अगले साल होने वाला उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2024 के आम चुनाव का सेमीफाइनल होगा। पूरे प्रदेश ही नहीं देश में भी इस बात पर चर्चा छिड़ी हुई है कि उत्तर प्रदेश बिहार के रास्ते पर जाएगा या पश्चिम बंगाल के। प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव समाजवाद की उदार विचारधारा और अपने पिछले कार्यकाल के ठोस कामों में भरोसा जताते हैं। उनका मानना है कि इस बार का चुनाव 2017 की तरह फर्जी नहीं, असली मुद्दे पर होगा। लखनऊ में तमाम मुद्दों पर उनके साथ वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी की हुई लंबी बातचीत के महत्वपूर्ण अंश।
संपादक
सन 2017 और सन 2022 में क्या अंतर है? उस समय कौन सी चुनौतियां थीं जो इस समय नहीं हैं?
भारतीय जनता पार्टी लगातार जनता को गुमराह करती रही। कभी वीडियो के माध्यम से तो कभी ह्वाटसैप के माध्यम से। उस समय नया नया माध्यम आया था। गलत खबरें छाप कर उन्होंने जनता को गुमराह किया। हम काम पर बात कर रहे थे। वे जनता को गुमराह कर रहे थे। समाज को बांट कर धर्म और जाति में इन्होंने वोट ले लिया, लेकिन 2022 तक आते-आते जनता ने समझ लिया है कि इन्होंने हर मुद्दे पर धोखा दिया है।
2012 और 2022 में क्या अंतर है? तब मुलायम सिंह जी भी सक्रिय थे और आप को विरासत सौंपी जा रही थी।
जनेश्वर जी के आशीर्वाद से मैं प्रदेश अध्यक्ष बना था। उस समय जिम्मेदारी बड़ी थी। उस समय मैंने तय किया था कि जगह-जगह मैं साइकिल यात्रा करूंगा। छोटी-बड़ी हर तरह की तमाम साइकिल यात्राएं हुईं। जनता हमसे जुड़ी और इतना जनसमर्थन मिला कि हमने मायावती को हरा दिया। जो जनसमर्थन हमें 2011-2012 में दिखायी दे रहा था वैसा आज भी है।
2017 में आपकी पार्टी बिखर रही थी। घर में विवाद था। आज एकता बन गयी है या कोई कमजोरी है अभी भी?
वो समय ऐसा था जिस समय हमारा सिंबल भी नहीं था और घर परिवार से भी झगड़ा हो गया। तमाम चीजें ऐसी बन गयीं कि बड़ी चुनौतियां खड़ी हो गयीं। उस समय चुनाव प्रचार के लिए भी हमारे पास नेता नहीं थे। लोकल लीडर थे या कुछ और लीडर थे, बाकी नेता ही नहीं थे। इसलिए हम लोग बीजेपी का उतना मुकाबला नहीं कर पाए जितना कर सकते थे, लेकिन तब भी पार्टी ने मुकाबला किया।
कोरोना महामारी का क्या प्रभाव होगा? किसानों का आंदोलन लंबे समय से चल रहा है। सभी प्रमुख संस्थाओं की जासूसी चल रही है। इस दौरान विपक्ष की एकता बन रही है। इसमें आपकी क्या भूमिका बन रही है?
किसान आंदोलन में समाजवादी पार्टी पूरी तरह से साथ रही है। आंदोलन को उत्तर प्रदेश में बढ़ाने का काम किया। भारतीय जनता पार्टी ने जो माहौल बनाया है उससे लोग घबरा गए हैं। हर वर्ग का व्यक्ति भारतीय जनता पार्टी को हटाना चाहता है। चाहे वह बौद्धिक वर्ग हो, चाहे नौकरशाही हो, चाहे पत्रकार हो, चाहे बिजनेसमैन हों। एक समय था इन्हीं सबने भाजपा का समर्थन किया था। अब वो निराश हो गए हैं। कहीं कमजोर न हो जाएं, से डर से भाजपा ने फोन टैपिंग शुरू कर दी है। कानून इन्हें अनुमति नहीं देता है। भारत सरकार ने जो पैसा खर्च किया है वह अपनी सरकार बचाने के लिए किया है। वो जानना चाहते हैं कि लोग आखिर क्यों नाराज हैं। जनता ने इन पर भरोसा किया लेकिन वे जनता की जासूसी कर रहे हैं। अपने लोगों की भी जासूसी कर रहे हैं। वे पत्रकारों और रक्षा वालों की भी जासूसी कर रहे हैं। इसका मतलब कितनी इन्सिक्य़ोरिटी है इनके भीतर। याद कीजिए अमेरिका में निक्सन ने इसी तरह की जासूसी की थी विपक्ष की। वाटरगेट कांड हुआ। उसके बाद आज तक अमेरिका में जासूसी नहीं हुई। उस राष्ट्रपति को जाना पड़ा। यह तो देशद्रोह का मामला है। यह सबसे बड़ा अपराध है।
आपने कहा था कि कांग्रेस और बसपा तय करे कि उन्हें सपा से लड़ना है या भाजपा से। इसका एक मतलब यह भी निकाला जा रहा है कि आप चाहते हैं कि गैर-भाजपा दलों के वोट न बंटे। क्या कोई गठबंधन की तैयारी है?
