महिला दिवस: नवउदारवादी व्यवस्था में स्त्री की आर्थिक मुक्ति का उलझा सवाल

एक भ्रम यह भी फैलाया जाता है कि नवउदारवादी अर्थव्यवस्था महिलाओं की आर्थिक मुक्ति का कारण बनेगी जबकि सच्चाई यह है कि इसके कारण संगठित क्षेत्र सिकुड़ा है और असंगठित क्षेत्र की शोषणमूलक प्रवृत्तियां खुलकर अपनाई जा रही हैं। ठेका पद्धति और संविदा नियुक्ति की परिपाटी बढ़ी है और महिलाएं इनका आसान शिकार बनी हैं क्योंकि निरीह, असंगठित महिलाओं से कम वेतन पर मनमाना काम लिया जा सकता है और जब चाहे इन्हें नौकरी से हटाया जा सकता है।

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पूंजीवाद और लोकतंत्र के ऐतिहासिक रिश्तों के आईने में संवैधानिक मूल्यों की परख

चिली से यह नवउदारवाद शुरू हुआ था। आज वहां शिक्षा के व्यावसायीकरण के खिलाफ चलने वाले आन्दोलन का छात्र नेता राष्ट्रपति चुना गया है। चक्र पूरा हो चुका है। अलेंदे को हटा कर पिनोचे को बैठा कर जो प्रयोग किया गया, पूरी दुनिया में जिसे फैलाया गया वह वहीं अपनी पुरानी जगह फिर पहुँच गया। जिन मुल्कों में 30 साल पहले नवउदारवादी नीतियां और सुधार लागू किये गये उन सभी मुल्कों में सत्र पूरा होने की घंटी बज रही है।

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दुनिया के अनेक विकासशील देशों को दीमक की तरह चाट गया है पूंजीवाद: प्रो. मालाकार

अमेरिका यह हर्गिज नहीं चाहता है कि भारत और चीन की दोस्ती बढ़े। भारत सरकार भी चीन से दोस्ती की ज़रूरत को न समझते हुए अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ उनके खेमे में शामिल होना चाहती है। यह भारत के लिए बिलकुल फायदेमंद नहीं होगा।

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किसानों और खेतिहर मजदूरों की खुदकुशी: पंजाब की जमीनी हकीकत बनाम सरकारी आँकड़े

हर दिन 2500 किसान खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। अब तीन नये कृषि कानूनों के चलते बड़े किसान भी खेती से बाहर हो जाएंगे। इस तरह किसानों को खेती से अलगाव में डालने की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और कॉरपोरेट सेक्‍टर का रास्‍ता आसान हो जाएगा।

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आरक्षण अर्थात घर में नहीं है खाने को, अम्मा चली…

सरकार क्योंकि विश्व बैंक-अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के ढांचागत समायोजन कार्यक्रम के क्रियान्‍वयन या उनसे कर्ज़ लेने पर लादी गयी शर्तों के अनुपालन में लगी हुई है जिसके तहत सरकारी क्षेत्र के आकार और उसके रोज़गार में कटौती की जाती है इसलिए उसने यह जानते हुए भी कि इस सरकारी क्षेत्र में रोज़गार पाने के अवसर ही नहीं बचे या बचने हैं, सबको खुश करने के लिए नौकरी का निमंत्रण पत्र बांटना शुरू कर दिया। वर्तमान में अन्य पिछड़ा वर्ग को खुश करने के लिए किया जाने वाला संशोधन इसी तरह का चुनावी प्रयास है।

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पूंजी-विस्तार और संसाधनों की लूट के बीच हाशिये की औरतों की जिंदगी, श्रम और प्रतिरोध

जाति, जातीयता, वर्ग के पदानुक्रम और राज्‍य के प्रभुत्‍व सहित कलंकीकरण के सभी औज़ारों के साथ मिलकर पितृसत्‍ता औरतों के श्रम का शोषण करती है, उनकी आवाजाही व मेहनत पर नियंत्रण कायम करती है। नतीजतन, साधनों-संसाधनों तक उनकी पहुंच को और कम कर देती है।

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