फेक न्यूज़: जिसे लोगों ने सच समझ लिया और आग लग गयी…


आज जब देश वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से जूझ रहा है, तो उसके समानांतर एक और महामारी अपना कद-काठी ऊंचा करती जा रही है। इसे हम फेक न्यूज़ के नाम से जानते हैं। फेक न्यूज़ का प्रभाव काफी अरसे से देखा गया है, केवल फेक न्यूज़ के स्वरूप में बदलाव हुआ है। ग्रामीण इलाकों में तरह-तरह की अफ़वाहें फैलायी जाती थीं, जिन्‍हें लोग सही सूचना समझकर ग्रहण कर लेते थे।

इनमें किसी महिला के डायन होने की खबर फैला कर दहशत कायम करना आम बात थी। इसी तरह कुछ साल पहले मुंहनोचवा का आतंक फैलाया गया था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2001 से 2014 के बीच देश में 2290 महिलाओं की हत्या डायन होने की आशंका में पीट-पीटकर की गयी। इनमें 464 हत्याएं अकेले झारखंड में हुईं। ओडिशा में 415, आंध्र प्रदेश में 383 व हरियाणा में 209 हत्याएं हुई हैं। ऐसी तमाम अफवाहें फैलाकर लोगों को बरगलाया और मारा जाता रहा है।

हाल ही में कोविड महामारी को लेकर कई फर्जी खबरें सोशल मीडिया में तेजी से वायरल की जा रही हैं। आज ऐसी खबरों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यह हथियार इतना धारदार है कि इसकी चपेट में आने वाले मासूम और बेगुनाह लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ रही है। हर दिन सैकड़ों की तादाद में फेक न्यूज़ फैलायी जा रही है और किसी न किसी को अपना शिकार बना रही है। फेक न्यूज़ हमेशा किसी एजेंडे के तहत फैलायी जाती है। किसी विशेष धर्म या समुदाय के लोगों को टारगेट कर उनके खिलाफ झूठी खबरें अकसर प्रसारित की जाती हैं।

फेक न्यूज़ मानव समुदाय के लिए सबसे आधुनिक जानलेवा हथियार है। भारत में व्हाट्सएप इस्तेमाल करने वालों की संख्या 40 करोड़ से ऊपर है। इसके जरिये एक दूसरे को भेजे जाने वाले कई मैसेज, फोटो और वीडियो फर्जी होते हैं, लेकिन लोग खबरों की सत्यता को जांचे बिना ही उसे शेयर कर देते हैं। शेयर की गयी ख़बर मिनटों में ही तेजी से वायरल हो जाती है।

इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1 जनवरी 2017 से 5 जुलाई 2018 के बीच फर्जी खबरों से जुड़े और दर्ज 69 मामलों में केवल बच्चा चोरी की अफवाह के चलते 33 लोग भीड़ के द्वारा मारे जा चुके हैं और 99 लोगों को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया गया।

Source: India Spend

मोटे तौर से देखें तो फ़ेक न्‍यूज़ निम्‍न उद्देश्‍यों से फैलायी जाती है:

1. धार्मिक विभाजन के लिए

सोशल मीडिया के माध्यम से आये दिन किसी जाति या धर्म को टारगेट कर बड़े पैमाने पर फेक न्यूज़ फैलाने का काम व्हाट्सएप के जरिये किया जा रहा है। आये दिन सोशल मीडिया में कई वीडियो या फुटेज को वायरल किया जाता है, जिसके माध्यम से धर्म के नाम पर कई तरीकों से लोगों के बीच भ्रम और विद्वेष फैलाया जाता है। मध्यप्रदेश के रतलाम में भगवान श्री कृष्ण के दूध पीने की अफवाह फैली, जिसके बाद श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। हाथों में दूध और चम्मच लिए लोग श्री कृष्ण की मूर्ति को दूध पिलाने भारी संख्या में पहुंचने लगे। आज से बीसेक साल पहले गणेश की मूर्ति के दूध पीने की अफ़वाह इसी तरह फैली थी।

2. किसी की छवि धूमिल करना

इसमें एक झूठे बयान का लगातार उल्लेख किया जाता है। उदाहरण के लिए हाल ही में एक बयान के लिए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया गया। इसके अनुसार उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि “मैं शिक्षा से अंग्रेज हूं, संस्कृति से मुस्लिम और संयोग से हिंदू।“ बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा ने हाल में ही एक टेलीविजन बहस में कथित बयान का उल्लेख किया। बाद में ऑल्ट न्यूज़ ने बताया कि नेहरू के नाम मढ़ा गया यह बयान झूठा है। ये शब्द पहली बार 1959 में हिंदू महासभा के नेता और नेहरू के कठोर आलोचक एनबी खरे के लिखे लेख “द एग्री एरिस्टोक्रेट” में आये थे। यानी पात्रा ने नेहरू की निंदा करने के लिए झूठे बयान और झूठ का सहारा लिया। इससे पहले भी रिपब्लिक टीवी पर एक बहस के दौरान झूठे बयान का उल्लेख किया गया था। डेक्कन क्रॉनिकल ने इस बयान को छापने और नेहरू को जिम्मेदार ठहराने के लिए खेद जाहिर कर माफी भी मांगी थी।

