमें लिखा है कि मृतक घर से गया था और अब उसकी लाश मिली है इसलिए पोस्टमार्टम कराया जाए। प्रथम सूचना रिपोर्ट के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह लिखित में हो वह मौखिक भी हो सकती है। इसलिए अगर कोई मृत्यु का कारण ज्ञात करने के लिए पोस्टमार्टम कराने का ‘अनुरोध’ कर रहा है तो यह लिखित एफआइआर की जगह मौखिक एफआइआर की श्रेणी में आएगा। विधि का प्रश्न यह है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट इनसाइक्लोपीडिया नहीं होती बल्कि वह किसी अपराध होने की सूचना मात्र होती है।

जो तहरीर परिजनों की ओर से दी गयी उसमें नाजमा बेगम ने लिखा है कि उनका लड़का रजा सुबह घर से गया था और अब उसकी लाश मिली है लिहाजा पोस्टमार्टम कराया जाय और पुलिस ने इसी के आधार पर पोस्टमार्टम करा दिया। विधि के अनुसार यही प्रथम सूचना रिपोर्ट मानी जाएगी क्योंकि उसमें लड़के की लाश मिलने का उल्लेख है जिसमें हत्या होने का पता चलता है। इसलिए पुलिस अधीक्षक का यह कथन गलत है कि परिजनों ने कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कोई प्रार्थना पत्र नहीं दिया है। नाजमा बेगम ने अपने प्रार्थना पत्र में लड़के के घर से जाने का उल्लेख किया था जो लाश में परिवर्तित हो गया जिसका कारण जानने के लिए पोस्टमार्टम कराने की प्रार्थना की गयी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट जांच का हिस्सा होती है जिसका हिस्सा पंचायतनामा भी होता है जिसमें उल्लेख होता है कि पुलिस को लाश कहां से और किस दशा में प्राप्त हुई। प्रत्येक पीड़ित परिवार का यह अधिकार है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट उसे उपलब्ध करायी जाय। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह मानवाधिकार का उल्लंघन है।

मृतक के शरीर पर क्या चोटें थीं आदि का उल्लेख पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया होगा। घटना का वीडियो साक्ष्य और चश्मदीद गवाह मौजूद हैं। जिस तरह से पुलिस गैरकानूनी स्पष्टीकरण दे रही है, लिखित तहरीर को एफआइआर नहीं मान रही है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी उपलब्ध नहीं करा रही है इससे संकेत मिलता है कि पुलिस निष्पक्ष जांच के प्रति गंभीर नहीं है।

रजा की बहन शफीकुन निशां कहती हैं कि फोन आया था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गयी है। थाने गये तो वहां कहा कि रिपोर्ट नहीं आयी है। थाने में कोई सुनवाई नहीं हो रही है। उस दिन न कोई एफआइआर लिखा गया न कुछ लिखा गया। मुलजिम भी मौजूद हैं।

रजा के भाई मोहम्मद आलम कहते हैं कि आदमी जब पुलिस को देखते हैं तो वर्दी को देखकर डरते हैं या इंसान को देखकर? खुद ही सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं कि वर्दी को ही देखकर डरते हैं न। वर्दी वालों को देखा तो चौकी के सामने गली है उसी गली में भागा। जब भागा तो वहां पर गिरफ्तार कर लिया होगा। कमरे में अंदर बंद करके मारा। फिर वो कहते हैं कि पुलिस को देखकर दुनिया छुप जाती है। हो सकता है अहाते में लुका गया हो। उसको ऐसा मारा-ऐसा मारा की दम ही निकाल लिया और छत से भी महिलाएं ईंटा-पत्थर डंडा फेक-फेककर मार रहीं थीं। उस घर में उसके पिता और बेटे ने मार-मारकर दम ही निकाल लिया और अगल-बगल के लोग आये तो भगा दिया। 

रज़ा की बहन और मां

पूछने पर कि क्यों मार रहे थे, शफीकुन निशां पूछती हैं कि क्या कोई तीन बजे दिन में चोरी करने जाएगा। वो उस दिन के बारे में कहती हैं कि उस दिन वो बकरी बाजार में बकरी चरा रही थीं। वह बताती हैः

