सुनील दत्त और नरगिस का प्रेम यदि आज के यूपी में होता तो…


एक फिल्मकार के तौर पर राज कपूर जी ने प्रेम के विभिन्न आयामों को उद्घाटित करने वाली कई फिल्में बनाई हैं, लेकिन प्रेम के विभिन्न आयामों को उद्घाटित करने वाली घटनाएं उनकी फिल्मों तक ही सीमित नहीं रहीं बल्कि वह उनके जीवन में भी घटित हुईं। राज कपूर के साथ नौ साल तक प्रेम-संबंध में रहने के बाद नरगिस ने उनसे अपना रिश्ता तोड़ लिया। वह भी अपना परिवार और बच्चे चाहती थीं जो शायद राज कपूर के साथ रहते हुए संभव नहीं था।

किश्वर देसाई द्वारा लिखी गई किताब ‘द ट्रू लव स्टोरी ऑफ नरगिस’ के मुताबिक राज कपूर से अलग होने के बाद वो आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगी थीं। आज वैलेंटाइन डे के दिन राज कपूर और नरगिस की प्रेम कहानी के बारे में जानना मौजू होगा।

नरगिस का वास्तविक नाम फ़ातिमा राशिद था। उन्हें यह नाम अपनी मां जद्दन बाई से मिला था। नरगिस उनका स्टेज का नाम था जिससे वह फिल्मों में आने के बाद मशहूर हुईं। अपने हिन्दू पिता उत्तम चन्द मोहन से उन्हें तेजश्वरी उत्तम चन्द मोहन यह नाम मिला था।

राज कपूर और नरगिस की पहली मुलाकात नरगिस के घर हुई थी जब वह उनकी मां जद्दन बाई से मिलने आए थे। जद्दन बाई उस समय भारतीय फिल्म उद्योग की एक महत्वपूर्ण शख्सियत थीं जो फिल्में बनाने में गीत, संगीत और अभिनय से लेकर निर्देशन तक सभी क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती थी। उन्होंने संगीत की शिक्षा दरगाही मिश्र और उनके सारंगी वादक बेटे गोवर्धन मिश्र से ली थी।

1948 में जब उनसे मिलने राज कपूर उनके घर पर आए थे नरगिस उस समय पकौड़े तल रही थीं। दरवाजा उन्होंने ही खोला। उस समय उनके माथे पर बेसन लग गया था। 27 साल बाद जब राज कपूर ने ‘बॉबी’ बनाई तो उसमें डिंपल कपाड़िया के साथ इस दृश्य को दोहराया।

राज कपूर के साथ नरगिस की जोड़ी दस सालों तक चली। उन्होंने साथ में कुल सोलह फिल्मों में काम किया। राज कपूर और नरगिस का प्रेम नौ साल तक चला पर वह कानूनन शादी नहीं कर सकते थे क्योंकि राज कपूर पहले से ही शादीशुदा थे। नरगिस से मिलने से चार महीने पहले ही उनकी शादी हुई थी। राज कपूर कहते थे कि उनके बच्चों की मदर तो उनकी पत्नी कृष्णा जी हैं पर उनके फिल्मों की मदर तो नरगिस ही हैं।

एक समय राज कपूर और नरगिस ने यह तय किया था कि नरगिस उनके अलावा किसी और की फिल्मों में काम नहीं करेंगी, पर साल 1956 में आई फिल्म ‘चोरी-चोरी’ नरगिस और राज कपूर की जोड़ी वाली अंतिम फिल्म थी।

साल भर बाद 1957 में आई महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया’ में नरगिस ने राधा का किरदार निभाया। यह फिल्म सुपरहिट रही और ऑस्कर अवार्ड के लिए भी नामित हुई। इस फिल्म में सुनील दत्त ने नरगिस के बेटे का रोल निभाया था।

