बनारस में शुरू हुई वरुणा नदी को बचाने की मुहिम: ‘गाँव के लोग’ की नदी यात्रा


नदियों को प्रदूषण मुक्त करके फिर से जीवनदायिनी बनाने की मुहिम के क्रम में गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट के तत्वावधान में वाराणसी में रविवार को वरुणा नदी पर केंद्रित नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा निकाली गई। वरुणा नदी के किनारे स्थित बाबाजी की मड़ई से यात्रा की शुरुआत हुई जिसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ स्थानीय ग्रामीणों ने भी अपनी सहभागिता दिखाई। लोगों ने वरुणा में गंदगी को लेकर निराशा और गहरी चिंता जाहिर की। ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलकर यात्रा के माध्यम से कई गाँवों के लोगों को वरुणा नदी को स्वच्छ रखने और इसकी उपयोगिता के बारे में विस्तार से बताया गया।

सुबह छह बजे ग्राम अहिरान चमांव के महजिदिया घाट के पास स्थित बाबाजी की मड़ई पर लोग जुटना शुरु हुए। अपर्णा, रामजी यादव, रामजनम, दीपक शर्मा और मैं। जैसे ही हम लोग यात्रा का बैनर निकाल कर फ़ैलाने लगे वैसे ही आसपास मौजूद ग्रामीणों की नज़रें हमारी ओर घूम गईं। कुछ लोग जिज्ञासावश पास आ गए। नंगे बदन आ पहुंचे एक ग्रामीण से किसान नेता रामजनम ने रामजी यादव की ओर इशारा करते हुए पूछा कि आप इनको पहचानते हैं। तुरंत ही उन्होंने इंकार में गर्दन हिलायी– नहीं। रामजनम जी ने कहा– देख लीजिए रामजी भाई, आपके ही गाँव में यह हाल है कि आपको कोई नहीं पहचान रहा है। तभी नंगे बदन आये सज्जन ने कहा- अच्छा, ये तो ऊ हैं कबिजी। परधान क भैया। हम लोग हंस पड़े। रामजनम ने उनसे पूछा– आपको पता है हम लोग क्या खेला करने जा रहे हैं? इस पर उन सज्जन ने बैनर को ध्यान से पढ़ते हुए कहा– खेला नहीं है। यह बढ़िया काम है। नदी को साफ सुथरा तो रहना ही चाहिए। हम लोग के बचपन में बहुत पानी था। इतना कि हम लोग बुडुक्की मार कर पचास फूट दूर निकलते थे। अब घुटने भर पानी नहीं है और जो है तो इतना ज़हरीला है कि छूने में डर लगता है।

तब तक संतोष कुमार, गोकुल दलित, ग्राम्या संस्थान के सुरेन्द्र जी और लालजी यादव आ गए। इसके बाद नदी यात्रा शुरु हुई। लोग चलते-चलते नदी से जुड़े अपने अनुभव भी सुना रहे थे। जैसे ही यात्रा महजिदिया घाट पर पहुंची तो पहला ह्रदयविदारक दृश्य दिखाई पड़ा- ढेर के ढेर कपड़े, प्लास्टिक के गिलास, दोनों और पत्तल जगह-जगह फेंके गए थे। वरुणा का पेटा सूखकर दस-बारह फुट भर रह गया था। पानी का रंग पूरी तरह काला पड़ गया है। अब घाटों के पुराने निशान गायब थे। उस पार मस्जिद के पश्चिम तरफ कोटवा से आने वाला नाला सारे मोहल्ले के सीवर का पानी नदी तक पहुंचा रहा था।

पहले तय हुआ कि नदी के पाट में किनारे-किनारे चला जाय लेकिन वहां सर्वत्र मानव मल बिखरा हुआ था। दीपक शर्मा ने ठहाका लगाते हुए कहा– यहां प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत के खिलाफ काम हुआ है। फिर हम लोग बाँध के ऊपर से चलने लगे। मौसम सुहाना था और खेतों में बोई गई चरी की हरियाली लहरा रही थी। कुछ ही दूर चलने पर छह-सात नीलगायों का झुण्ड दिखा। देहातों में नीलगायों के आतंक से हर किसान त्रस्त है। इस गाँव की चरी के खेत इनसे कैसे बच रहे हैं? लालजी यादव ने कहा– ये सब चरते-चरते थक गईं। इनसे बचने पर ही चरी लहलहा रही है।