अभी हाल में जिस तरह के बयान आए और बहुजन समाज पार्टी का जिस तरह का स्टेटमेंट आया उसमें कहा गया कि देखना है कि समाजवादी पार्टी न जीत जाए। चाहे हमें कुछ भी करना पड़े। यह बयान बहुजन समाज पार्टी के नेता का था। अभी पंचायत का चुनाव का था। बसपा ने अपना सारा वोट भाजपा को दे दिया। दूसरी कांग्रेस पार्टी है। समय-समय पर समाजवादी पार्टी को बदनाम करने के लिए अखबारों में लेख लिखवाती है। चाहे आजम साहब का नाम हो चाहे मुस्लिम को लेकर हो। तो यह कांग्रेस लगातार कर रही है। इसलिए हमने कहा कि पहले तो यह तय कर लें कि यह दोनों दल किसको हराना चाहते हैं, लड़ाई किससे है।
इन पार्टियों से गठबंधन की कोई गुंजाइश है?
बड़े दलों के साथ दो बार हमने गठबंधन करके देखा, हमारा अनुभव ठीक नहीं रहा। वे बहुत सीटें मांगते हैं। हमारे बहुत से कार्यकर्ता और नेता चुनाव नहीं लड़ पाते, इसलिए हम विचार नहीं कर रहे हैं।
आपके शासन में अपराधी भयमुक्त थे और खुले घूमते थे। कहा जा रहा है कि पहली बार अपराधी डर गए हैं और प्रदेश छोड़ कर भाग गए हैं।
अगर इन्होंने अपराधी उत्तर प्रदेश से भगा दिए हैं तो मैं भाजपा से कहना चाहूंगा कि टाप टेन की सूची जारी कर दें। अपराधी भूमाफिया जितने भी हैं, उनकी सूची जारी कर दें। उससे जनता यह जान जाएगी कि टाप टेन किस पार्टी में हैं। वो जारी नहीं करेंगे। आप अभी पंचायत के चुनाव में गुडागर्दी खुलेआम उत्तर प्रदेश ने देखी। कभी किसी महिला के कपड़े नहीं फाड़े गए होंगे। कई जगह की सूचना है चाहे सिद्धार्थ नगर हो, बस्ती हो, कन्नौज हो (सभी जगह गुंडागर्दी हुई) लखीमपुर का तो टीवी पर दिख गया। पूरा थाना सस्पेंड करना पड़ा। पंचायत के चुनाव में वो कौन गुंडा था जिसने डिप्टी एसपी को झापड़ मारा? किस पार्टी का वह गुंडा था? डीएसपी खुद कह रहा है कि जो बम चलाने वाला था वह भाजपा का था, जो लाठी चलाने वाला था वह भाजपा का था। उसकी रिकार्डिंग है। पूरे पंचायत के चुनाव में देश ने भारतीय जनता पार्टी की गुंडागर्दी देखी।
किन छोटे दलों से तालमेल किया है आपने और किनसे कर रहे हैं?
अभी आरएलडी से हमारी बातचीत हो रही है, वे हमारे साथ हैं। संजय चौहान हमारे साथ हैं। महान दल हमारे साथ हैं। अभी जो दल भागीदारी दल में हैं उनसे बातचीत हो रही है। यह बहुत जल्दी हम बताएंगे कि गठबंधन किसके साथ होगा और सीट किसे कितनी मिलेगी। पूरा पक्का करके जानकारी दे देंगे।
समाजवादी बिखरने के लिए मशहूर हैं। कौन सा गोंद आपने लगाया कि वे एकजुट रहे?
