तीन किसान बिलों के खिलाफ राज्यों से उठकर दिल्ली पहुंचा किसानों का आंदोलन आज अपने तीसरे दिन नाटकीय घटनाक्रम का गवाह रहा। बुराड़ी के निरंकारी मैदान में किसानों से जुटने की गृहमंत्री अमित शाह की अपील को खारिज करते हुए पंजाब-हरियाणा के किसान आंदोलनों ने एक बड़ी लकीर खींच दी।
उधर उत्तर प्रदेश के यूपी गेट बॉर्डर पर बैठे किसानों के साथ पुलिस की झड़प आज देर शाम हुई है। वहां राकेश टिकैत के नेतृत्व में बैठे किसानों ने दिन के वक्त बैरिकेड तोड़ दिए थे।
इस समूह ने भी तय किया है कि यूपी गेट के बॉर्डर पर ही यह डेरा डालेगा, दिल्ली नहीं जाएगा। इस बारे में राकेश टिकैत ने शनिवार को ऐलान किया था।
किसानों के निरंकारी मैदान में जुटान का मुद्दा दो दिन से अटका पड़ा था। मथुरा की तरफ से बदरपुर बॉर्डर पार कर के आने वाले किसान संगठनों ने तो बड़ी आसानी से निरंकारी मैदान को चुन लिया लेकिन सिंघू बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से लगे गाज़ीपुर बॉर्डर से आने वाले किसान सड़क पर ही बैठे रहे। ऐसे में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) के नेताओं योगेंद्र यादव और वीएम सिंह ने पहले पहल की, जिन्हें पंजाब के किसानों ने बैरंग लौटाया।
किसानों ने बदली रणनीति: योगेंद्र यादव को खाली हाथ लौटाया, सिंघू बॉर्डर पर ही चूल्हा जलाया!
उसके बाद मेधा पाटकर सहित तमाम नेता सिंघू बॉर्डर पहुंचे। उनकी भी किसानों ने नहीं सुनी। फिर जाकर गृह मंत्री अमित शाह ने किसानों के सामने शर्त रखी कि वे निरंकारी मैदान में जुटेंगे, तभी उनसे बात होगी। आज इस प्रस्ताव को भी ठुकराए जाने के बाद कीर्ति किसान यूनियन के वरिष्ठ नेता निर्भय सिंह ने निरंकारी मैदान में बैठे किसान नेताओं को ‘’सरकारी’’ करार दे दिया है।
इस तरह अब किसानों के आंदोलन में दो फाड़ साफ़ साफ़ दिख रहा है। एक वे किसान नेता और उनके समर्थक हैं जो बुराड़ी के मैदान में दिल्ली सरकार के राशन पानी पर आंदोलन कर रहे हैं। दूसरे सीमाओं पर बैठे किसान हैं जो अपने घर से राशन पानी लेकर आए हैं।
मैदान में बैठे किसान नेताओं में ज्यादातर अलग अलग सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोग हैं जिनमें मेधा पाटकर, प्रतिभा शिंदे, डॉ. सुनीलम, वीएम सिंह, योगेंद्र यादव इत्यादि प्रमुख हैं। मेधा पाटकर बांध विरोधी आंदोलन चलाती हैं। प्रतिभा शिंदे महाराष्ट्र के नंदूरबार की दलित आदिवासी नेता हैं। डॉ. सुनीलम और सरदार वीएम सिंह पूर्व विधायक हैं जिनकी किसानों में थोड़ी बहुत पैठ है। उधर बॉडरों पर जुटे नेताओं के तीन दर्जन के आसपास विशुद्ध किसान संगठन हैं।
दरअसल, आज जिस फांक की सूरत आंदोलन में दिखी है वह शनिवार को ही साफ़ हो गयी थी। एक दिन पहले योगेंद्र यादव और वीएम सिंह को सिंघू बॉर्डर से भगाने वाले किसानों की शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा के तहत जब बैठक हुई तो उन्होंने मोर्चे में शामिल तीन नामों पर आपत्ति जतायी थी ओर उन्हें निकालने को कहा था। AIKSCC ने भले इसे नामंजूर कर दिया, लेकिन देर रात तक रणनीति पर चली AIKSCC की बैठक में इसको लेकर चिंताएं साफ़ दिख रही थीं।
ऐसा लगता है कि AIKSCC को अब निर्णायक रूप से पंजाब के किसानों का संदेश मिल गया है। शायद इसी वजह से आज दिन में जब वीएम सिंह ने निरंकारी मैदान से अपील जारी की, तो उन्होंने केवल उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के किसानों को मैदान में आने को कहा। पंजाब और हरियाणा के किसानों का उन्होंने जिक्र तक नहीं किया।
इन दो धड़ों के अलावा एक बड़ा तीसरा धड़ा अखिल भारतीय किसान महासभा (AIKS) का है जो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध है। इस धड़े के प्रतिनिधि हनन मोल्ला संयुक्त किसान मोर्चा में भी हैं। एआइकेएस सिंघू बॉर्डर पर ही डटा है।