दोनों किनारों के लोग हमें देख रहे थे। मज़ेदार यह था कि नदी किनारे बकरियां और भैंसें चरा रहे लोग भी आते और यात्रा में शामिल होकर कुछ दूर चलते और फिर वापस होकर अपने काम में लग जाते। आगे मंगरहा घाट के उस पार कोटवा से एक और नाला सीवर का पानी नदी में धकेल रहा था। इस पार आगे एक बहुत बड़े खेत की मिट्टी खोदकर भट्ठे पर ले जाई गई जिससे पूरा खेत बहुत गहरा तालाब बन गया था। यह देखकर हम लगातार दुखी हो रहे थे कि वरुणा को लोगों ने अपनी गन्दगी का वाहक बना छोड़ा है। जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे वैसे पानी का रंग और भी डरावना होता जा रहा था। अस्सी नदी का अस्तित्व शहर की गंदगी ने लील लिया लेकिन वरुणा की हालत उससे कम बदनसीबी से भरी नहीं थी। जहां से यात्रा को वापस मुड़कर फिर महजिदिया घाट आना था उस सुरवा घाट पर जहां कुछ महीने पहले नाव चला करती थी अब वहां शायद घुटने भर पानी भी नहीं रह गया था। बाँस का एक पुल बना दिया गया था और दूसरे किनारे पर घटवार झोपड़ी में बैठा किराया वसूल करता था।

नदी किनारे-किनारे यात्रा पीछे मुड़ी। बाबाजी की मड़ई पर आकर उसका समपान हुआ। तब तक आसपास काम कर रहे कुछ किसान और बकरी चराने वाले लोग भी वहां आ जुटे थे। वे इस बात को लेकर उत्साहित थे कि उनके अपने गाँव से ही यह नदी यात्रा शुरू हुई है।

नदी यात्रा का दूसरा चरण पर्यावरण संचेतना को लेकर था। बेल और आम के पेड़ के नीचे चादर बिछी थी जिस पर लोग आ बैठे। और इस तरह संगोष्ठी की शुरुआत हुई। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए ट्रस्ट के अध्यक्ष रामजी यादव ने कहा:

पृथ्वी जैसे ग्रह पर पानी नदी, नालों, झरनों, तालाबों और बरसात के माध्यम से मानव जीवन में मौजूद है। पूरी मानव सभ्यता नदियों के किनारे बसी और आज नदियाँ खतरे में हैं। उन्हीं में से एक वरुणा नदी है जो मृतप्राय हो चुकी है। बनारस के लिए वरुणा का खास महत्व है क्योंकि इसी नदी और असी के नाम पर इस जिले का नाम वाराणसी पड़ा है। गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट वरुणा नदी के उद्गम से उसके संगम तक एक क्रमिक नदी यात्रा का आयोजन कर रहा है जिसका उद्देश्य नदी के दोनों किनारों पर बसे गाँवों के लोगों को इस नदी के प्रति संवेदनशील और जवाबदेह बनाना है ताकि वे इसके पुनरुद्धार के लिए आगे आएं क्योंकि कोई भी काम जनता की सक्रि‍य सहभागिता के बगैर अधूरा और थोथा साबित होगा। इस प्रक्रिया में ट्रस्ट ने बनारस और आसपास के सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, लेखकों-कवियों और साधारण जनता को जोड़ने का प्रयास शुरू किया है। इस नदी से जुड़े हजारों किस्से, मुहावरे, किंवदंतियां और तथ्य हैं जो अब विस्मृति के कगार पर हैं लेकिन ट्रस्ट लोगों की स्मृतियों से रिकॉर्ड कर उनका दस्तावेज़ीकरण करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही ट्रस्ट की प्राथमिकता में वरुणा में गिरने वाले गंदे नालों की गणना करने तथा नदी में किये गए अतिक्रमण के रेखांकन के साथ ही स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन देकर उनको रोकने की दिशा में काम करना है। वरुणा नदी के पानी की लैब में जाँच कराकर के उसमें पाए जाने वाले ज़हरीले तत्वों को ख़त्म करके निर्मल जल की वापसी का प्रयास ट्रस्ट का पर्यावरण की दिशा में किया जानेवाला जरूरी काम है।

