एक मौलवी और महंत गंगा-जमुनी तहजीब को धार्मिक उन्माद के मरुस्थल में पानी का श्रोत बता रहे थे। उन दोनों को मैंने बताया कि एक रिपोर्ट के अनुसार- उत्तर भारत में जल्द ही जलस्तर इतना नीचे चला जाएगा कि गंगा-यमुना मरुस्थल बन सकती हैं। रिपोर्ट की चिंता सुनने के बाद भी वे दोनों चिंतामुक्त थे।
महंत ने बताया- सब भगवान की मर्जी है। अपनी जवाबदेही से बचाने वाले ऐसे जवाब सुनकर मैं बिलकुल भी चिंतित नहीं होता। न ही सोचता हूं- मुनाफे की होड़ और सभ्यता की रेस में आगे निकलने के लिए अंधाधुंध पेड़-पौधे भी भगवान ही कटवा रहा है? गंगा-जमुनी तहजीब को जगह-जगह बाँध बनाकर भगवान ही रोक रहा है?
चिंतामुक्त रहने के लिए ऐसा मैं बिलकुल नहीं सोचता। जवाबदेही से बचाने वाले नए जवाबों की तलाश में प्रश्नों के बारे में सोचता हूं। यही सोचते हुए मैंने मौलवी से कहा- इस बार बहुत तीखी गर्मी पड़ रही है। मौलवी के जवाब से मुझे निराशा हुई। नया जवाब नहीं था न- अल्लाह रोजेदारों का इम्तेहान ले रहा है।
महंत और मौलवी चेतावनी को भगवान और अल्लाह की मर्जी बताकर चिंतामुक्त हो गए। उन्होंने ‘लिंक’ नहीं माँगा- चेतावनी का लिंक दो।
एक कट्टर हिंदू ‘प्रोफाइल’ ने माँग की- उस रिपोर्ट का लिंक दो जिसमें जल्द ही माँ गंगा और यमुना नदी के सूखने की चेतावनी दी गई है। ये माँग मेरी चिंता बढ़ाने वाली थी। ऐसा नहीं है कि मैंने झूठी रिपोर्ट बताई थी, जिसका लिंक मैं नहीं दे सकता। चिंतित इसलिए था कि अल्पायु में ही जिसे बुद्धि का ऊसर बनाया जा चुका है, उसको रिपोर्ट का लिंक देने का क्या फायदा? फिर माँग में व्याप्त उसकी रूचि (माँ गंगा) के बारे में सोचा- इसे लिंक दे देता हूं। पढ़ेगा। पढ़कर हो सकता है बुद्धि के बीज पड़ें। ऐसा सोचकर मुझे खुशी हुई, पर वो क्षणिक थी। कहीं से शोर उठा- देद्दो, देद्दो। माँ गंगा और यमुना नदी के सूखने से होने वाले फायदों की लाखों रिपोर्ट्स पहले से तैयार हैं। उन रिपोर्ट्स की बमबारी उसकी बुद्धि पर कर दी जाएगी। बुद्धि से दूरी फिर ‘मेंटेन’ कर लेगा।
निरर्थक परिश्रम करने का क्या फायदा? यही सोचकर मैंने भी उससे माँग कर ली- पहले हिंदू खतरे में है की रिपोर्ट का लिंक दो। उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा- ऐसी रिपोर्ट्स के लाखों लिंक हैं। अभी देता हूं। मैंने टोका- शायद तुमने ध्यान नहीं दिया होगा, उन रिपोर्ट्स के साथ एक ‘स्टार’ बना रहता है। स्टार के बारे में कहीं छोटे अक्षरों में लिखा होगा- ‘टर्म्स एंड कंडीशन अप्लाइ’। उन टर्म्स एंड कंडीशन का भी पूरा ब्यौरा देना, जिसमें बताया गया हो कि हिंदू किन परिस्थियों में और कब खतरे में होता है। देत्ता हूँ, देत्ता हूँ कहकर वो चला गया। मैं निश्चिन्त हो गया- मेरी माँग पूरी नहीं होगी।
