अदब के आसमां में चमक के पलट गया एक और चाँद, नहीं रहे शम्‍सुर्रहमान फ़ारूक़ी


हिंदुस्‍तानी-फारसी तहज़ीब को सबसे बेहतर तरीके से समझने-समझाने वाले लेखक, अनुवादक, आलोचक और दास्‍तानगोई की बहाली में अग्रणी भूमिका निभाने वाले उर्दू अदब की दुनिया की जानी-मानी शख्सियत शम्‍सुर्रहमान फ़ारूक़ी का आज इलाहाबाद में निधन हो गया। वे 85 साल के थे।

अपने 60 साल के लेखकीय जीवन में उन्‍होंने हिंद-इस्‍लामिक तहज़ीब को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया। समकालीन पीढ़ी उन्‍हें उनके 2006 में आए उपन्‍यास ‘कई चांद थे सरे आसमां’ से बेहतर जानती थी। आज से कोई पंद्रह साल पहले उन्‍होंने दास्‍तानगोई को भारतीय सांस्‍कृतिक परिदृश्‍य में दोबारा जिंदा करने का काम किया था।

भारत सरकार ने 2009 में उन्‍हें पद्मश्री से सम्‍मानित किया था। 1996 में उन्‍हें सरस्‍वती सम्‍मान दिया गया था।

अदब की दुनिया ने उन्‍हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है।

Adieu! अलविदा! SHAMSUR RAHMAN FARUQI शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी 1935–2020 Master interpreter of the Indo-Persian tradition.

Posted by Asad Zaidi on Thursday, December 24, 2020
https://twitter.com/singhrangnath/status/1342376137930977280?s=20

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