केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से सोमवार देर शाम किसान संगठनों को वार्ता के लिए जो पत्र आया है, उसमें सभी आमंत्रित नुमाइंदे पंजाब के किसान संगठनों के हैं। कुल मिलाकर 32 संगठनों के प्रतिनिधियों को आज विज्ञान भवन में दोपहर 3 बजे बातचीत के लिए बुलाया गया है।
मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल द्वारा प्रेषित इस पत्र में 32 किसान प्रतिनिधियों के नाम लिखे हैं, ये सारे उन्हीं संगठनों के वही प्रतिनिधि हैं जिनके साथ अक्टूबर और नवंबर में दो दौर की वार्ता सरकार के साथ हुई थी। इसमें वे किसान नेता शामिल नहीं हैं जिनके नाम बार-बार मीडिया में किसान नेताओं के रूप में आंदोलन के दौरान सामने आते रहे हैं, जैसे योगेंद्र यादव, सरदार वीएम सिंह, इत्यादि।
Sanjay-Agrawal-1दिलचस्प यह है कि संयुक्त किसान मंच में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध किसान और मजदूर महासभा के शिवकुमार कक्काजी भी कोर कमेटी में हैं और उनके नाम को लेकर सिंघू बॉर्डर पर रविवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों की ओर से कुछ सवाल भी उठे थे। सरकार ने उन्हें भी वार्ता के लिए न्योता नहीं दिया।
इससे दो बातें साफ़ हो रही हैं। पहली, कि सबसे सशक्त आंदोलन पंजाब की किसान यूनियनों का ही है और सरकार को उन्हीं की सबसे ज्यादा चिंता है। दूसरा, सरकार इस बात को स्थापित करना चाहती है कि केवल पंजाब के किसानों को ही कृषि कानूनों से दिक्कत है, और किसी को नहीं।
ध्यान देने वाली बात है कि आंदोलन के पहले ही दिन से मीडिया इस बात को स्थापित करने में लगा हुआ है, जबकि इस आंदोलन में हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान तो प्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं और मध्यप्रदेश से लेकर उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र, बंगाल, केरल तक तमाम राज्यों में प्रतिवाद सभाएं हो रही हैं।
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