पिछली बातों में मैं जाना नहीं चाहता और उलझना नहीं चाहता। उस समय की परिस्थितियां अलग थीं, लेकिन मुझे खुशी इस बात की है जनता ने हमारे काम और समाजवादी विरासत का समर्थन किया। पूरी पार्टी के वरिष्ठ लोग, जैसे कि आदरणीय जयशंकर दादा थे वे नेताजी के साथ शुरू से काम कर रहे थे, यह सब साथ हमारे खड़े थे। इन सबने पार्टी को बचा लिया। जो सीनियर लीडरशिप थी उसने पूरी पार्टी को बचा लिया। पार्टी बिखरी नहीं। वो `अंकल’ को याद करें तो वे तो ऊपर चले गए। असली खिलाड़ी वे थे, लेकिन उनके लिए अब बोलना उचित नहीं है। मैं कुछ भी बोलूंगा तो कोई मतलब नहीं है। जो हमारे युवा थे नौजवान थे संगठन के लोग थे वो हमारे साथ जुड़ गए और जो काम हुआ था उस समय वो जनता में आज भी महसूस किया जाता है। लोग याद कर रहे हैं कि वह काम समाजवादियों का ही किया-धरा था। चाहे वह एंबुलेंस रही हो, चाहे पुलिस का सौ नंबर रहा हो, आज भी काम वही आ रहा है। कोरोना में वही काम आ रहा है। जो अस्पताल बने, जो मेडिकल कालेज, बने जो सड़कें बनीं, जो बिजली का इंतजाम हुआ। हमने अयोध्या में अडरग्राउंड केबल कर दिए थे। विचारधारा से जुड़े लोग, युवाओं ने पार्टी को बचा लिया। पार्टी बिखरी नहीं पार्टी एकजुट रही।
पिछले सात सालों में राष्ट्रवाद उग्र और आक्रामक हुआ है। इसके कारण तमाम गलतफहमियां बनी हैं। राजद्रोह का कानून है, नेशनल सिक्योरिटी एक्ट है, लव जेहाद का कानून है, इससे लोग परेशान हैं। आप जब जीतेंगे तो इनका कैसे मुकाबला करेंगे? इन कानूनों को खत्म करवाएंगे या इनका कम से कम इस्तेमाल करेंगे?
देखिए, इनका जो राष्ट्रवाद है वह गड़बड़ है। जो यह अपना नेशनलिज्म डिफाइन करते हैं वो आरएसएस वाली बात है। जो आरएसएस डिफाइन करती है उसे दिमाग में रखकर यह अपना राष्ट्रवाद परिभाषित करते हैं। इनका नेशनलिज्म नफरत से भरा हुआ है। नेशनलिज्म या राष्ट्रवाद वह हो सकता है जो हमारे राष्ट्र में शांति पैदा करे। ये लोग शांति को खत्म करते हैं। ये नफरत पैदा करते हुए राष्ट्रवाद का झंडा आगे बढ़ाते हैं। हमारे देश को चाहिए लिबरल विचारधारा, जो भी आइडियोलाजी हो वह उदारवादी हो। रवींद्रनाथ टैगोर जी ने राष्ट्रवाद की जो व्याख्या की है, वह सुंदर है। उनसे बढ़िया किसी ने परिभाषित नहीं किया है क्योंकि हम खाने-पीने से राष्ट्रवाद को परिभाषित नहीं कर सकते हैं। मान लीजिए भाजपा कहती है कि यह नहीं खाओगे आप, यह नहीं पहनोगे आप। आप ऐसा नहीं करोगे, उससे हमारा राष्ट्रवाद परिभाषित नहीं होता है। हमारे ही धर्म में विभिन्नताएं हैं। हम उत्तर प्रदेश मे ही देखें तो तमाम परंपराएं चल रही हैं यहां पर। जैसे लखनऊ से ऊपर देख लें। पूर्वी उत्तर प्रदेश को देख लें। यहां लड़की मां-बाप के पैर छूती है। आप नीचे की ओर चले जाओ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो घर परिवार के लोग बेटी के पैर छूते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अलग परंपराएं हैं। केरल को लें तो वहां अलग परंपरा है। उनका त्योहार अलग है। उनका पहनावा अलग है। उनका खाना-पीना अलग है। उनका एक दूसरे से उठना-बैठना अलग है। मैं गया अभी हैदराबाद। पूरे टेबल पर क्या हिंदू क्या मुसलमान सभी साथ खा रहे थे। इस तरह की बहुत सारी चीजें हैं देश में जिन्हें एकरूप नहीं किया जा सकता। भाजपा का राष्ट्रवाद इसलिए है कि इन्हें वोट चाहिए। इन्हें यूपी में वोट चाहिए, नार्दर्न बेल्ट में वोट चाहिए।