नरगिस और सुनील दत्त के पहली बार मिलने का किस्सा भी बड़ा रोचक है। फिल्मों में आने से पहले सुनील दत्त रेडियो सीलोन में नौकरी करते थे। उन्हें रेडियो के लिए नरगिस जी का इंटरव्यू लेना था। वह उनके सामने इतने नर्वस हो गये कि इंटरव्यू ही नहीं ले पाये। उनकी नौकरी जाते-जाते बची। फिल्म की शूटिंग के दौरान सुनील दत्त को देखकर नरगिस को बीते समय की वह घटना याद हो आई और वह हंसने लगी।

यहां भी सुनील दत्त उनके साथ अभिनय करते हुए काफी नर्वस हो जा रहे थे पर नरगिस ने उनको सहज करने की कोशिश की। मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान ही आग लगने का एक दृश्य फिल्माते हुए नरगिस आग की लपटों के बीच फंस गईं। सुनील दत्त ने अपनी जान की परवाह न करते हुए उन्हें आग से निकाला और इसमें वह स्वयं काफी जल गये। वे जब तक अस्पताल में रहे, नरगिस हर एक दिन उनसे मिलने आतीं और इस बीच उनकी बहन के बीमार पड़ने पर नरगिस ने उनका भी इलाज कराया। सुनील इस बात से बहुत प्रभावित हुए और उन लोगों ने एक-दूसरे को अपना जीवन साथी बनाने की बात तय कर ली।

मार्च 1958 में नरगिस और सुनील दत्त ने आर्य समाज के रीति-रिवाजों से गुपचुप तरीके से शादी कर ली। शुरुआत में इस शादी की बात को छुपाकर रखा गया क्योंकि इससे मदर इंडिया फिल्म को नकारात्मक पब्लिसिटी मिल सकती थी क्योंकि इसमें नरगिस और सुनील दत्त ने मां-बेटे का रोल निभाया था।

शादी के समय से लेकर कैंसर से जंग लड़ती अपनी पत्नी के अंतिम समय तक सुनील दत्त उनकी सहायता के लिए हमेशा ही साथ रहे। उनका जीवन प्रेम की अद्भुत मिसाल हमारे सामने रखता है।

नरगिस और सुनील दत्त का परिवार हिन्दू-मुस्लिम एकता की बानगी भी पेश करता है। उनका परिवार मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और चर्च सभी जगह जाता था। हर साल राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म को नरगिस दत्त पुरस्कार दिया जाता है।

इन बातों को आज दोहराने का क्या उद्देश्य है? इसका एक उद्देश्य यह भी है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नवम्बर 2020 में पारित किये गये ‘उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निरोधक अध्यादेश 2020’ के बारे में बात करना, जिसके अनुसार राज्य में धर्म परिवर्तन ग़ैर-जमानती अपराध हो गया है और इसका दोषी साबित होने पर दस साल क़ैद की सजा हो सकती है।

भिन्न-भिन्न धर्मों को मानने वाले दो लोगों के बीच होने वाली शादी या शादी के लिए धर्म बदलने वालों को इस कानून के तहत दण्डित किया जा सकता है।

यह कानून जो बालिगों को एक वयस्क नागरिक के रूप में देखने के बजाय उनके धर्म के आधार पर उनकी पहचान करता है। यह सिर्फ संविधान की मूल भावना के ही विपरीत नहीं है बल्कि यह नागरिकों के मानवाधिकारों की भी अवहेलना करता है।

इसके पहले भी उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार आते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले एंटी रोमियो स्क्वॉड का गठन किया कि इसका उद्देश्य लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा करना है, हालांकि इसकी परिणति प्रेमी जोड़ों को अपमानित और प्रताड़ित करने के रूप में ही देखने को मिली।

उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पारित किया गया यह नया कानून तो भिन्न धर्मों के मानने वालों के बीच होने वाले प्रेम संबंधों में साजिश या षड्यंत्र भांप लेने की मंशा से बना हो ऐसा ही मालूम पड़ता है। यूपी सरकार की देखा-देखी अन्य राज्यों में भी इस तरह के कानून बन रहे हैं।

अतीत की इस बीती हुई इस प्रेम कहानी को याद करते हुए सोच रहा हूं कि सुनील दत्त और नरगिस यूपी में होते और उनके सामने भी यह कानूनी रुकावटें होतीं तो…?


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