ऐसे ही 15 नवंबर 2017 को राहुल गांधी के एक वीडियो को खूब वायरल किया गया। इसको बीजेपी आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्विटर पर शेयर किया। सच्चाई यह है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साध रहे थे। वीडियो में पूरी बात इसके विपरीत थी। वीडियो में राहुल गांधी कहते हैं कि कुछ महीने पहले यहां बाढ़ आयी और मोदी जी ने कहा 500 करोड़ रुपए दूंगा और एक रुपये भी नहीं दिया। आलू के किसानों को कहा ऐसी मशीन लगाऊंगा इस साइड से आलू घुसेगा उस साइड सोना निकलेगा। ये शब्द मेरे नहीं है नरेंद्र मोदी जी के शब्द हैं। यह बात वे प्रधानमंत्री के लिए कह रहे थे। इस बात को क्लिप से काटकर धड़ल्ले से शेयर किया गया और राहुल गांधी को सोशल मीडिया में खूब निशाना बनाया गया।

3. राजनैतिक हित साधना

राजनैतिक हित साधने की बात जब आती है तब सारी राजनैतिक पार्टियां सक्रिय हो जाती हैं। फिर चाहे मुद्दा धर्म, जाति को लेकर हो या फिर जनमानस से जुड़ा हो। वर्तमान में देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा आये दिन खुद के फायदे के लिए नये-नये हथकंडे अपना रही है। देश में ऐसे कई जरूरी मुद्दे हैं, जिनसे लोगों का ध्यान भटका कर अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए हिंदू मुस्लिम की फर्जी खबर फैला कर लोगों को बरगलाने का काम किया जा रहा है। धर्म और जाति के आधार पर लोगों को बांटने का फायदा तो राजनैतिक दलों को मिलता है, लेकिन इससे लोगों में जो दरार पैदा होती है, वह किसी गहरी खाई से कम नहीं होती है।

एक अध्ययन में दावा किया गया है कि कांग्रेस के लिए प्रोपेगेंडा और फर्जी खबर फैलाने के लिए 1 ट्विटर अकाउंट की तुलना में भाजपा के लिए 120 ट्विटर अकाउंट का उपयोग किया जाता है। यह अध्ययन सोशल मीडिया पोर्टल रेडइट के एक उपयोगकर्ता द्वारा किया गया है, जो अपना नाम गोपनीय रखना चाहते हैं। ऑनलाइन गलत सूचनाओं के रुझानों की पहचान करने के लिए उपयोगकर्ता ने लाखों असत्यापित ट्विटर खातों का विश्लेषण किया है।

हाल ही में यूएई सरकार ने कोरोना को लेकर फेक न्यूज़ फैलाने वाले लोगों पर शिकंजा कसते हुए आदेश दिया कि अगर कोई ऐसी भड़काऊ खबर फैलाता है, तो उसको 4 लाख का जुर्माना भरना होगा। वहीं कई अन्य देशों में जुर्माने के साथ कुछ साल की सजा भी निर्धारित की गयी है।

कोरोना को लेकर हर रोज सोशल मीडिया में गलत खबरें फैलाई जा रही हैं और अब यह चरम पर है। दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के लोगों ने एक कार्यक्रम किया। इस कार्यक्रम से जुड़े कई लोगों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव पायी गयी। न्यूज़ एजेंसी ANI, जो सभी मीडिया चैनल और अखबारों को वीडियो या फुटेज देने का काम करती है, उसी ने फेक न्यूज़ फैलाने का काम किया है। यह ऐसा पहला मामला नहीं है। कई दफा फेक न्यूज़ ANI एजेंसी के द्वारा फैलाया गया है।