वो नया-नया कट्टर हिंदू हुआ है। नवढ़ा है। इसलिए मेरी माँग नहीं पूरी कर सकता। कट्टरता में प्रौढ़ हो चुके हिंदू मेरी माँग पूरी कर सकते हैं। कट्टरता की प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर लेने के बाद वे नवढ़ा तैयार करते हैं, पर नवढ़ों को नहीं बताते कि हिंदू कब और किन परिस्थितियों में खतरे में होता है। खतरे में होने की ‘टर्म एंड कंडीशन’ क्या हैं। वे जानते हैं कि नवढ़ा जब कट्टरता की प्रौढ़ावस्था में पहुँचेगा, जवाब अपने आप मिल जाएगा।
कट्टरता की प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुके एक हिंदू हैं। प्रौढ़ावस्था में ‘सेटल’ होने के बाद वे नवढ़ा तैयार करने की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं। नवढ़ों को ‘’हिंदू खतरे में हैं’’ का लिंक देते रहते हैं (उसी लिंक का उर्दू अनुवाद इस्लाम खतरे में है। तो कौन ए टीम है, कौन बी टीम है, या कौन किसकी टीम है में वक्त जाया नहीं करना चाहिए)।
उनकी जीवनशैली की रेकी करने पर टर्म्स एंड कंडीशन का लिंक मिल जाता है। उनकी एक दुकान है- मेंस सलोन। दुकान के बाहर नवढ़ों को वे ‘’हिंदू खतरे में है’’ का लिंक देते हैं। दुकान के अंदर मुसलमान कारीगरों से बाल-दाढ़ी बनवाते हैं। फेशिअल, ब्लीच कराते हैं। मसाज भी कराते हैं। प्रौढ़ावस्था में सेटल हो चुकी उनकी कट्टरता के अनुसार- धंधे का कोई धर्म नहीं होता, हालाँकि वे पूरी तरह प्रौढ़ नहीं हैं। हो पाएंगे, इसके बारे में अनिश्चित हूँ। शायद ही वे पूरी बात जान सकें- धंधे का कोई धर्म नहीं होता और बनिये की कोई जात नहीं होती।
महंत और मौलवी को भगवान और अल्लाह की मर्जी के बाहर भी देख लेना चाहिए कि देश में और किसकी मर्जी चल रही है। कौन सा नया ‘ट्रेंड’ चल रहा है। ट्रेंड को पकड़ लेंगे तो जवाबदेही से बचने के लिए भगवान और अल्लाह को बीच में घसीटने की आवश्यकता नहीं होगी। उन्हें भी सत्यशोधकों की तरह लिंक माँगना चाहिए।
लिंक माँगने के ट्रेंड ने समाज में सत्यशोधकों की संख्या बढ़ा दी है। अब कहे-सुने पर भरोसा नहीं किया जा रहा। अपनी आँखों से देखने की माँग की जा रही है। देखने के बाद मानने की बात कही जा रही है।
शोधन (प्रयोग) करने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है। जिसके पास जितना अधिक पैसा है, वो उतने अधिक सत्य का शोधन कर रहा है। शोधन के नाम पर दोहन। जैसे खनन के नाम पर अवैध खनन। कारोबारी सत्य का शोधन करने में भी अव्वल हैं। वे सत्य का शोधन करने वाली कई प्रयोगशालाओं को फंड देते हैं। सत्य का शोधन करने वाले सत्य को घसीटते हुए अपनी प्रयोगशाला में ले जाते हैं। सत्य आनाकानी करता है तो उसका अपहरण कर ले जाते हैं। प्रयोगशाला में सत्य पर अपनी ‘केमेस्ट्री’ के रसायनों का छिड़काव करते हैं। रसायनों के प्रभाव से सत्य शोधित हो जाता है। जलकर राख हो जाता है। सत्य की राख को नए सत्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। राख को आकर्षक पैकिंग में लपेटकर प्रस्तुत किया जाता है। पैकिंग देख माथा फिरंट हो जाता है- यही सत्य है। बाकी सब असत्य है। मिथ्या है। नकली है।
