उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ी हिंसा पर AIPF और भाकपा-माले चिंतित, राज्यपाल को भेजा पत्र


मुख्यमंत्री के क्षेत्र गोरखपुर में 17 साल की लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसके शरीर को सिगरेट से दाग देना, लखीमपुर खीरी में 13 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसकी जबान काट डालना, हापुड़ में 6 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार व देश की प्रतिभा कैलिफोर्निया में पढ़ने वाली 20 वर्षीय सुदीक्षा की ग्रेटर नोएडा में छेड़खानी के कारण सड़क दुधर्टना में मौत समेत प्रदेश में लगातार हो रही महिला हिंसा की घटनाओं ने इंसानियत को हिला कर रख दिया है. इन घटनाओं की आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट और भाकपा-माले ने अलग-अलग जारी बयानों में निंदा की है।

भाकपा-माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि यह सरकार, जो बेहतर कानून व्यवस्था के वादे के साथ आई थी, अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। जो सरकार महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा नहीं कर सकती, उसे सत्ता में रहने का हक भी नहीं है।

आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने कहा है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए राज्यपाल को हस्तक्षेप कर सरकार को निर्देश देना चाहिए। यह मांग राज्यपाल को फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी ने पत्र भेज कर उठायी। पत्र में कहा गया कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश महिला उत्पीड़न के मामले में देश में सबसे ऊंचे पायदान पर है। महिलाओं पर हिंसा, बलात्कार, छेड़छाड़ आदि की घटनाएं आए दिन हो रही हैं, बावजूद इसके सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए चलायी जा रही 181 वूमेन हेल्पलाइन की सुविधा को दो माह से बंद किया हुआ है। इसमें काम करने वाली महिला कर्मचारियों को एक वर्ष से ज्यादा समय से वेतन नहीं दिया है। परिणामस्वरूप उन्नाव में कार्यरत एक महिला आयुषी सिंह ने 4 जून 2020 को आत्महत्या तक कर ली।

इसी प्रकार घरेलू हिंसा कानून के तहत संचालित महिला समाख्या कार्यक्रम को बंद करने का सरकार ने निर्णय ले लिया है। इसके कर्मचारियों को भी जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, 20 माह से वेतन नहीं मिला है। आइपीएफ ने पत्र में महिला होने के नाते महामहिम से मांग की है कि महिलाओं के जीवन की सुरक्षा के लिए तत्काल हस्तक्षेप कर सरकार को निर्देशित करे की वह महिला हिंसा की घटनाओं के लिए जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जवाबदेह बनाएं।


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