जाति के बाँट-बखरे में पिटते छात्र-किसान और ढाई सौ करोड़ का जेट


बिहार पर अगली बात करने से पहले तीन खबरें जान लेनी जरूरी हैं। इससे हमें बिहारी नेताओं की प्राथमिकताएं समझ में आ जाएंगी। बिहार में 250 करोड़ रुपये के खास जेट की खरीद होगी, जिसमें वहां के भाग्यविधाता घूमेंगे। दूसरे, बिहार में जातिगत जनगणना शुरू हो गयी है। तीसरे, वहां के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने कहा है कि रामचरितमानस घृणा फैलाने वाला ग्रंथ है और यह ‘मनुस्मृति’ और ‘बंच ऑफ थॉट’ के बाद तीसरा ऐसा ग्रंथ है। फुटकल खाते में बिल्कुल ताजा, रोहतास में किसानों पर लाठीचार्ज और शिक्षक पद के प्रत्याशियों पर हुए लाठीचार्ज को रख लीजिए। खबरों के साथ इस पर आयी नेताओं की प्रतिक्रिया देख लें, फिर आगे की बात की जा सकती है।

जेट खरीद पर राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि गुजरात अगर खरीदे तो ठीक, हम खरीदें तो खराबी है, आप लोग यानी मीडियावाले गुजरात से जाकर पूछें। यह तुलना उस राज्य के मुख्यमंत्री कर रहे हैं, जिसकी करीबन आधी जनसंख्या आज यानी 2023 में भी गरीबी रेखा के नीचे है।

जातिगत जनगणना पर मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री दोनों का कहना है कि इसके बाद बिहार में विकास की तेज गति होगी। इसका भावार्थ ये है कि बाकी सारा काम हो चुका है, अब बस एक बार वंचितों की सही संख्या पता लग जाए, तो बाकी विकास भी हो जाएगा।

रामचरितमानस पर विवादित बयान देने वाले मंत्री उस पर कायम हैं, विपक्ष हमलावर है और सीएम व डिप्टी सीएम चुप हैं।

शिक्षक पद प्रत्याशियों पर हुए लाठीचार्ज की नीतीश कुमार को खबर नहीं है, रोहतास में किसानों पर हुए लाठीचार्ज का मामला तेजस्वी यादव के संज्ञान में नहीं है।

इसी के साथ यह भी जोड़ लें कि दो दिन पहले दरभंगा में तारामंडल का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री ने यह तो बता दिया कि एम्स डीएमसीएच (दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल) में नहीं बनेगा, लेकिन कहां बनेगा यह बिल्कुल भी साफ नहीं किया।

बिहार के ही बेहद ख्यात कवि जानकीवल्लभ शास्त्री ने कभी लिखा था-

कुपथ-कुपथ रथ दौड़ाता जो, पथ-निर्देशक वह है,
लाज लजाती जिसकी कृति से धृति-उपदेशक वह है।
जनता धरती पर  बैठी है, नभ पर मंच खड़ा है,
जो जितना है दूर मही से, उतना वही बड़ा है।

इन तीन घटनाओं और प्रतिक्रियाओं से अपनी बात शुरू करने का मतलब यह दिखाना है कि बिहार के नेताओं का विज़न क्या है, उनकी सोच क्या है। बिहार में एक जेट खरीदने का फिलहाल कोई मतलब नहीं है क्योंकि पिछले कई वर्षों से अगर बिना जेट के ही बिहार चल रहा है और लीज से उसकी जरूरत पूरी हो जा रही है, तो एक बेहद गरीब राज्य में यह खर्च कंगाली में आटा गीला करना जैसा है। यह बात लेखक इसलिए भी बोल रहा है क्योंकि बिहार का कोई भी नेता-चाहे वह पक्ष में हो या विपक्ष में, किसी भी मंच पर गरीबी का रोना रोने से कतई नहीं चूकता है। गरीबी का इतना रोना इन्होंने पूरी दुनिया के सामने रोया है कि बिहार अब सचमुच गरीब हो गया है।

जातिगत पूर्वाग्रहों से भरे बिहार में जाति जनगणना की कवायत बिल्कुल बेमानी है, बेमजा है। जितने पैसे इस बेकार कवायद में बिहार सरकार खर्च कर रही है, उतने में जनकल्याण की न जाने कितनी योजनाएं बन सकती थीं। नेताओं की प्राथमिकता में ये नहीं है।

जिस दरभंगा शहर का पूरा क्षेत्रफल ही दो किलोमीटर का है, वहां तारामंडल बन रहा है। इससे पहले कि दरभंगा के जानकार इस लेखक पर बर्छी-भाला लेकर दौड़ें, शहर से आशय स्पष्ट कर दिया जाए। अगर लहेरियासराय के ट्विन-सिटी को न लें, तो दरभंगा के कादिराबाद से टावर तक का शहर कितना बड़ा है? मुख्य सड़क की चौड़ाई 8-10 फीट से अधिक नहीं है, दो कारें आमने-सामने आते ही जाम लग जाता है। वहां, तारामंडल बनवाना एक अश्लील मजाक से अधिक कुछ भी नहीं है, खासकर तब जब दोनार का ओवरब्रिज पिछले दो दशक से बन ही रहा है।

बिहारनामा के पिछले अंक यहां पढ़ें

दरभंगा का इनफ्रास्ट्रक्चर इतना वाहियात, इतना खराब है कि वहां बारिश के मौसम में हरेक साल बाढ़ राहत अभियान चलाना पड़ता है। आज भी मुख्यमंत्री के आने की सूचना के साथ फटाफट डिवाइडर ढाहे गए, गड्ढे भरे गए और पोखरों से जलकुंभी हटायी गयी। बाकी यात्राओं से सबक लेते हुए बाकी कुरूपता को ढंकने का सदाबहार तरीका तो बिहारी नौकरशाहों को पता है ही।

जो तेजस्वी पहली कैबिनेट मीटिंग में 10 लाख नौकरियां देने का वायदा कर चुनाव लड़े, वे आज शिक्षक अभ्यर्थियों को लाठी का प्रसाद बांट रहे हैं, मुआवजा मांगते किसानों पर लाठी चलवा रहे हैं और उससे अनभिज्ञता जता रहे हैं। आखिर क्यों?