प्रकृति प्रवाहिनी नदियों की धाराएँ अपने बहाव के साथ-साथ सभ्यता और संस्कृति का निर्माण भी करती हैं लेकिन सभ्यता में सबसे खूंखार प्राणी मनुष्य ही है जो अपने लालच के वशीभूत प्रकृति का दोहन करता है। किसान नेता रामजनम ने कहा कि ‘वर्षा की एक-एक बूंद की कीमत का अहसास हमें बीते कई वर्षों में अच्छी तरह होता रहा है लेकिन प्रकृति के इस कोप से हम सबक नहीं ले पाए। इस दौरान कोई बड़ा इंतजाम नहीं कर सके जिससे वर्षा के जल को सहेजा जा सके। पोखरे-तालाब और नदियों का इसमें बड़ा अहम योगदान होता है।’ उन्होंने कहा कि ‘सरकार और सम्बंधित मशीनरियों की अनदेखी के चलते वरुणा का पानी तेजी से घटकर तलहटी से चिपककर रह गया। नदी की गहराई भी पटाव के कारण कम हो जाने से पानी तेजी से घट रहा है। बीच-बीच में ऐसी गंदगी है कि कोई देखना भी न चाहे। इसे रोकने का कोई इंतजाम वरुणा नदी पर नहीं किया गया।’

गाँव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट की अपर्णा ने कहा कि ‘वरुणा जल में प्रदूषण का अंदाजा मात्र इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि कई जगह पानी की ऊपरी सतह पर मोटे-मोटे काई साफतौर पर देखे जा रहे हैं। जलकुंभी भी काफी दूर तक फैली है। पुराने पुल के पास नदी के पानी को बाँधकर इसका प्राकृतिक स्वरूप ही समाप्त किया जा चुका है। आज की स्थिति में वरुणा भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है, जिसमें एक भी जीव-जंतु जीवित नहीं हैं। सोची-समझी साजिश के तहत वरुणा को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। नदी के तट से 200 मीटर दूरी के नियमों को तोड़कर मकान, बड़ी-बड़ी इमारतें और होटल बन गए हैं। सदानीरा रहने वाली कलकल करती यह नदी आज गंदी नाली की शक्ल में परिवर्तित हो चुकी है।’

अध्यापक दीपक शर्मा ने कहा कि वाराणसी और आसपास के जनपदों की जीवनरेखा व आस्था की केंद्र रही वरुणा आज स्वयं मृत्युगामिनी होकर अस्तित्वहीन हो गई है। वर्तमान सरकार और सम्बंधित विभागों को मिलकर वरुणा की सफाई और उसके स्वास्थ्य का ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि वरुणा तट पर पंचकोशी तीर्थ के अनेकों मंदिर व रामेश्वर जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। पूर्व में यह नदी लगभग 150 से 250 किमी क्षेत्र के वर्षाजल को प्राकृतिक रूप से समेटती हुई आसपास के क्षेत्र में हरियाली बिखेरती थी। दीपक ने जाने-माने लेखक राकेश कबीर की कई कविताएं पढ़कर भी लोगों को जागरूक किया।

गाँव के एक निवासी रामधनी ने बताया कि आज से मात्र बीस साल पूर्व वरुणा नदी काफी गहरी हुआ करती थी और वर्षपर्यंत जल से भरी रहती थी जिससे आस-पास के ग्रामवासी खेती, पेयजल और दैनिक क्रियाकलाप, श्राद्ध तर्पण और पशुपालन के लिए इसी पर निर्भर रहते थे। आज तो पानी में ही दवाइयाँ छिड़ककर बची-खुची मछलियों को भी निकाल लिया जा रहा है। वरुणा तट पर पाई जाने वाली वनस्पतियों नागफनी, घृतकुमारी, सेहुड़, पलाश, भटकटैया, पुनर्नवा, सर्पगन्धा, चिचिड़ा, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, शैवाल, पाकड़ के परिणामस्वरूप वरुणा जल में कई ऐसे तत्व होते थे जो हमें छोटी-मोटी कई बीमारियों से बचाते थे।‘

