क्यों आंदोलन कर रहे हैं देश भर के मनरेगा मजदूर?
निखिल डे बताते हैं, “मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2022-23 में जनवरी तक करीब 16 हजार करोड़ रुपए का भुगतान नहीं हो पाया है जो कि साल खत्म होने तक 25 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है.”
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निखिल डे बताते हैं, “मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2022-23 में जनवरी तक करीब 16 हजार करोड़ रुपए का भुगतान नहीं हो पाया है जो कि साल खत्म होने तक 25 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है.”
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इस एडवाइजरी की जरूरत क्या है? एडवाइजरी इस पर चुप है, लेकिन यह प्रचारित किया जा रहा है कि ऐसा आदिवासी व दलित मजदूरों की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए किया जा रहा है। इसके लिए क्या वाकई मजदूरों का भुगतान अलग-अलग श्रेणियों में करने की जरूरत है? क्या यह मनरेगा की मूल मंशा के खिलाफ नहीं है?
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अगर सरकार नामी उद्योगों को पैसा बांटने की बजाय मनरेगा में लगाये तो बिहार, झारखण्ड, छतीसगढ़, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जहां के गरीब लोग लौटकर आये हैं, उन्हें इस विकट स्थिति में अपने को गांवों में स्थापित करने में कुछ मदद इससे मिल सकेगी.
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हमारे नमूने में प्रति व्यक्ति 24 हजार रुपये से अधिक की मासिक आय वाले केवल दो परिवार हैं, लेकिन 40 फीसदी से ज्यादा (150 में से 62) उत्तरदाताओं ने बताया है कि घोषणा के दो महीने बाद भी लॉकडाउन के दौरान उन्हें मुफ्त राशन नहीं मिला है। केवल 7 उत्तरदाताओं ने बताया है कि उन्हें अपने जन-धन खाते में धन प्राप्त हुआ है।
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