इमरजेंसी: सरकार की नाफ़रमानी करने पर किशोर कुमार को कैसे प्रताड़ित किया गया


वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने चार किस्त में आपातकाल के कुछ काले अध्याय लिख कर जनपथ को भेजे हैं। दूसरी कड़ी में आपने पढ़ी न्यूजक्लिक के संस्थापक-संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की कहानी, जिन्हें गफलत में एक साल जेल काटनी पड़ी थी। आपातकाल कैसे लगा, इस बारे में शृंखला की पहली कड़ी यहाँ पढ़ सकते हैं। तीसरा अंक आरएसएस के कुछ नेताओं द्वारा आपातकाल में भी माफी मांगने के बारे में था। प्रस्तुत है शृंखला की आखिरी कड़ी।

संपादक

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने जनवरी 1976 में फिल्म उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत शुरू की ताकि आकाशवाणी और टीवी पर इंदिरा गांधी के 20 सूत्री कार्यक्रम की प्रशंसा में तैयार किये जाने वाले कार्यक्रमों के लिए सहयोग लिया जा सके। इस मकसद से मंत्रालय के संयुक्त सचिव सी. बी. जैन, दूरदर्शन के महानिदेशक पी. वी. कृष्णमूर्ति और फिल्म्स डिवीजन के निदेशक ए. के. वर्मा तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल के आदेश पर अप्रैल 1976 के पहले सप्ताह में बंबई रवाना हुए। बंबई में एक बैठक बुलाई गयी जिसमें श्रीराम वोहरा, जी. पी. सिप्पी, बी. आर. चोपड़ा और सुबोध मुखर्जी शामिल हुए। इस बैठक में जी. पी. सिप्पी ने बताया कि गायक किशोर कुमार इस सिलसिले में किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं हैं और मंत्रालय के अधिकारियों को उनसे सीधे बातचीत करनी चाहिए।

इसके बाद सी. बी. जैन ने टेलीफोन पर किशोर कुमार से बातचीत की और इस संदर्भ में सरकारी की नीति से उन्हें अवगत कराया। श्री जैन ने यह भी कहा कि इस सिलसिले में वह और उनके कुछ अधिकारी उनसे मिलना चाहते हैं लेकिन किशोर कुमार इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं स्टेज पर गाता नहीं हूं और यह कि उन्हें दिल की बीमारी है इसलिए डॉक्टरों ने उन्हें पूरी तरह आराम करने की सलाह दी है। फिर उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी भी हालत में इस तरह के कार्यक्रमों के लिए गाना नहीं चाहते। श्री जैन को उनका यह व्यवहार और मिलने से भी इनकार करना बहुत अभद्रतापूर्ण लगा।

दिल्ली वापस पहुंचकर जैन ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव एसएमएच बर्नी को सारी बातें बताते हुए कहा कि किशोर कुमार ने न केवल सरकार के साथ असहयोग करने की बात कही है बल्कि उनका व्यवहार भी बहुत अभद्रतापूर्ण रहा।

विद्याचरण शुक्ल, तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री

इसके बाद 30 अप्रैल 1976 को श्री बर्नी ने एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि (1) किशोर कुमार के सभी गानों के रेडियो और दूरदर्शन से प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया जाय; (2) जिन फिल्मों में किशोर कुमार ने अभिनय किया है उनकी सूची तैयार की जाय ताकि उस पर आगे की कार्रवाई हो; और (3) किशोर कुमार के गीतों के ग्रामोफोन रेकार्ड्स की बिक्री पर रोक लगा दी जाय।