“जहां लोग मार रहे थे, वहां हमारे यहां की एक लड़की नई बस्ती में ब्याही है। उस लड़की ने अपने घर फोन किया। उसने कहा कि रजा मारा जा रहा है, उसके घर जाकर कह दो। तो वो हमारे चच्चा के घर कह कर गया तो चच्चा हमारे दौड़कर गए। जब वह मेरे दूसरे भाई के पास फोन किए तो हमको भी मालूम चला। हम दूसरी गली से आ रहे थे पर वो दूसरी गली में मारा गया। हमसे लोग कहे कि कहां हो तुम लोग तुम्हारा भाई मारा गया है। लेटा है। बेहोश है। लोग सोचे वो बेहोश है पर मार ही डाले थे वो लोग उसे। वो लोग उधर से आये हम मां-बेटे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते आये पर बड़ी देर तक लाश नहीं मिली। साढ़े सात-आठ बजे के करीब दरवाजे के पास लाश मिली।”

मोहल्ले वालों के मुताबिक दो पुलिस आयी थी। उन लोगों ने घर में बंद करके मारा। पहले पुलिस ने मारा। जब वो भागा गली में से तो वहां लोगों ने बंद कर लिया, वहां बिजली के तार लगा-लगा के मारा। पानी पिला-पिला के मारा। फिर ले के गये, अहाते में फेंक दिए। फिर अहाते में घुस गये लोग, फिर अहाते में मारने लगे। फिर पुलिस आयी, दरवाजे को खुलवाकर निकाला। कहा कि मत मारो, ये संभलेगा तो चला जाएगा। जब संभल के वह चलने लगा तो फिर वह लोग दो-तीन लाठी मार दिए, वो गिर गया। बाप-पूत और पड़ोसी ने मारा। मोहल्ले वाले भी एक चक्कर निकालकर ले गये।

रजा की बहन पुलिस की मिलीभगत बताती है। वह जब साढ़े सात बजे मगरिब के बाद पहुंचे तो सांस चल रही थी, उसने पानी मांगा। जैसे ही पानी डाला दम टूट गया। वो फिर दोहराती हैः

“अम्मा पूछी भइया किसने मारा, क्या हुआ, पानी डालते ही तुरंत दम टूट गया। वहां बहुत से लोग आ गसे और कहे कि सामने वाले ने मारा। तहरीर दिया है। वीडियो बना है। पुलिस आयी, लिखा पढ़ी की पर कोई कार्रवाई नहीं।”

मोहम्मद रजा कबाड़ खरीदने बेचने का काम करता था। उसी से बूढ़े मां-बाप और उनका खर्चा चलता था।

इस घटना को लेकर मीडिया/सोशल मीडिया सेल बहराइच द्वारा एक खंडन जारी किया गया जो कहते हैं कि “19 अप्रैल 2020 को थाना नानपारा अंतर्गत घसियारन टोला में एक युवक का शव बरामद हुआ था। परिजनों की तहरीर पर युवक के शव का पोस्टमार्टम कराया गया था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं होने के कारण विसरा सुरक्षित रखा गया है। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म/समाचार चैनलों द्वारा उक्त घटना को लिंचिग की संज्ञा दी जा रही है। कोरोना की भयावहता को देखते हुए बिना किसी ठोस कारण के अपुष्ट/गलत खबरें पोस्ट/फारवर्ड करना दण्डनीय अपराध है। बहराइच पुलिस मीडिया सेल थाना नानपारा अन्तर्गत सोशल मीडिया पर चल रही मॉब लिंचिंग की खबर का पूर्णतः खण्डन करती है।”

यहां यह अहम सवाल है कि जब पुलिस इस बात को आम जनता में कह रही है तो आखिर क्यों नहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट परिवार को देती। वहीं यह भी सवाल है कि क्यों नहीं यह घटना मॉब लिंचिंग है?

