यह तुलसीदास का पुनर्पाठ है या आत्महीनता से उपजा कुपाठ?

समस्या यह है कि गंगोत्री से चली गंगा को हम लोग कानपुर, प्रयागराज, पटना इत्यादि तमाम शहरों की भयंकर गंदगी से लैस कर देते हैं और फिर उसी पानी को निकालकर कहते हैं कि देखो जी, गंगा तो गंदी है।

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काकुत्स्थ पर कुब्जा हावी है! शास्त्र को प्रक्षिप्त कहने वाले विक्षिप्त हैं!

जिस तरह मनुष्य ध्यान लगाने में असफल होने पर योग विज्ञान अथवा योगशिक्षा पर लांछन लगाते हैं, उसी प्रकार शास्त्र को नहीं जानने पर विक्षिप्त महत्वाकांक्षी मूढ़ उसे प्रक्षिप्त घोषित कर देते हैं। शास्त्र को प्रक्षिप्त वही घोषित करते हैं जिन्हें अंधविश्वास घेरे हुए है।

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जाति के बाँट-बखरे में पिटते छात्र-किसान और ढाई सौ करोड़ का जेट

ये पूरा मामला वोटों की खेती का है। लालू जानते हैं कि एम-वाय समीकरण को उच्चतम सीमा तक दोहन कर लिया गया है, इसलिए नये तरीके चाहिए वोटों के। नीतीश जानते हैं कि केवल कुर्मियों के वोट से कुछ नहीं होगा। भाजपा जानती है कि केवल सामान्य वर्ग के वोटों से वह बड़ी ताकत नहीं बन सकती है। हरेक बड़े समुदाय और जाति का बांट-बखरा हो चुका है।

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