जोशीमठ त्रासदी के लिए कौन जिम्मेदार?

हिमालय युवा है और प्राकृतिक रूप से नाजुक है। इससे चट्टान में दरारें और फ़्रैक्चर बनते हैं जो भविष्य में चौड़े हो सकते हैं और रॉकफॉल/ढलान विफलता (स्लोप फ़ेलियर) क्षेत्र बना सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंसानी हस्तक्षेप ने इसे और भी बदतर बना दिया है, चाहे वह पनबिजली संयंत्रों का विकास हो, सुरंगों का विकास हो या सड़कों की योजना हो।

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हसदेव अरण्य बचाने के लिए आज राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन, संघर्ष समिति ने देशवासियों से की अपील

हसदेव अरण्य के समर्थन में 4 मई 2022 को देशव्यापी प्रदर्शनों का आयोजन किया जा रहा है। हम लोग आपके साथ हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की अपील साझा करते हुए आग्रह करते है कि आपके साथ जितने भी लोग हो सकें- आप पोस्टर या बैनर ले कर अपनी बात रख सकते है- फ़ोटो या वीडियो लेकर आप अपनी जगह से ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए इस सांकेतिक विरोध में अपना समर्थन दे सकते है।

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जलवायु परिवर्तन में इंसानी गतिविधियों की बढ़ी हुई भूमिका का नतीजा है इस बार की प्रचंड गर्मी

भारत के उत्तरी इलाकों के कुछ हिस्सों में पारा 46 डिग्री तक पहुंच सकता है। हीटवेव से जुड़ी चेतावनियां जारी की जा रही हैं। जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि साल के शुरुआती महीनों में ही इतनी प्रचंड गर्मी खासतौर पर खतरनाक है।

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दुनिया के पास ग्रीनहॉउस उत्सर्जन आधा करने के लिए अब केवल आठ साल बचे हैं!

IPCC की छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) की तीसरी किस्त (WG3) बताती है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अब शायद बस एक आखिरी मौका ही बचा है और इस मौके का फायदा अगले आठ सालों में ही उठाया जा सकता है। इस काम के लिए इस दशक के अंत तक उत्सर्जन को कम से कम आधा करने के लिए तेजी से नीतियों और उपायों को लागू करना पड़ेगा।

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पंचतत्व: पाँच साल के भीतर बहुत महंगी पड़ने वाली है ये गर्मी!

यूनिवर्सिटी ऑफ मेइन्स क्लाइमेट रीएनालाइजर के मुताबिक शुक्रवार को अंटार्कटिका महादेश का औसत तापमान 4.8 डिग्री सेंटीग्रेड था जो 1979 और 2000 के बीच के बेसलाइन तापमान से कहीं अधिक था। पूरा आर्कटिक वृत्त भी 1979 से 2000 के बीच के औसत से 3.3 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक गर्म रहा।

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जलवायु परिवर्तन से उपजी चरम मौसमी घटनाओं ने 2021 में दुनिया के खरबों डॉलर डुबा दिए

दस सबसे महंगी घटनाओं में से चार एशिया में हुईं, जिसमें बाढ़ और आंधी-तूफान से हुए कुल नुकसान की लागत 24 बिलियन डॉलर थी। चरम मौसम का असर पूरी दुनिया में महसूस किया गया। ऑस्ट्रेलिया को मार्च में बाढ़ का सामना करना पड़ा, जिसमें 18,000 लोग विस्थापित हुए और 2.1 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ और कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में बाढ़ से 7.5 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ और 15,000 लोगों को अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा।

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COP26: गहराते जलवायु संकट के बीच देशों और निगमों का जबानी जमाखर्च व पाखंड

ऐसा लगता है कि ये देश अपने यहां के कॉरपोरेट प्रतिष्‍ठानों के प्रवक्‍ता के रूप में काम कर रहे हैं जो ग्‍लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेंटिग्रेड (प्राक्-औरद्योगिक दौर से) तक सीमित रखने के लक्ष्‍य के प्रति बेपरवाह हैं। स्‍पष्‍ट है कि इन देशों के निगमों ने अंतिम समझौते को कमजोर करने के लिए भारत का इस्‍तेमाल किया है। ये वही निगम हैं जो भारत के सत्‍ताधारी राजनीति दलों को बेनामी चंदा देते हैं।

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COP-26: बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को कमज़ोर देशों के समर्थन में अपने पत्ते खेलने की ज़रूरत

? फिलहाल, सभी प्रमुख देश इस बात पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि बुरे नतीजों के लिए दोषारोपण किसी पर न हो, हालांकि उनकी ऊर्जा अच्छे परिणाम सुनिश्चित करने पर होनी चाहिए- एक ऐसा परिणाम जो किसी भी स्तर पर सभी के लिए स्वीकार्य हो।

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COP26: जलवायु के दुश्मन धरती को बचने देंगे?

हाल ही में एक थिंक टैंक “काउंसिल फार इनर्जी, इन्वायरमेंट एण्ड वाटर” (SEEW) ने मोदी सरकार को अपील की कि वह 2050 मे नेट जीरो स्वीकार नहीं करे। इसे 2070 तक टाल दिया जाये। मोदीजी ने इसे स्वीकार कर लिया और ग्लासगो मे घोषणा कर दी कि भारत 2070 में नेट जीरो जारी करेगा।

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ग्लासगो क्लाइमेट समिट से पहले UNGA पर निगाह, जलवायु परिवर्तन पर सार्थक संवाद अपेक्षित

आज ग्लासगो क्लाइमेट समिट से बमुश्किल 50 दिन पहले संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली (यूएनजीए) का 76वां सत्र शुरू हुआ है। इस बैठक से तमाम उम्मीदें हैं, खास तौर से इसलिए क्योंकि इसमें होने वाली चर्चाएं और निर्णय वैश्विक जलवायु नीतियों की दशा और दिशा को बदल सकते हैं।

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