बारपेटा से लखनऊ के बीच पेट की आग में जलता बचपन और भटकती जिंदगी

2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते जातीय भेदभाव के बाद अब तक करीब 90,000 से अधिक लोग बारपेटा से लखनऊ विस्थापित हो चुके हैं, हालांकि यहां वह पूर्वाग्रहों और जातीय संघर्षों से तो बच गए परंतु शहरों में भेदभाव के नए रूप खुल गए हैं।

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दक्षिणावर्त: थोपी गयी महानताएं और खंडित बचपन के अंतर्द्वंद्व

एक तरफ तो तालिबानी शासन से मुक्ति, जिस दौरान गुल-मकई के छद्म नाम से लिखकर मलाला प्रख्यात हुईं, दूसरी तरफ इंग्लैंड का खुलापन और तीसरी तरफ इस्लाम का शिकंजा, जहां तयशुदा नियमों और संहिता के अलावा कुछ भी बोलना शिर्क है, गुनाह-ए-अज़ीम है। हो सकता है कि मलाला ने शादी के विषय में खुलकर बोल दिया हो, वह पश्चिम के खुलेपन से प्रेरित रही हों, लेकिन वह अपने देश की ‘कल्चरल एंबैसडर’ भी तो हैं और इसीलिए हिजाब, इसीलिए उनके पिता की सफाई, आदि!

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