प्रदूषण-मुक्त स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए वैश्विक रोड मैप जारी

हेल्थ केयर विदआउट हार्म पूरी दुनिया में मरीजों की सुरक्षा या देखभाल से समझौता किये बगैर स्वास्थ्य क्षेत्र के रूपांतरण को संभव बनाने की दिशा में काम कर रहा है, ताकि वह पारिस्थितिकीय रूप से सतत बनने के साथ-साथ पर्यावरणीय स्वास्थ्य एवं न्याय का अग्रणी पैरोकार बन सके।

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कार्बन-सघन वस्तुओं के आयात को दंडित करेगा यूरोपीय संघ

जहाँ एक तरफ़ यूरोपीय संघ अपनी कार्बन डील की रणनीति के अभिन्न अंग के रूप में इस कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को देखता है, क्योंकि इसकी मदद से वो पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों के तहत 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करना चाहता है, वहीँ एक नज़रिया यह भी है कि यह नियम एक तरह का संरक्षणवाद है जिससे व्यापार के लिए सभी को बराबर मौका नहीं मिलेगा।

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बिजली की मांग और कोयला बिजली उत्पादन में भी पिछले साल चीन रहा अव्वल

इस वार्षिक रिपोर्ट में 2020 में दुनिया भर में हो रहे स्वच्छ बिजली परिवर्तन के मद्देनजर दुनिया के हर देश के बिजली के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है ताकि पहला सही और विशुद्ध विवरण किया जा सके। यह 2000 से देश का ईंधन डेटा साल दर साल एकत्र करता आया है। दुनिया की 90% बिजली उत्पादन करने वाले 68 देशों का साल 2020 का पूरा डाटा और उसी के हिसाब से दुनिया भर में बदलाव के लिए एक अनुमान को आधार बनाया गया है।

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पंचतत्व: अकाल और सूखे की वजह है जल संरक्षण की सूखती परंपराएं

भारत के हालिया जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस का परिवर्तन देखा गया है. स्थानीय और वैश्विक तापमान में हुई इस बढ़ोतरी का सीधा असर हमें विभिन्न मौसमी घटनाओं में आए तेज बदलाव के रूप में देखने को मिल रहा है.

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धरती को बचाने के लिए दुनिया के 300 से ज्यादा धार्मिक संगठनों ने मिल कर बनाया ‘ग्रीन फेथ’ नेटवर्क

अब तक के इस सबसे बड़े ग्रासरूट स्तर के बहु-विश्वास/धार्मिक ‘क्लाइमेट डे ऑफ़ एक्शन’ (जलवायु कार्रवाई दिवस) को 100 मिलयन से अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले 120 से अधिक धार्मिक समूहों का साथ मिला हुआ है। इन सब ने एकजुट हो कर दुनिया को एक स्पष्ट संदेश दिया है कि वैश्विक स्तर पर तमाम नेता जलवायु संकट को दूर करने के लिए पर्याप्त कार्य नहीं कर रहे हैं।

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पंचतत्व: जलवायु में बदलाव का सबसे बुरा असर हाशिये के तबकों पर हो रहा है

मैदानी इलाकों में भी जहां खेती का नियंत्रण भले ही मर्दों के हाथ में हो लेकिन खेती के अधिकतर काम, बुआई, कटाई और दोनाई में महिलाओं की हिस्सेदारी अधिक होती है, जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिख रहा है.

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अमेरिका फिर हुआ पेरिस जलवायु संधि में शामिल, बिडेन ने लिखा- Let’s get to work!

अब संयुक्त राज्य अमेरिका को 2050 तक या उससे पहले 2030 का लक्ष्य निर्धारित कर पूरी तरह शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध होने के अपने वादों को कार्रवाई में बदलने की कोशिशें करनी होंगी।

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भारत में जलवायु परिवर्तन क्यों नहीं बन पा रहा है एक सियासी मुद्दा?

सिर्फ़ यूपी-बिहार नहीं, सोचने बैठिये और कुल लोक सभा की सीटों पर नज़र दौड़ाइए, तो पाएंगे कि भारत की राजनीति की दशा और दिशा भारत के सभी हिंदी-भाषी प्रदेश ही निर्धारित करते हैं। और ऐसा इसलिए क्योंकि लोक सभा की लगभग आधी सीटें अकेले हिंदी भाषी प्रदेशों में हैं।

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लगातार दूसरे साल देश में कोयला आधारित बिजली उत्पादन कम हुआ: अध्ययन

इस गिरावट का सिलसिला 2018 से शुरू हुआ जब उत्पादन ने अपने ऐतिहासिक शिखर पर पहुँचने के बाद नीचे का रुख कर लिया। पिछले साल कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन ने इस गिरावट को मज़बूत कर दिया और अब यह सुनिश्चित करने का एक अवसर है कि COVID-19 महामारी से उबरने के दौर में देश वापस कोयला बिजली के उत्पादन को बढ़ने का मौका न दे।

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अनुकरणीय है जलवायु परिवर्तन पर ब्राज़ील के लोगों की जागरूकता, IBOPE का अध्ययन

ब्राज़ीलियन पब्लिक ओपिनियन एंड स्टैटिस्टिक्स इंस्टीट्यूट (IBOPE) के एक अध्ययन से पता चला है कि ब्राज़ीलियाई उपभोक्ता और मतदाता पर्यावरणीय मूल्यों के साथ मिलकर चुनाव कर रहे हैं।

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