पावर के प्रति हिकारत और आकर्षण के द्वैत में लटका बिहार

स्वप्न तो उस अब्सोल्यूट पावर का सभी देखते हैं क्योंकि सभी को पता है कि प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन) में जाने पर आप निरंकुश हो सकते हैं; बिना जिम्मेदारी के भरपूर माल कूट सकते हैं; मजा काट सकते हैं और आपका रुतबा बढ़ सकता है। अंतर्मन में हालांकि, यही ऑब्सेशन घृणा बनकर बैठा हुआ है।

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धर्मनिर्पेक्षता: किसी समाज के सभ्य और विकसित होने की पूर्व-शर्त

भारत में भी जो विकास नजर आ रहा है वह उसके संविधान के धर्मनिर्पेक्ष होने का नतीजा है। अगर हमने धर्मनिर्पेक्षता को छोड़ दिया या उसकी रक्षा नहीं की तो भारत को पाकिस्तान बनने में देर नहीं लगेगी।

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