इस कार्रवाई का मकसद अन्य फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को सबक सिखाना था। 4 मई 1976 को आकाशवाणी ने और 5 मई 1976 को दूरदर्शन ने किशोर कुमार के गानों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया। 20 मई 1976 को मंत्रालय के अधिकारियों ने पॉलीडोर से और 4 जून 1976 को एचएमवी रेकार्ड कंपनियों से संपर्क किया और यह पता लगाना चाहा कि किशोर कुमार के गाये गीतों के रेकार्ड्स की बिक्री को कैसे रोका जाय। मंत्रालय के सचिव बर्नी के इस कदम को विद्याचरण शुक्ल ने 14 मई 1976 के अपने पत्र से अपनी स्वीकृति दी। उन्होंने शाह आयोग के समक्ष इन सारी कार्रवाईयों के लिए खुद को जिम्मेदार माना।

(शाह आयोग की रिपोर्ट से)

करुणेश शुक्ल और मीसा का अनोखा इस्तेमाल

हिंदी के वरिष्ठ कवि और साप्ताहिक ‘प्रतिपक्ष’ के संपादक कमलेश डायनामाइट कांड में जेल में बंद बंद थे। उनके भाई डॉक्टर करुणेश शुक्ल ने, जो गोरखपुर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में रीडर थे, दिल्ली में लेफ्टिनेंट गवर्नर को एक याचिका भेजी जिसमें कहा गया था कि उनकी 65 वर्षीय मां बेहद बीमार हैं लिहाजा उनके भाई कमलेश शुक्ल को पैरोल पर रिहा किया जाए। इस याचिका में कहा गया था कि अगर उनके भाई को रिहा नहीं किया गया तो हो सकता है कि उनसे मिलने की मां की अंतिम इच्छा अधूरी रह जाए और उनका निधन हो जाए। मामले की जांच के लिए यह याचिका सीआईडी के पुलिस अधीक्षक केएस बाजवा को भेजी गई जिसका जवाब बाजवा ने 13 अगस्त 1976 को लेफ्टिनेंट गवर्नर के सचिव नवीन चावला के पास भेज दिया।

इस जवाब में बताया गया था कि कमलेश शुक्ल को अप्रैल 1976 को उस समय गिरफ्तार किया गया जब उनके घर से विस्फोटक पदार्थों से भरा एक सूटकेस मिला। उनकी गिरफ्तारी एक्सप्लोसिव सब्सटेंस ऐक्ट 1908 के तहत की गई थी और उन्हें हौज खास थाने में रखा गया। उन्हें मीसा के तहत बंदी बनाया गया।

सवाल यह है कि करुणेश शुक्ल की गिरफ्तारी क्यों हुई? बाजवा की रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता करुणेश शुक्ल ने जानबूझ कर इस तथ्य को छुपा लिया था कि उनके भाई कमलेश के पास से विस्फोटक पदार्थ बरामद हुए थे और इसी आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। बाजवा ने अपने जवाब में यह भी लिखा कि इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी कि उनकी मां बीमार हैं। पुलिस आयुक्त के गोस्वामी ने शाह आयोग के सामने अपने बयान में यह भी बताया कि करुणेश शुक्ल की गिरफ्तारी के बारे में बाजवा के पत्र के अलावा लेफ्टिनेंट गवर्नर के सचिव का भी उनके पास एक फोन आया कि करुणेश शुक्ल को मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया जाए।

बड़ौदा डाइनमाइट केस की चार्जशीट

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शाह आयोग ने इस पर आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को मीसा के तहत गिरफ्तार करने का कोई आधार नहीं है क्योंकि उसने ऐसी कोई जानकारी नहीं छुपाई जो सरकार के पास न रही हो। जहां तक मां की बीमारी का सवाल है, उसकी पुष्टि करने के बारे में पुलिस ने कोई प्रयास नहीं किया और अगर बीमारी की बात गलत हो तो भी याचिकाकर्ता पर मीसा नहीं लगाया जा सकता था।

मनमाने ढंग से मीसा के इस्तेमाल का यह एक नायाब उदाहरण है।


‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के संस्थापक और संपादक आनंद स्वरूप वर्मा वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक और तीसरी दुनिया के देशों के जानकार हैं

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