मोहल्ले वाले दो-तीन सौ लोग गवाह हैं उसके बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। वो लोग जब छुड़ाने गए तो एक बुजुर्ग को डंडे से मारा गया। वो बुजुर्ग थाने भी गये थे। उसको वहां से भी भगा दिया।

दिन के उजाले का एक वीडियो सामने आया है जिसमें कुछ बच्चे मैदान में खेल रहे हैं और उसके सामने के मकान के दरवाजे पर कुछ लोग भीड़ मचाये हैं। एक लड़का डंडा लिए हुए है। कोई बोल रहा है कि कोई चोरवा घुसा है अंदर। एक खुला अहाता दिख रहा, जिसकी दीवार पर एक व्यक्ति पीली टीशर्ट में खड़ा है और अगल-बगल के लोग छतों से भी देख रहे हैं। वीडियो बनाने वाला बीच-बीच में पुलिस की भी बात कर रहा है और संशय में है कि अंदर क्या हो रहा है। कोई बोल रहा है कि जानवर नहीं आदमी है। और अंत में बोला पुलिस आयी है देख के गयी है। वहीं मीडिया में यह आया कि रजा की लाश मैदान में मिली। इससे स्पष्ट है कि उसे अंदर से मारते-पीटते बाहर लाया हो जहां उसकी मृत्यु हो गई।

सवाल है कि आखिर बहराइच पुलिस जो इस घटना को मॉब लिंचिंग मानने से इनकार कर चुकी है क्या उसने इस वीडियो को नहीं देखा। ऐसा मुश्किल है क्योंकि उसने जो खण्डन जारी किया है वो साफ करता है कि ऐसी खबरों को लगातार उसके द्वारा देखा जा रहा था। वहीं सवाल यह भी है कि अगर देखा गया तो आखिर जांच की दिशा में पुलिस आगे क्यों नहीं बढ़ी। क्या उस पर कोई दबाव था या उसकी संलिप्तता जो मृतक का परिवार कह रहा है उससे उजागर हो जाती।

घटना के बाद एक वीडियो में रजा की बहन ने एक व्यक्ति मनोज मिश्रा को हत्या के लिए दोषी ठहराया। एक और वीडियो जिसमें शांत रहने की बात कहते हुए पोस्टमार्टम की बात हो रही है, उसमें एक व्यक्ति बोल रहा है कि “जो मारिस है मार लिहे है बात खत्म हो गयी”। शुक्ला जी बात करते हैं। कोई बोल रहा है डाक्टर को भेज के पोस्टमार्टम करा रहे हैं। वीडियो में पुलिस और कुछ और लोग दिख रहे हैं जिसमें पुलिस लिखा पढ़ी कर रही है।

हैदर अली

नानपारा के समीप ही 9 अप्रैल को एक और हत्या हुई थी जिसमें भी घेर कर मुस्लिम व्यक्ति को मारने का आरोप है। हैदर अली की हत्या को लेकर ग्राम भटेडा नानपारा के शेर अली के भाई हैदर अली भैंस चराने के लिए गये थे। एक लड़का रियाज अहमद भी साथ था। तभी कुछ लोग भैंस को बटोर कर हांकने लगे। रियाज ने रोका तो उसको उन लोगों ने दो-तीन लाठी मारी। हैदर ने खाने के लिए रोटी निकाली ही थी कि तभी वो चिल्लाया की चाचा बचा लो मार डालेंगे। हैदर वहां पहुंचे तो लोग उसे छोड़ कर उनको मारने लगे।

शेर अली के मुताबिक जब भाई कहे कि हमको क्यों मार रहे हो, तो उसमें से एक ने बोला कि जिंदा न छोड़ो, सरकार अपनी है, इसको मार दो जान से। एक लड़के ने शेर अली  बताया कि उसके भाई को मार डाला गया है। उसने तुरंत 100 नंबर और 112 नंबर पर फोन किया। डीएम को भी फोन किया।

यह 9 अप्रैल को लगभग एक-दो बजे की घटना है। पोस्टमार्टम हुआ, रिपोर्ट आयी लेकिन अब तक धारा 302  नहीं लगायी गयी है। इस मामले में 9 अप्रैल को पुलिस ने 147, 148, 149, 304 के तहत चन्द्र प्रकाश, विजय कुमार, गोविंद, चंदर और अज्ञात के विरुद्ध मुकदमा किया है।


स्रोतः रिहाई मंच की प्रेस विज्ञप्ति


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