आप यहूदियों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे गोएबल्स की मौत का शोक मनाएं?

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद दंगल के ‘मुस्लिम-मुक्त भारत’ जैसे शो से प्रभावित होकर तुम्हारा पड़ोसी जो तुम्हारे हर सुख दुःख में साथ रहा हो और तुम उसके सुख दुःख में साथ रहे हो, अचानक एक दिन आकर तुम्हारे सामने तुम्हारे पिता जी से कहे कि मुझे तुम्हारा घर पसन्द है, जाते वक्त (पाकिस्तान) मुझे देकर जाना। ये सुनकर आप पर क्या गुजरेगी?

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श्रद्धांजलि में ‘श्रद्धा’ ही मूल बात है!

रोहित पेशेवर पत्रकार नहीं थे। अगर होते तो उसकी पहली कसौटी यही होती कि सत्तापक्ष से उन्‍हें इतना संरक्षण न मिला होता। इसकी पुष्टि रोहित के तमाम धतकर्म भी करते हैं जो उन्होंने पत्रकार के रूप में किये। पत्रकारिता उनका पेशा था, वो पेशेवर पत्रकार नहीं थे। यह भेद ही उन्हें रोहित सरदाना बनाता था।

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बीते दो हफ्ते में कोरोना के हाथों मारे गए सौ बेनाम पत्रकारों को क्या आप जानते हैं?

बीते दो हफ्तों में भारत में मारे गए 50 पत्रकारों की सूची बहुत छोटी है। अगर इसमें राज्‍यों में स्‍थानीय स्‍तर पर मारे गए पत्रकारों की उपलब्‍ध सूचनाओं को जोड़ लें तो संख्‍या 96 तक पहुंचती है यानी रोजाना छह से ज्‍यादा पत्रकारों की मौत।

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