बिहार: एक पुल के इंतज़ार में 42 साल से यहां ढलती जा रही हैं पीढ़ियां

मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिले की सीमा पर नेशनल हाइवे 57 से महज डेढ़ किलोमीटर दक्षिण की दिशा में बसा यह गांव अपने ही नागरिकों के प्रति सत्ता, सियासत और प्रशासनिक उपेक्षा का जीता-जागता एक मिसाल है। यह गांव इस बात का सबूत और गवाह है कि आखिर कैसे नेता, जनप्रतिनिधि और अधिकारी उसी जनता से अपना मुंह मोड़ लेते हैं जिसकी सेवा करने का संकल्प लेकर वे अपने पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं।

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भीमा कोरेगाँव: गिरफ्तारियों के आईने में राजनीति और पुलिसबल का चरित्र-परिवर्तन

ऐमनेस्टी इंटरनेशनल की डिजिटल-सिक्युरिटी टीम, ऐमनेस्टी टेक, ने बाद में यह खोज की कि इनमें से एक कंप्यूटर में मालवेयर मौजूद था जिससे उसमें दूर से घुसपैठ करना संभव था। इस आधार पर उन्होंने यह आरोप लगाया कि ये पत्र ‘प्लांटेड’ हो सकते हैं। ये पत्र गढ़ंत होंगे, इस आरोप को खारिज नहीं किया जा सकता, यह देखते हुए कि नक्सलियों के संचार [पत्राचार] ज़बरदस्त कूट-भाषा में होते हैं।

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नीतीश जी! आपको क्या हुआ है? आप किससे लड़ रहे हैं?

आखिर वह कर क्या रहे हैं? बोल क्या रहे हैं? किस के खिलाफ वह लड़ रहे हैं? किस के पक्ष में वह लड़ रहे हैं? उन्हें आगे करके उनके चमचों को बिहार लूटना है. उन्हें गलत जानकारियां दी जा रही हैं. जिस चौकड़ी से नीतीश घिरे हैं, वह भ्रष्ट तो है लेकिन बहुत चालाक है. इनसे यदि वह बाहर नहीं आए तो यह उनका और बिहार का दुर्भाग्य होगा.

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बिहार चुनाव में अबकी जाति के सवाल पर उन्माद नहीं है और यही तेजस्वी की कामयाबी है

दिल्ली स्थित विकासशील समाज अध्ययन पीठ, जिसे संक्षिप्त रूप में सीएसडीएस कहा जाता है, के एक अध्ययन में यह बात उभर कर आई है कि एनडीए फ़िलहाल आगे तो है, लेकिन वह बहुत आगे नहीं हैं. उसके बहुत करीब महागठबंधन है.

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स्मृतिशेष: मुन्ना मारवाड़ी चले गए, काशी अब ‘बाकी’ नहीं है

यह विस्‍थापन सामान्‍य नहीं था। मुन्‍ना मारवाड़ी का पूरा अस्तित्‍व ही विस्‍थापित हो चुका था। मुन्‍नाजी को अब अदालत से भी कोई उम्‍मीद नहीं रह गयी थी। वे बस बोल रहे थे, बिना कुछ खास महसूस किए। मैं उनकी आंखों में देख रहा था, बिना कुछ खास सुने।

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फ्रांस की घटना,साम्प्रदायिकता और भारतीय मुसलमान

गौर से देखिये तो ये दोनों साम्प्रदायिकताएँ एक ही तरह से सोच रही हैं। ये कहने को तो एक दूसरे के विरोधी लग रही लेकिन ये दोनों आपस में एक दूसरे को जस्टिफाई भी कर रही हैं।

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आधी सदी तक सक्रिय एक राजनीतिक जीवन के विरोधाभास

सवाल किसी एक पासवान का नहीं है। सवाल है तथाकथित प्रतिनिधियों का। रामविलास पासवान जी अपने जीवन के आरम्भ में जुझारू दलित नेता रहे हैं। उन्होंने दलितों की सुरक्षा के लिए दलित सेना भी बनाई थी। उनकी सेना कितने दलितों की सुरक्षा कर पाई?

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दिल्ली दंगा: अपराधियों को बचाने और पीड़ितों को फँसाने की अँधेरगर्दी

रिपोर्ट में मानवाधिकार आयोग समेत पूरे न्यायतंत्र को भी उसकी भूमिका के लिए कटघरे में खड़ा किया गया है जो संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अधिवक्ताओं पर हमलों, प्रताड़नाओं और फर्जी मुकदमों का ज़िक्र करते हुए न्याय और देशहित में आठ सूत्रीय मांग भी की गई है।

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कमल शुक्‍ला पर हमले को हिंदू-मुस्लिम रंग देकर दंगा-फ़साद के चक्‍कर में थी भाजपा और आरोपी!

कमल शुक्‍ला फिलहाल रायपुर के बूढ़ातालाब धरनास्‍थल पर आमरण अनशन कर रहे हैं। उन्‍हें अनशन पर बैठे चौबीस घंटा हुआ है और उनकी हालत स्थिर है, लेकिन वे मौजूदा हालात से बहुत निराश और क्षुब्‍ध हैं। उन्‍हें इस बात की शिकायत है पत्रकार सतीश यादव पर हमले की बात को जातिवादी लोगों ने गोल कर दिया और उन पर हमले को लेकर जांच समिति बना दी।

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करोड़ों गरीबों-वंचितों को मिलने वाली राहत के मॉडल को ही ध्वस्त कर देगा FCRA संशोधन बिल

लोकसभा ने सोमवार को यह विधेयक पास किया था, जिसमें सिविल सोसायटी को विदेश से अनुदान प्राप्‍त करने की शर्तों को बतलाया गया है। इसका शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, लोगों की आजीविका, लैंगिक न्‍याय और भारतीय लोकतंत्र पर दूरगामी असर होने वाला है।

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