NAPM सहित कई ने उमर खालिद की गिरफ्तारी की निंदा की


दिल्‍ली में सीएए विरोधी कार्यकर्ताओं और छात्रों की मनमानी गिरफ्तारियों का दौर जारी है। इसी कड़ी में ग्यारह घंटे की गहन ‘पूछताछ’ के बाद जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को गिरफ़्तार कर लिया गया। अदालत ने उमर को 10 दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया है।

इस गिरफ्तारी की चौतरफा निंदा हो रही है। जन आंदोलनों के राष्‍ट्रीय समन्‍वय (एनएपीएम) ने एक वक्‍तव्‍य जारी किया है। इसके अलावा भाकपा (माले) ने विरोध करते हुए कहा है कि दिल्ली पुलिस द्वारा जांच की आड़ में उमर खालिद जैसे नौजवान की यूएपीए में गिरफ्तारी असहमति की आवाज को दबाने और शांतिपूर्ण आंदोलनकरियों को डराने-चुप कराने की कार्रवाई है जबकि असल दंगाइयों को जो भाजपा के हैं, छुआ तक नहीं गया है।

उल्लेखनीय है कि गिरफ्तारी की आशंका को भांपते हुए उमर ख़ालिद ने 1 सितम्बर को दिल्ली पुलिस आयुक्‍त को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि उन्हें UAPA, देशद्रोह और हत्या की साज़िश जैसे आरोपों में फंसाने के लिए गवाहों से जबरन बयान लिए जा रहे हैं। इसके बाद 4 सितम्बर को चार सामाजिक हस्तियों- प्रो. अपूर्वानंद (दिल्ली विश्वविद्यालय), हर्ष मंदर (पूर्व आईएएस अधिकारी और सद्भाव कार्यकर्ता), योगेंद्र यादव (राष्ट्रीय अध्यक्ष, स्वराज अभियान) और कंवलप्रीत कौर (कार्यकर्ता, AISA) ने उमर ख़ालिद सहित एक प्रेस वार्ता की और दिल्ली पुलिस द्वारा CAA विरोधी कार्यकर्ताओं को दिल्ली दंगों का ‘मास्टरमाइंड’ बताते हुए झूठे आरोपों में फंसाये जाने की तरफ इशारा किया।

मुंबई के सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी जूलिओ रिबेरो ने कड़े शब्दों में इस घटनाक्रम पर प्रश्न उठाते हुए कहा था: “दिल्ली पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है लेकिन नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने वालों के खिलाफ संज्ञेय अपराध दर्ज करने में जानबूझ कर विफल रही है।”

सोमवार को अलग-अलग राज्यों से 9 अन्य आइपीएस अधिकारियों ने पुलिस कमिशनर को दिल्ली दंगों की दोषपूर्ण जांच के संदर्भ में लिखा है और उनसे आग्रह किया है कि “आपराधिक जांच के सही सिद्धान्तों के आधार पर बिना किसी पक्षपात के दंगों के सभी मामलों की दोबारा जांच की जाए ताकि पीड़ितों और उनके परिवारों को उचित न्याय मिले और न्यायिक शासन बना रहे।”

दिल्ली पुलिस को 1000 से अधिक प्रसिद्ध हस्तियों ने इस सिलसिले में एक पत्र भी लिखा है।

पिछले छह महीने में लॉकडाउन की आड़ में कई छात्रों व युवा कार्यकर्ताओं को UAPA के तहत गिरफ़्तार किया गया है। गुलफ़िशा फ़ातिमा (छात्रा, डी.यू), इशरत जहां (कांग्रेस कार्यकर्ता), देवांगना कालिता और नताशा नरवाल (विद्यार्थी व पिंजरा तोड़ की नारीवादी कार्यकर्ता), ख़ालिद सैफी (यूनाइटेड अगेंस्ट हेट), मीरान हैदर (अध्यक्ष, आर.जे.डी यूथ विंग, दिल्ली), आसिफ तन्हा (जामिया विद्यार्थी), शरजील इमाम (JNU विद्यार्थी), शिफ़ा-उर-रहमान (अध्यक्ष, जामिया पूर्व छात्र संघ) समेत कई युवा छात्र व कार्यकर्ता जेलों में बंद किये जा चुके हैं।

दिल्ली पुलिस ने अब फिल्म निर्माताओं राहुल रॉय और सबा दीवान को समन जारी किया है और उनसे भी लंबी पूछताछ हुई है। पिछले कुछ महीनों में राजधानी में बड़ी संख्या में अन्य कार्यकर्ताओं और छात्रों से भी पूछताछ की गयी, उनमें से कई के फोन जब्त किये गये और उन सभी को भारी निगरानी में रखा गया। जो अन्य कार्यकर्त्ता पुलिस के रडार पर हैं उनमें सीताराम येचुरी (सीपीएम), योगेंद्र यादव, अपूर्वानंद, जयति घोष, एडवोकेट महमूद प्राचा, चंद्रशेखर आज़ाद शामिल हैं, हालांकि दिल्ली पुलिस ने एक स्पष्टीकरण जारी किया है कि पूरक चार्जशीट में येचुरी, यादव और घोष को आरोपी नहीं ठहराया गया है।

एनएपीएम ने अपने बयान में कहा है:

‘’इस समय के राजनीतिक संदर्भ को देखते हुए हमें उम्मीद तो नहीं है कि सत्ता से किया गया कोई भी अनुरोध कुछ बदलाव ला सकेगा, मगर हमें आख्यानों की इस लड़ाई को सत्याग्रह के सच्चे सिद्धान्तों द्वारा लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत भर से विभिन्न जन-आंदोलनों के प्रतिनिधि के रूप में और संवैधानिक मूल्यों को समर्पित नागरिकों के रूप में हम दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय से आह्वान करते हैं कि शांतिप्रिय कार्यकर्ताओं के इस प्रकार उत्पीड़न को रोका जाए और दिल्ली में हुए दंगों के वास्तविक अपराधियों को तलब किया जाए और इस हिंसा से प्रभावित हुए सभी परिवारों को पूरा न्याय, मुआवज़ा और पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए।‘’


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *