23-24 जनवरी को ‘किसान संसद’, चर्चा के लिए आमंत्रित होंगे सभी दलों के MP, कृषि विशेषज्ञ और किसान नेता

प्रशांत भूषण के नेतृत्व में गठित दर्जन भर चर्चित लोगों की एक कमिटी ने आगामी 23-24 जनवरी को दो दिवसीय ‘किसान जन संसद’ बुलाया है. इस किसान संसद में तीनों कृषि कानून, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP),किसानों पर सत्ता का दमन के साथ किसानों की अन्य समस्याओं पर चर्चा की जाएगी. इस किसान संसद में सभी दलों के सीटिंग व पूर्व सांसदों को शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा जाएगा. नेशन फॉर फार्मर्स, पीपल फर्स्ट और जनसरोकार जैसे संगठनों ने इस इस ‘किसान संसद’ का समर्थन किया है.

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देश छोड़कर भागने वालों में अगला नंबर अनिल अम्‍बानी का?

भूषण ने छह पन्‍ने का एक पत्र विदेश मंत्रालय सहित रिजर्व बैंक, स्‍टेट बैंक और केंद्रीय सतर्कता आयोग को भेजा है जिसमें उन्‍होंने अनिल अम्‍बानी का पासपोर्ट रद्द करने की गुजारिश की है क्‍योंकि उन्‍हें आशंका है कि अम्‍बानी देश छोड़ कर भाग सकते हैं।

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प्रशांत भूषण के हाथ से फिसला वह क्षण और ‘स्‍थायी भयावहता’ में तब्‍दील होते ‘तात्‍कालिक भय’!

बीतने वाले प्रत्येक क्षण के साथ नागरिकों को और ज़्यादा अकेला और निरीह महसूस कराया जा रहा है। जिन बची-खुची संस्थाओं की स्वायत्तता पर उनकी सांसें टिकी हुई हैं, उनकी भी ऊपर से मज़बूत दिखाई देने वाली ईंटें पीछे से दरकने लगी हैं।

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अवमानना के केस में भूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 1 रुपये का जुर्माना

जस्टिस अरुण मिश्र की अध्‍यक्षता वाली बेंच ने बीते 25 अगस्‍त को इस मामले में फैसले को सुरक्षित रख लिया था। इस सुनवाई में जस्टिस मिश्र ने इस बात पर निराशा जतायी थी कि भूषण ने अपने ट्वीट को सही ठहराते हुए पूरक बयान जारी किया।

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जस्टिस मिश्र ने कहा- “चोट खाये को मरहम लगाना ज़रूरी है” और फैसला सुरक्षित रख लिया!

भूषण की ओर से पेरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट राजीव धवन और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को सुनने के बाद जस्टिस अरुण मिश्र ने सज़ा के फैसले को सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस मिश्र 3 सितम्‍बर को रिटायर हो रहे हैं।

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प्रशांत भूषण के खिलाफ़ 2009 वाला अवमानना का केस अब दूसरी बेंच सुनेगी, 10 सितंबर को अगली सुनवाई

जस्टिस अरुण मिश्र 3 सितंबर को रिटायर हो रहे हैं। तहलका में दिये एक इंटरव्‍यू के मामले में प्रशांत भूषण के खिलाफ पिछले 11 साल से अवमानना का जो केस लम्बित है उसकी सुनवाई जस्टिस अरुण मिश्र की बेंच कर रही थी।

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आर्टिकल 19: प्रशांत भूषण ने नैतिकता की एक लंबी लकीर खींच दी है, जिसका नज़ीर बनना तय है

फैसला कुछ भी हो लेकिन प्रशांत भूषण हीरो बन चुके हैं। अगर सजा मिलती है तब भी और अदालत उन्हें सिर्फ फटकार लगाकर छोड़ने का फैसला करती है तब भी। भारत के न्यायिक इतिहास में अवमानना के मामले में अदालत से बाहर इतनी जोरदार बहस कभी नहीं हुई।

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SC ने प्रशांत भूषण को बयान पर दोबारा सोचने के लिए दी मोहलत, उन्होंने ठुकराया प्रस्ताव

वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपराधिक अवमानना का दोषी पाये जाने के बाद आज सज़ा पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा की खण्‍डपीठ ने भूषण को …

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बात बोलेगी: जबरा मारे औ रोऊन न देय

सताने के लिए किसी बड़े बहाने की ज़रूरत नहीं भी हो सकती है। यह जबर के ऊपर है कि उसे कब ऐसा लग जाये कि उसकी मानना नहीं हुई है (या अव-मानना हुई है)।

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गाहे-बगाहे: नफ़स न अंजुमने आरज़ू से बाहर खींच

अधिक ईमानदारी से कहा जाय तो प्रशांत भूषण ने उस कॉकस के मर्म पर चोट कर दी जिसे झेलना मुश्किल नहीं नामुमकिन है। और जब झेलना मुम्किन नहीं है तो सजा उन्हें मिलेगी। लेकिन प्रशांत भूषण भी कोई इंसान हैं। उन्होंने माफी मांगने से इंकार कर दिया।

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