अब बात चंद्रशेखर यादव के बयान की। बयान पर चर्चा करने से पहले उनकी पृष्ठभूमि जान लें। वह पहले लेक्चरर थे और यह दीगर बात है कि भरपूर अशुद्धियों के साथ, लेकिन रामचरितमानस की चौपाइयां तो उन्होंने उद्धृत कीं। यह भी बिल्कुल अलग बात है कि कोई नयी बात नहीं की। यह भी बिल्कुल ही अलग बात है कि जिन चौपाइयों को उन्होंने उद्धृत किया, वह प्रक्षिप्त मानी जाती हैं, उन पर रामायण और रामचरितमानस के विशेषज्ञों की राय बिल्कुल अलग है।

अब हम अपने मूल सवाल की ओर लौटते हैं। ऊपर की सभी घटनाएं और प्रतिक्रियाएं यूं तो अलग-अलग दिखती हैं, लेकिन इन सबकी जड़ में एक ही बात है।

फ्रांस की रानी मेरी एंतोनएत ने अपने सलाहकारों से पूछा, ‘ये भीड़ क्यों खड़ी है, महल के नीचे’। सलाहकारों ने जवाब दिया, ‘वे भूखे हैं, उनके पास रोटी नहीं है।’ मेरी ने जवाब दिया- ‘तो, उन्हें केक दो।’ वह तो खैर अनजान थी, लेकिन बिहारी नेता सब कुछ जानते हुए यह रणनीति अपनाते हैं। वह जानते हैं कि सही मायने में विकास कर वोट पाना मुश्किल काम है, लेकिन रेटॉरिक (वाग्जाल) और मजाक के जरिये इस पूरे समाज को मूर्ख बनाया जा सकता है।

लालू प्रसाद ने पूरे बिहार को एक भद्दा मजाक बना दिया, लेकिन वह 15 साल राज करते रह गए। नीतीश कुमार ने एक कुशल प्रशासक का बाना उतारकर समाज-सुधारक का चोला पहन लिया, लेकिन वह भी 15 साल से राज कर ही रहे हैं। भगवा पार्टी के लोगों को कुछ बोलने का हक नहीं है क्योंकि 12 साल उन्होंने भी नीतीश की पालकी ढोयी है, कुल मिलाकर। सत्ता में साझीदार रहे हैं, लेकिन वह नीतीश का चेहरा और चाल नहीं बदल पाए, हां भाजपा का चाल, चरित्र और चिंतन सब कुछ बिहार में आकर मटियामेट हो जाता है।

ये पूरा मामला वोटों की खेती का है। लालू जानते हैं कि एम-वाय समीकरण को उच्चतम सीमा तक दोहन कर लिया गया है, इसलिए नये तरीके चाहिए वोटों के। नीतीश जानते हैं कि केवल कुर्मियों के वोट से कुछ नहीं होगा। भाजपा जानती है कि केवल सामान्य वर्ग के वोटों से वह बड़ी ताकत नहीं बन सकती है। हरेक बड़े समुदाय और जाति का बांट-बखरा हो चुका है।

बचे दलित औऱ ओबीसी। इनको अब खंड-खंड कर इनका हिसाब लगाया जा रहा है। दलितों में महादलित का फॉर्मूला इसीलिए निकाला गया। राग ईबीसी इसी छटपटाहट की देन है। अब, पिछड़ों में यादव और कुर्मी तो नव-ब्राह्मण हो गए, तो बाकी बची जातियों को लाओ, अपनी ओर। समेटो अपनी ओर। इसी कवायद में चिराग पासवान भी हैं कि बचे हुए पासवान वोटों के साथ दलितों को भी साथ ले आवें तो दलित नेता बन जाए।

पूछा जा सकता है कि राजद और जद-यू को इतना घबराने की क्या जरूरत है? जवाब है कि भाजपा फिलहाल बिहार में जातिगत हिसाब से सबसे सही हालत में है। आप उसके हरावल दस्ते को देखिए-अधिकांश ओबीसी और दलित नेता हैं। राजद और जद-यू भी जानते हैं कि अब उनकी टक्कर मंगल पांडे वाली बीजेपी से नहीं, संजय जायसवाल वाली बीजेपी से है जिनके साथ नित्यानंद राय, अशोक सम्राट इत्यादि की जुगलबंदी है।

यह समीकरण अगर आप समझ गए, तो चंद्रशेखर यादव की उलटबांसी भी आपको समझ में आ जाएगी और साथ ही आप पिछले अंक में उद्धृत किये गए उस नौकरशाह की बात से भी सहमत हो जाएंगे जिनके मुताबिक यह जातिगत जनगणना भी किसी न किसी बहाने से नीतीश कुमार बीच में ही रुकवा देंगे क्योंकि उनको भी पता है कि पिछड़ा या दलित कार्ड अब उनको बहुत फायदा तभी पहुंचा सकता है जब इन वर्गों में से कोई नया समीकरण निकले। वरना, चंद्रशेखर यादव भी जानते हैं कि जिस किताब को वह गाली दे रहे हैं उस किताब के नायक उनके राज्य के प्राण हैं और उनकी यह बयानबाजी न तो जुबान का फिसलना है, न ही कोई भूल। यह बहुत सोची-समझी रणनीति है।



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