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दिल्ली का जाता बसंत और घोड़ों की कब्रें: दो लघु कथाएं
दिल्ली का जाता बसंत आज सुबह “सह विकास” के प्रांगण में बहुत सारे सेमल के फूल जमीन पर बिखरे हुए देखे। घंटी के आकार के फूल अपने सुर्ख-पीले रंग में …
Read MoreJunputh
दिल्ली का जाता बसंत आज सुबह “सह विकास” के प्रांगण में बहुत सारे सेमल के फूल जमीन पर बिखरे हुए देखे। घंटी के आकार के फूल अपने सुर्ख-पीले रंग में …
Read Moreट्रेन अपनी गति पकड़ चुकी थी। अब तक मुझे अपनी सीट नहीं मिल पायी थी। जो सीट मेरे लिए मुकर्रिर थी वो दूसरे कोच में थी। स्टेशन पर जब तक गाड़ी खड़ी रही मैं अपनी उसी सीट पर बैठा था। कुछ देर बाद एक बूढ़ा दंपत्ति मेरे पास आया…
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