इनके राष्ट्रवाद का देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
इनका नेशनलिज्म शांति को खत्म करता है। जिस नेशन में शांति खत्म हो जाएगी वहां डेमोक्रेसी भी खत्म हो जाएगी। हमें चाहिए उदारवादी लोग। वे ही इस देश को अच्छा चला सकते हैं। इनके नेशनलिज्म का परिणाम देखिए कश्मीर में। डिलिमिटेशन में जो सुझाव आए हैं वे इतने हैं कि उसकी कल्पना ही नहीं कर सकते। जो वादा इन्होंने किया था वह पूरा ही नहीं हो रहा है। इन्होंने कहा कि इन्वेंस्टमेंट आएगा, टूरिज्म बढ़ेगा, नौकरी बढ़ेगी। जो संसद की बहस थी उसमें 24 सीट वाली बात केवल समाजवादी पार्टी ने कही। पूरी डिबेट उठाकर देख लीजिए, किसी ने नहीं कही यह बात। हमने दूसरी बात यह कही कि जब उत्तर प्रदेश में टूरिज्म नहीं आया तो कश्मीर में कैसे आ जाएगा टूरिज्म और इन्वेस्टमेंट। कश्मीर में 370 हटाए दो साल हो गए। अब वहां के लोगों में बहस यह छिड़ी है कि बाहर के लोग जमीन न ले पाएं। जो वहां के बिजनेसमैन हैं वे नहीं चाहते कि बाहर के लोग जमीन लें। उनका कहना है कि हम अलग-अलग हो गए, हमारी लड़ाई पूरी हो गयी लेकिन तब भी वे नहीं चाहते कि बाहर के लोग वहां पर आएं। कोई नहीं चाहता।
लव जेहाद वगैरह के कानून पर क्या कहना है। क्या इसे खत्म करेंगे?
हमारा अधिकार वहीं तक है जहां तक दूसरे का अधिकार नहीं है। ये लोग जानबूझ कर पाबंदियां इसलिए लाते हैं कि उससे समाज में दूरियां बनी रहें। हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सब एक हैं। हम सब यही पढ़ते-लिखते आए हैं। ये लोग रोजगार पर क्यों बात नहीं करते? क्योंकि वे जानते हैं कि उससे लोग जुड़ेंगे। समाज में एकता आएगी। जैसे हम कोई कारोबार करते हैं तो उसमें विभिन्न जातियों के लोग भागीदारी करते हैं। किसी दुकान में जाते हैं तो देखते हैं उसमें काम करने वाले अलग-अलग समाज के लोग हैं। जैसे हलवाई की दुकान पर जाएं तो पाएंगे कि मालिक अग्रवाल है लेकिन बनाने वाला कोई और है। काउंटर पर खड़ा कोई और है। ले जाने वाला कोई और है। कारोबार हमें जोड़ता है। इसीलिए ये लोग कारोबार पर बात ही नहीं करेंगे। काम हमें जोड़ता है। बाजार जोड़ता है। इस तरह की (लव जेहाद जैसी) चीजें वे इसलिए लाते हैं कि इससे वोट मिलता है।
