इस्माइल शाम्मूत की पेंटिंग

इजराइल के ज़ुल्मों के खिलाफ फिलिस्तीन की खुशहाली के ख्वाब

प्रलेसं इकाई अध्यक्ष डॉ जाकिर हुसैन ने कहा कि इजरायल द्वारा बड़े पैमाने पर महिलाओं, बच्चों की हत्या की गई है। यूरोपीय देशों का दोगलापन सामने आया है। एक तरफ वे ग़जा में खैरात बांट रहे हैं दूसरी तरफ इजराइल को नित नए शास्त्र देकर फिलिस्तीनियों के कत्लेआम में मदद कर रहे हैं। भारत सदैव फिलिस्तीन की जनता के पक्ष में रहा है लेकिन वर्तमान सरकार इजराइल के साथ खड़ी है।

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योगी सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा सह-प्रायोजित मंच पर साहित्य अकादमी से सम्मानित तीन कवि

कार्यक्रम की शुरुआत हुई अखिल भारतीय कवि सम्मेलन से. इस कवि सम्मेलन में तीन-तीन साहित्य अकादमी विजेता कवियों ने भाग लिया. देश के प्रख्यात कवि लक्ष्मी शंकर बाजपाई, लीलाधर मंडलोई और सविता सिंह ने काव्य प्रस्तुति से एक बेहतरीन समा बाँधा.

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सच कहना ही प्रतिरोध है, प्रेम करना है नफरत का विरोध: IPTA की सांस्कृतिक यात्रा का समापन

इप्टा द्वारा पाँच राज्यों में 44 दिनों तक निकाली गई “ढाई आखर प्रेम के” सांस्कृतिक यात्रा का समापन इंदौर में गीत, संगीत और नाटकों के प्रदर्शन के साथ समारोहपूर्वक संपन्न हुआ। सार्वजनिक स्थलों पर जनगीत गाए गये। नुक्कड़ नाटकों की प्रस्तुति हुई। इप्टा के कलाकारों ने यात्रा निकालने के कारणों और यात्रा में मिले अनुभवों को साझा किया।

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किसान आंदोलन की जीत अनेक जनांदोलनों को जीवित रखने की ऊर्जा दे गयी: IPTA

4 दिसम्बर की शाम सत्यजित रे और साहिर लुधियानवी को समर्पित रही तथा 5 दिसम्बर की सुबह का सत्र अमृत राय, तेरा सिंह चन्न तथा संतोष सिंह धीर की जन्मशताब्दी को समर्पित रहा। इसके अलावा पंजाब इप्टा के कलाकारों द्वारा 4 दिसम्बर को सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गई। कार्यसूची के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रीय समिति के पदाधिकारी एवं सदस्य तथा विशेष आमंत्रित युवा साथी इकट्ठा हुए थे।

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सांस्कृतिक विविधता का डर और संघर्ष

सभ्‍यताओं के टकराव या क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन को आज के अंधराष्ट्रवाद का सहारा मिल गया है। राष्ट्रवाद के झंडे तले बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों के दमन को वैध ठहराया जा रहा है।

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बंगाल की मिठास के आगे हारेगी कड़वाहट की राजनीति!

सुर और स्वाद में मिठास की ज़मीन है बंगाल। चाहे वो गुरूदेव के गीत और कविताएं हों, हवा सा मुक्त बाउल गीत हो या फिर संथाली गीत-संगीत, सारे के सारे जीवन में मिठास घोलते हैं। इनके छंद-बंद में चाहे जितनी विभिन्नताएं हों पर इनके मूल में मानव प्रेम और मुक्ति की कामना है। मुक्ति- घृणा, नफरत और वैमनस्य से।

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गाहे बगाहे: कहु धौं छूत कहां सों उपजी, तबहि छूत तुम मानी

जिस तरह बनारस में कबीर का मान था उसी तरह नसुड़ी का मान था। उनके जाने के बरसों बाद भी उनकी जगह भरी नहीं जा सकी है और अभी बिरहा विधा की जो गति है, उसको देखते हुए उस जगह के भरने का भी कोई आसार नहीं दीखता। नसुड़ी सदियों में एकाध पैदा होते हैं।

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