बात बोलेगी: जबरा मारे औ रोऊन न देय

सताने के लिए किसी बड़े बहाने की ज़रूरत नहीं भी हो सकती है। यह जबर के ऊपर है कि उसे कब ऐसा लग जाये कि उसकी मानना नहीं हुई है (या अव-मानना हुई है)।

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बात बोलेगी: लोकतंत्र के ह्रास में बसी है जिनकी आस…

एक बड़ा वर्ग ऐसे ही तैयार हुआ है, जिसके लिए पूरी व्यवस्था के जो सह-उत्पाद यानी बाय-प्रोडक्ट हैं वे उसी के उपभोक्ता के तौर पर तैयार किये गये हैं

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बात बोलेगी: नये युग का करें स्वागत…

बीते तीन दशकों से जिन दो कार्यों के न हो पाने से हिंदुस्तान का बहुसंख्यक समाज खुद को गंभीर रूप से असहाय, निर्बल और हीनताबोध से ग्रसित पा रहा था, आज ऐसा संयोग रचा गया कि दोनों ऐतिहासिक कार्य सम्पन्न होने जा रहे हैं। कश्मीर के सच्चे अर्थों में विलय (जिसे आपने मुकुट के रौंदे जाने के तौर पर ऊपर पढ़ा) की बरसी और राम का भव्य मंदिर।

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बात बोलेगी: मन की बात या एकालाप?

इस व्यक्ति के मन में ऐसा क्या आता है जिसे वो आपको हर दो महीने में सुनाना चाहता है जबकि हर समय इसी व्यक्ति को देश की जनता अलग-अलग चैनलों पर भर दिन सुनते रहने को अभिशप्त है।

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बात बोलेगी: चढ़ी हुई नदी के उतरने का इंतज़ार लेकिन उसके बाद क्या?

असम, बिहार से ऐसी तस्वीरें ज़्यादा आ रही हैं। इन दो राज्यों में हालांकि यह वार्षिक कैलेंडर का हिस्सा हैं इसलिए फिर भी कुछ न कुछ मानसिक तैयारी लोगों की होती होगी, लेकिन पिछले कई साल से ऐसी ही तस्वीरें देखते हुए लगता है कि बाढ़ का पानी उतरने के बाद ये लोग शून्य से ज़िंदगी शुरू करते होंगे तभी तो इनका हर बार उतना ही नुकसान होता है जितना उससे पिछले बरस हुआ था!

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बात बोलेगी: सहृदय बनाने के सारे प्रशिक्षण केन्द्रों पर जबर ताले लटके हुए हैं!

मारे जीवन में राजनीति के विराट रंगमंच पर अब ऐसे सहृदय प्रेक्षकों की भारी कमी होती जा रही है। इसीलिए राजनीति के नाटक का पूरा संचालन एक निर्देशक के हाथों में आ गया है। हमने दखल लेने की अर्हताएँ खो दी हैं। अब हम केवल दर्शक हैं। जो दिखाओ, हम देख लेंगे। जो सुनाओ, हम सुन लेंगे।

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बात बोलेगी: ‘लोया हो जाने’ का भय और चुनी हुई चुप्पियों का साम्राज्य

तोड़ भी दीजिए चुप्पी! बोलिए, कहिए, सुनिए, सुनाइए, चिल्लाइए! दोस्तों के बीच, घर में, फोन करते वक़्त, दफ्तर में! और अगर इसका अभ्यास नहीं है तो आईने के सामने खड़े होकर खुद से खुद के लिए बोलिए… देखिएगा, अच्छा लगेगा फिर। हवा चलने लगेगी! रूत, बदलने लगेगी!

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बात बोलेगी: किरायेदारों के ज़ाती मकान नहीं होते…

आप तो इससे भी खुश हो जाएंगे कि किसी ने गुड फ्राइडे को गुड गवर्नेंस डे बना दिया। मज़ा आ गया। जबकि न आपको गुड फ्राइडे से मतलब था न गुड गवर्नेंस से। बस आपको कुछ ऐसा मिल गया जो आपको बताया गया कि यही आपके लिए सबसे अच्छा है। ब्रोकर यूं तो बाज़ार का हिस्सा हैं लेकिन यहाँ दिये गये उदाहरण में फिलहाल वो केवल आपको मकान दिलाने के काम आ रहे हैं।

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बात बोलेगी: सुबह से शाम, ‘सुरों के नेता’ का हर एक काम देश के नाम…

कलाएं रचते भगवान आज तक अबूझ बने हुए हैं, तो उन जैसे तैंतीस कोटि भगवानों के नेता की लीला भला कौन जाने? फिर भी यह लिखने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी?

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बात बोलेगी: बेग़म सावधान! मिर्ज़ा कल हवेली का सौदा करने जा रहा है…

गुलाबो सिताबो 12 जून को रिलीज़ हुई बहुचर्चित और बहुप्रशंसित फिल्म है जो प्राइम वीडियो पर दर्शकों के लिए उपलब्ध है। इसमें एक आलसी, लालची, काइयाँ किस्म का व्यक्ति है …

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