बात बोलेगी: बिकवाली के मौसम में कव्वाली

आर्थिक विभाजन, सामाजिक विभाजन, सांप्रदायिक विभाजन, वैचारिक विभाजन और कुछ नहीं तो रंग, कद, काठी, नाक की सिधाई, चपटाई, मोटाई के आधारों पर मौजूद विभाजन सरकारों के लिए सबसे मुफीद परिस्थितियां हैं। इनके रहने से एक ऐसी एकता का निर्माण होता है जिससे सार्वजनिक संपत्ति को अपना मानने की भूल लोग नहीं करते।

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भारत में बेरोजगारी के दैत्य का आकार और सरकार

उदारीकरण के बाद के चरण में उत्पादन वृद्धि का रिश्ता रोजगार वृद्धि के साथ तेजी से इसलिए खत्म होता गया है क्योंकि मशीनीकरण की वजह से उत्पादन जहां प्रति नियोजित श्रमिक बढ़ता गया, वहीँ इस किस्म के औद्योगीकरण के तहत संगठित उद्योग में श्रमिकों को खपाने के लिए सृजित किये गये कुल रोजगार की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों की आजीविका अधिक मात्रा में नष्ट होती गयी है।

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GDP के ऐतिहासिक पतन के बीच कृषि क्षेत्र में वृद्धि के क्या मायने हैं?

पिछले तीन दशकों में इस देश के किसानों ने लाखों की संख्या में आत्महत्या की है और दूसरी ओर देश के विकास में उद्योग और सेवा क्षेत्र का प्रतिशत बढ़ता गया है। चूँकि नब्बे के बाद मूलतः पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली देश में लागू करने की कोशिश की गई, इसलिए जब जब पूँजीवाद आर्थिक मंदी का शिकार हुआ है, तब उसके उत्पादन की श्रृंखला टूट गई है।

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राग दरबारी: GDP, बेरोज़गारी, बीमारी पर जनता की चुप्‍पी का राज़ 200 सीटों में छुपा है!

जहां कहीं भी किसी भी राजनीतिक दल ने अपनी निर्भरता कॉरपोरेट मीडिया से हटाकर अपने मीडिया संस्थानों पर कर ली है, उसकी हालत वहां इतनी खराब नहीं है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है.

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तन मन जन: जब स्वास्थ्य व्यवस्था ही बीमार है तो कैसे हो इलाज?

जब देश की जनता प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर ताली और थाली बजा रही थी तभी कोरोना वायरस देश में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा था। उनके अगले राष्ट्रीय प्रसारण …

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