बद्री को अकादमी: दूसरे के द्वैत को देखने वाले स्वयं का द्वैत देखने में अक्षम हैं!

जो लोग अपनी वैचारिकता-प्रतिबद्धता को लेकर आत्ममुग्ध हैं उन्हें तो प्रसन्न होना चाहिए कि उन्हें इस भगवा सरकार के पुरस्कार से वंचित करके उनके सम्मान की रक्षा की गई, लेकिन अफ़सोस कि वे लोग इस भगवा दौर में क्रांतिकारियों को पुरस्कृत होने की उम्मीद बांधे बैठे थे।

Read More

…हिंदी साहित्य में हिंदू नाजीवाद का स्वीकरण: भाग-2

चित्रा मुद्गल ने अनामिका की खूब और जायज़ तारीफ़ की, लेकिन उन्होंने भी माना कि निशंक की किताब नहीं पढ़ी है. जिस किताब को ज्यूरी के मेंबरान ने भी पढ़ने लायक नहीं समझा, वो किताब हिंदी साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार के लिए चयनित अंतिम 13 किताबों के बीच कैसे पहुंच जाती है? क्या यह आश्चर्य का विषय नहीं?

Read More

अनामिका-अकादमी, हंस-निशंक के रास्ते हिंदी साहित्य में हिंदू नाजीवाद का स्वीकरण

अगर मान लिया जाय कि अनामिका का पुरस्कार लेना उनका निजी मामला है तो भी यह सवाल तो बनता ही है कि असहिष्णुता के उत्तर-काल में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की कोई नैतिक अपील बची भी है? अगर हां तो कोई बात नहीं. राम राज में सब माफ़ है. और अगर नहीं तो अनामिका के पुरस्कार को निजी ही रहने देना चाहिए. यह हिंदी भाषा और संस्कृति के लिए सार्वजनिक जश्न का मुद्दा कतई नहीं होना चाहिए.

Read More

अनामिका को साहित्य अकादमी: हिंदी की पुरस्कारधर्मी लॉबी का नया तर्कशास्त्र

हिंदी में पुरस्कारधर्मी मानसिकता और उससे जुड़े साहित्यिक भ्रष्टाचार के सवाल न तो किसी एक संस्था से जुड़े हैं न किसी एक व्यक्ति या पुरस्कार से और न ही वे …

Read More

दक्षिणावर्त: सहस्रबुद्धि विमर्शों की ‘टोकरी में अनंत’ पाठों से बनता यथार्थ

क्‍या वाकई यह पहली सरकार है जिसने महिलाओं (कम से कम हिंदी साहित्‍य में) का सही में सम्मान किया है? या फिर ऐसा है कि बीते सात दशक के दौरान कृष्‍णा सोबती से लेकर चित्रा मुद्गल वाया अलका सरावगी, मृदुला गर्ग और नासिरा शर्मा (सभी उपन्‍यासकार) हिंदी की कोई कवियत्री अकादमी पुरस्‍कार के लायक हुई ही नहीं?

Read More