कृषि और रोजगार के मोर्चे पर उत्तर प्रदेश में क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर प्रदेश सबसे बेहतरीन काम खेती में कर सकता है। आज भी हम आलू में नंबर वन हो सकते हैं। हम धान में नंबर वन, हम दूध में नंबर वन हैं। अगर हम इस पर जोर दें तो हमारा किसान भी खुशहाल होगा और देश की अर्थव्यवस्था बेहतर होगी, लेकिन इसी सेक्टर को ये लोग मार रहे हैं। हमने जगह-जगह मंडियां बनानी शुरू की थीं एक्सप्रेस वे से जोड़ते हुए। हमने यूपी में दो करोड़ अंडे का उत्पादन बढ़ाया। हमने दूध का उत्पादन बढाया। अमूल प्लांट खोलना चाहता था, हमने उसे खुलवाया। मदर डेयरी प्लांट खोलना चाहता था, हमने उसे खुलवाया। इन तीन प्लांटों के खुल जाने से 15 लाख लीटर प्रतिदिन किसानों की दूध की खरीद हो गयी, लेकिन भाजपा वाले अमूल में पूरा दूध गुजरात से ला रहे हैं। सोचिए, गुजरात कहां है। वहां के किसानों का दूध लाकर यहां प्रोडक्ट बना रहे हैं। यहां के किसानों का दूध नहीं ले रहे हैं। सबसे ज्यादा जॉब टेक्सटाइल इंडस्ट्री में हैं। सबसे ज्यादा जॉब एग्रीकल्चर सेक्टर में हैं। सबसे ज्यादा जॉब टूरिज्म सेक्टर में हैं। सर्विस सेक्टर में हैं। आखिरकार सर्विस सेक्टर को आपने मजबूत नहीं किया। पर्यटन को मजबूत नहीं किया। आप दूध इम्पोर्ट कर रहे हो, घी इम्पोर्ट कर रहे हो, तेल इम्पोर्ट कर रहे हो, बिस्कुट इम्पोर्ट कर रहे हो। अगर बाहर का आयात कर लोगे तो यहां का माल कहां जाएगा? इनका स्वदेशी मूवमेंट कहां चला गया? जीएसटी गरीब दुकानदार के लिए नहीं थी, वह थी बड़े व्यापारियों और मल्टीनेशनल के हित के लिए थी। अगर विदेश से ही तेल, खाना, पीना सब आ रहा है तो स्वदेशी और आत्मनिर्भर आंदोलन क्यों चलवाया?
खेती के सामने बड़ी समस्या आवारा पशुओं की है। वह क्यों है और उसका निदान कैसे करेंगे?
यह बात किसान भी जानता है लेकिन चुनाव के समय पर वह पता नहीं क्या बन जाता है। सरकार बताए कि छुट्टा जानवरों की व्यवस्था के लिए जो पैसा आवंटित है वह जा कहां रहा है।
क्या आप जाति आधारित जनगणना का समर्थन करेंगे?
जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए क्योंकि इससे नीतियां बनाने में सुविधा होती है। हर जाति यह सोचती है कि हम आबादी में ज्यादा हैं इसलिए भ्रम रहता है। पाल समाज से पूछो तो वह कहेगा कि हम यादवों से ज्यादा हैं। यादव समाज कहता है कि हम उनसे ज्यादा हैं। कुर्मी कहता है कि हम यादवों से ज्यादा हैं। मौर्य कहता है हम कुर्मी से ज्यादा हैं। एक बार हो जाए तो नीति बनाने में बड़ा आराम रहेगा।
आपको जिनता आक्रामक होना चाहिए था उतना नहीं हैं। ऐसा कोई सैद्धांतिक निर्णय है या रणनीतिक है?
ऐसा नहीं है। जिस तरह के संसाधन का इंतजाम भारतीय जनता पार्टी करेगी उसका मुकाबला करना होगा। जिस समय कोई भी दल भारतीय जनता पार्टी से नहीं लड़ रहा था उस समय समाजवादी पार्टी विचारधारा को मजबूत कर रही थी क्योंकि विचारधारा ही काट सकती है इनकी विचारधारा को। हमारी आइडियोलॉजी ही इनको कमजोर कर सकती है। सोशलिस्ट आइडियोलाजी ही मुकाबला कर सकती है इनके नारों का, इनकी रणनीतियों का। सोशलिस्ट और सेक्युलर लोग ही इनका मुकाबला कर सकते हैं। इसलिए हमने शिविरों का आयोजन किया। डेढ़ सौ से ज्यादा विधानसभाएं हमने कवर कर ली थीं। अगर कोविड की लहर नहीं आती तो इस समय तक पूरे उत्तर प्रदेश के 403 विधानसभाओं के शिविर हो चुके होते।