ऐसी ही एक खबर में हाल में न्यूज़ एजेंसी ANI ने गौतमबुद्ध नगर डीसीपी के हवाले से ट्वीट करते हुए बताया कि “सेक्टर 5 नोएडा में एक क्वारंटीन सेंटर बनाया गया है, जो लोग तबलीगी जमात के संपर्क में आये हैं उनको यहां रखा गया है।” इसके बाद डीसीपी नोएडा ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ANI की तबलीगी जमात वाली रिपोर्ट को गलत बताया। डीसीपी नोएडा ने ट्वीट कर बताया कि जो लोग पॉजिटिव पाये गये हैं, उन्हें निर्धारित तरीके से क्वारंटीन किया गया है। डीसीपी ने लिखा तबलीगी जमात का कोई जिक्र नहीं है, गलत तरीके से हवाला देते हुए फर्जी खबर फैलायी जा रही है। इसके बाद ANI ने ट्वीट डिलीट कर दिया।

आल्ट न्यूज़ में छपी खबर के मुताबिक 8 अप्रैल को एक ब्रॉडकास्ट के दौरान “रिपब्लिक भारत” चैनल के कायदे के मुताबिक एंकर श्वेता श्रीवास्तव और श्वेता त्रिपाठी टेलीविजन स्क्रीन पर चिल्लाते हुए एक ब्रेकिंग न्यूज़ सुना रही थीं कि “मध्यप्रदेश के खरगोन में एक परिवार के 8 लोग कोरोना पॉजिटिव पाये गये” हैं, जो तबलीगी जमात से जुड़े रहे हैं और उसी में एक व्यक्ति जिनका नाम नूर मोहम्मद है, इनको रिपब्लिक टीवी ने जीते जी मार डाला जबकि यह खबर झूठी थी। नूर मोहम्मद ने खुद एक वीडियो के माध्यम से खुद के जीवित होने की खबर लोगों को दी।

10 अप्रैल 2020 को Zee मीडिया ने एक खबर चलायी थी। खबर कुछ ऐसी थी कि “अरुणाचल प्रदेश में तबलीगी जमात के 11 लोग संक्रमित मिले” हैं। इस खबर को लेकर आईपीआर अरुणाचल प्रदेश में खबर का खंडन करते हुए ट्वीट कर के बताया कि अरुणाचल प्रदेश में कोरोना संक्रमित सिर्फ 1 मरीज है, जिसके बाद जी न्यूज़ ने खेद व्यक्त किया था।

हाल ही में एक वीडियो काफी वायरल हो रहा था, जिसको टीवी मीडिया चैनल्स ने बिना उसकी सत्यता को जांचे धड़ल्ले से चलाया। वीडियो में कुछ मुस्लिम युवक बर्तन चाटते नजर आ रहे थे और दावा यह किया जा रहा था कि ये लोग तबलीगी जमात के लोग हैं और बर्तन चाटकर लोगों में कोरोना फैलाना चाहते हैं। खबर की सत्यता की जब जांच ऑल्ट न्यूज़ ने की तो पाया गया कि जो वीडियो वायरल हो रहा है वो दो साल पुराना है और वीडियो में बर्तन चाट रहे लोग दाऊदी बोहरा समाज के लोग हैं। बोहरा समाज के लोग अन्न का एक दाना भी थाली में नहीं छोड़ते इसलिए थाली को चाट-चाटकर साफ कर रहे थे।

माइक्रोसॉफ्ट द्वारा 22 देशों में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार 64% भारतीयों को फर्जी खबरों का सामना करना पड़ता है। वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 57% का है यह सर्वे भारत में आम चुनाव के पहले आया है।

कोरोना वायरस को लेकर मीडिया चैनल्स में जो आंकड़े दिखाये जा रहे थे उसमें खास बात यह है कि कोरोना के आंकड़ों को धर्म के आधार पर बांट कर मीडिया चैनल्स दिखा रहे थे। इसमें तबलीगी जमात के आंकड़ों को अलग और अन्य आंकड़ों को अलग दिखा दिखाया जा रहा था। बीमारी किसी धर्म या जाति को देखकर तो होती नहीं है, तो किस आधार पर मीडिया चैनल आंकड़ों को अलग अलग कर के दिखा रहे थे। कुछ लोगों की गलती की वजह से संपूर्ण मुस्लिम समुदाय को दोषी करार देना कहां का न्याय है?

इन्‍हीं सवालों को उठाते हुए हाल ही में मुंबई हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली की निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट ने मीडिया को कोरोनो को फैलाने का प्रोपेगेंडा चलाने को लेकर फटकार लगायी है। कोर्ट के फैसले के बाद भी मुख्यधारा के मीडिया ने माफी मांगना मुनासिब नहीं समझा।

माफी मांगना तो दूर की बात है, कई मीडिया चैनलों ने खबर को ब्रेकिंग चलाकर छोड़ दिया। यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि मुख्यधारा का मीडिया खबरें कम दिखा रहा है लेकिन नफरत फैलाने व देश को बांटने का काम बहुत सफाई के साथ कर रहा है।


हिमांशु स्वतंत्र पत्रकार हैं

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