अडानी-अंबानी के बीच मजदूरों के ‘अवैध शिकार’ पर समझौते की जड़ें औद्योगिक क्रांति तक जाती हैं

नो पोचिंग अनुबंध के अनुसार अम्बानी समूह के 3 लाख 80 हजार कर्मचारी अब अडानी समूह में नौकरी नहीं कर पाएंगे। अडानी समूह के 23 हजार कर्मचारी भी अम्बानी समूह की किसी कम्पनी में कम नहीं कर सकेंगे। अब इन दोनों कंपनियों द्वारा आपस में मजदूरों का अवैध शिकार नहीं किया जाएगा। तो क्या मान लिया जाय कि मजदूरों का शिकार दोनों कंपनियां तो करेंगी, लेकिन वैध तरीके से? यह शिकार का वैध तरीका मजदूरों की उन्नति का मार्ग बंद कर देगा।

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तराजू और तलवार साथ रखने की अर्थनीति

सरकार को चाहिए कि उद्योगपतियों को प्रोत्साहन दे, न कि अमर्यादित सहायता, अन्यथा क्रॉनी कैपिटलिज्‍म (याराना पूंजीवाद) नाम का राक्षस सत्ता को निगल जाएगा। यह पूंजीवाद स्वतंत्र मीडिया, निष्पक्ष न्यायपालिका, मूर्ख और कम पढ़े लिखे की सत्ता में भागीदारी, सभी को लील लेगा क्योंकि याराना पूंजीवाद कभी लोकतंत्र में विश्वास नहीं करता है और न ही वह किसी कानून को मानता है।

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भूमि अधिकार आंदोलन के राष्ट्रीय सम्मेलन में संविधान को बचाने का आह्वान

भूमि अधिकार आन्दोलन 2015 में अपने गठन के साथ ही स्थानीय समुदायों– आदिवासी, दलित, मछुआरों और शहरी ग़रीबों के पास मौजूद संसाधनों की राज्य प्रायोजित लूट की मुखालफत करता रहा है और इस लूट के खिलाफ़ संगठित प्रतिरोधों के साथ खड़ा हुआ है।

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अडानी के पावर प्लांट सहित अन्य परियोजनाओं से पर्यावरण की रक्षा के लिए गोड्डा में सम्मेलन

गोड्डा पावर प्लांट में ऑस्ट्रेलिया से आयात किया हुआ कोयला जलाकर बिजली उत्पादन किया जाएगा जिसका निर्यात बांग्लादेश किया जाएगा। ऑस्ट्रेलिया की कोयला खदान और ऑस्ट्रेलिया व भारत में बंदरगाह जिसके ज़रिये कोयला आयात किया जाना है, तीनों अडानी कंपनी के ही हैं।

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बात बोलेगी: अच्छाई और ताकत के बीच नितांत अकेला और शांत खड़ा हसदेव अरण्य

हसदेव, जो एक अरण्य है और ऐसा अरण्य है जिसके ऊपर मध्य भारत की हवा, बारिश और तापमान में संतुलन बनाने की महती ज़िम्मेदारी है, इसका मानवीकरण करते हुए अक्सर इसे मध्य भारत के फेफड़े तक कहा जाता है। आज उन्हीं ताकतवरों को यह कहने की कोशिश कर रहा है कि अपनी ताक़त का इस्तेमाल हमें उजाड़ने के लिए मत करो।

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पंजाब चुनाव में गायब होता कॉरपोरेट वर्चस्व का मुद्दा

आंदोलन का मुख्य जोर कॉर्पोरेट जगत को कृषि क्षेत्र पर नियंत्रण करने से रोकना था। उस समय लगभग सभी राजनीतिक दल इस बात पर सहमत थे कि इन तीन कृषि कानूनों के अंतर्गत कॉरपोरेट्स का कृषि पर पूर्ण अधिकार हो जायेगा। अपने पंजाब दौरे के दौरान राहुल गांधी को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि मोदी सरकार कठपुतली सरकार थी और कॉरपोरेट्स के हितों की सेवा कर रही थी। दुख की बात है कि कृषि और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में कॉर्पोरेट वर्चस्व को रोकने के मुद्दे का उल्लेख किसी भी राजनीतिक दल ने अपने चुनाव प्रचार या चुनावी घोषणापत्र में भी नहीं किया है।

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अडानी के खनन से हसदेव का जंगल बचाने के लिए आदिवासियों की ऐतिहासिक पदयात्रा

ग्रामीणों ने अपनी यात्रा मदनपुर ग्राम से शुरू की और 10 दिनों में 300 किमी से अधिक की दूरी तय करते हुए वे राजधानी रायपुर पहुंच रहे हैं, जहां वे अपनी मांगों को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सौंपेंगे।

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अडानी की मानहानि के केस में परंजॉय गुहा ठाकुरता के खिलाफ गुजरात से गिरफ्तारी का वारंट

वेबसाइट दि वायर ने 2017 में ठाकुरता का एक लेख पुनर्प्रकाशित किया था जिसमें उन्‍होंने आरोप लगाया था कि अडानी पावर को 500 करोड़ का फायदा पहुंचाने के लिए सरकार ने स्‍पेशल इकनॉमिक ज़ोन के नियमों में फेरबदल की थी। अडानी समूह ने इस लेख पर दि वायर और ठाकुरता दोनों के खिलाफ मुकदमा दायर किया था।

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पहले अडानी, अब अम्बानी की सफाई ने सरकार के साथ इनके गठजोड़ को उघाड़ दिया है!

जिस किसान आंदोलन को मोदी सरकार और उनके पूंजीपति मितरों ने हल्के में लिया था अब उसकी गहराई और गंभीरता उनकी नींद उड़ा चुकी है।

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अडानी-अम्बानी से बयाना मोदी ने लिया है, सांसदों ने नहीं, इसलिए वे इस्तीफ़ा दें: शिवाजी राय

पूर्वांचल के बड़े किसान नेता, किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष और किसान आंदोलन समर्थन समिति, लखनऊ के संयोजक शिवाजी राय मंगलवार को टिकरी बॉर्डर पर किसानों के मंच पर थे. जनपथ की ओर से पत्रकार नित्यानंद गायेन ने इस मौके पर उनसे बात की है.

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