ट्रस्टी लालजी यादव ने बताया कि नदी में सीवर और ड्रेनेज खुलेआम बहते देखा जा सकता है। लोहता, कोटवा क्षेत्र से मल और घातक रसायन सीधे नदी में बहाये जा रहे हैं। नदी यात्रा के दौरान ही लगभग छह नाले सीधे नदी में गिर रहे थे। वही शहरी क्षेत्र में लगभग 137 नाले प्रत्यक्षत: वरुणा में मल और गंदगी गिराते देखे जा सकते है। कोढ़ में खाज की तरह जनपद मुख्यालय से सटे वरुणा पुल पर से प्रतिदिन मृत पशुओं के शव और कसाईखानों के अवशेष, होटलों के अपशिष्ट वरुणा में गिराये जाते है। वरुणा के किनारे स्थित होटलों, चिकित्सालयों के साथ कई कारखानों के मल-जल भी पानी को और विषैला कर रहे हैं।

कहानीकार संतोष कुमार ने टेम्स नदी का उदाहरण देते हुए बताया कि ‘एक समय टेम्स नदी में इतना मल बहता था कि ब्रिटिश पार्लियामेंट की बैठकें भी नहीं हो पाती थीं लेकिन लोगों ने अपनी इच्छाशक्ति और कर्मठता से आज उसे एक शानदार नदी में बदल दिया। भारत की नदियों की दशा बहुत ख़राब है। नदियों को प्रदूषित करनेवालों के खिलाफ कोई सख्ती या नियम कानून नहीं हैं। लेकिन यह सब मानव जीवन के लिए खतरनाक है। अगर हम मानव सभ्यता के प्रति संवेदनशील रहना चाहते हैं तो हमें नदियों के प्रति भी संवेदनशील होना पड़ेगा।‘

सामाजिक कार्यकर्ता गोकुल दलित ने भी पर्यावरण और नदियों के कवि के रूप में प्रसिद्ध कवि राकेश कबीर के कविता संकलन ‘नदियाँ ही राह बताएंगी’ से कुछ कविताएं पढ़ते हुए कहा कि विकास का पूंजीवादी मॉडल प्रकृति को तबाही की ओर ले जा रहा है। समय रहते इस पर सचेत होना पड़ेगा।

ग्राम्या संस्थान के सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि नदियों को बचाना आज सबसे बड़ी चुनौती है। मुझे गाँव के लोग ट्रस्ट के इस आयोजन में आकर ख़ुशी हो रही है कि यह मुहिम एक नदी को लेकर जनता में जागृति फैलाएगी। मैं इसके साथ हूँ।

कार्यक्रम में नब्बे साल के शारदा यादव ने अपनी बुलंद आवाज में चनैनी सुनाकर लोगों का दिल जीत लिया। श्यामजीत यादव ने वरुणा नदी को माँ की तरह मानते हुए एक गीत सुनाया। कार्यक्रम में विनय कुमार यादव मुलायम, पंचम विश्वकर्मा, पुरुषोत्तम पाल, महेंद्र कुमार पाल, करण पाल, सुजीत कुमार, कुच्चुन, उत्कर्ष और शिवधनी आदि भी शामिल हुए। कार्यक्रम ख़त्म होते-होते वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत का फोन आया कि वे दो घंटे से गाँव में भटक रहे हैं। उन्हें सही लोकेशन भेजा गया। लोग जब घुघुरी-जलेबी का नाश्ता कर रहे थे तब तक वे आ पहुंचे। उन्होंने नदी यात्रा पर रिपोर्टिंग के लिए तथ्य इकट्ठा किये और नदी के किनारे जाकर तस्वीरें लीं। इस प्रकार नदी यात्रा का यह चरण पूरा हुआ।


लेखक ‘गाँव के लोग’ से सम्बद्ध हैं


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