नवढ़ा को प्रौढ़ावस्था के पहले ही सेटल होने की लगन लगा लेनी चाहिए। सेटल होने के बाद नवढ़ा के बयान ही लिंक का रूप लेने लगेंगे। उसके अनुयायी उसे अंतिम सत्य मान उसकी रक्षा के लिए प्राण भी ले सकते हैं। अभी सड़कछाप स्थिति में रहते हुए उसे लिंक माँगने से बचना चाहिए। बयान देने से यथासंभव बचना चाहिए। अनुयायियों के अभाव में उसके बयान को अंतिम सच मान ‘वायरल’ कौन करेगा? सड़कछाप स्थिति में अगर वो चौराहे पर चिल्ला-चिल्ला कर भी कहे कि अमुक धर्म खतरे में है, तो किसी के कदम नहीं ठिठकेंगे। कोई नहीं सुनेगा। बल्कि लोग हँसेंगे- इसका माथा फिरंट हो गया है। गंभीर होकर भी कहे तब भी कोई असर नहीं होगा- कौन है ये? पता नहीं क्या अनाप-शनाप बक रहा है।
खतरे वाली बात वो सेटल होने के बाद फुसफुसाकर भी कह दे, तो सूखी घास में लगी आग की तरह उसकी बात देश में दहकने लगेगी। इसके लिए पहले उसे सेटल होना होगा। अपनी पहचान बनानी होगी। सेटल होने के कई उपाय हैं। रास्ते हैं। ऊँची पहुँच है तो मात्र उस धर्म का कपड़ा पहन लेने से ‘डायरेक्ट सेटलमेंट’ हो जाएगी। पहचान बन जाएगी। पहुँच नहीं है, तो सेटल तक पहुँचाने वाली पगडंडियों पर चलते हुए जाना होगा।
इधर एक वकील है- अधिवक्ता अमुक देव। उनके साथी, परिजन, मुवक्किल, मीडिया मित्र उन्हें अमुक देव के नाम से ही जानते हैं। मैं उन्हें किसी और नाम से जानता हूँ- अधिवक्ता आहत देव। फौजदारी, दीवानी, आयकर आदि मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता होते हैं। वे आहत विशेषज्ञ हैं। आए दिन उनकी भावना आहत होती है। आए दिन मीडिया में आता है- अमुक समुदाय विशेष की भावना के साथ छेड़छाड़ की मंशा के खिलाफ अधिवक्ता अमुक देव ने परिवाद दायर किया। दायर करने के बाद क्या हुआ? सुनवाई हुई या नहीं? आरोपी को सजा हुई या नहीं? इसकी खबर कभी नहीं आती।
वे अधिवक्ता के रूप में सेटल हो चुके हैं, पर उतने से संतुष्ट नहीं हैं। सालिसीटर जनरल बनना चाहते हैं। अपनी पहचान को राष्ट्रीय बनाने के लिए वे परिवाद-पर-परिवाद, परिवाद-पर-परिवाद दायर करते जा रहे हैं। पता नहीं उनके दाखिल परिवादों को तारीख-पर-तारीख, तारीख-पर-तारीख मिलती है या नहीं? इसकी खबर ही नहीं आती तो कैसे पता चले? परिवाद दायर करने से उनकी पहचान का दायरा दो-चार किलोमीटर बढ़ जाता है। तो वे आगे का झंझट नहीं पालते।
ऐसा नहीं है कि आहत देवों को पसंद करने वाली सरकार की आँख का तारा बनने की कीमत वे नहीं चुकाते। चुकाते हैं। परिवाद दायर करने की खबर देने और उसके आगे की खबर न देने के बदले वे मीडिया मित्रों को प्रसाद देते हैं। चढ़ावे का हिस्सा देते हैं। कालभैरव के चढ़ावे का हिस्सा। उनके मीडिया मित्रों को सावधानी से प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। प्रसाद का सेवन अधिक मात्रा में करने से ऐसा भी हो सकता है कि वे कहीं पड़े हों और कालभैरव की सवारी उनका मुँह चाट रही हो।
उनके मीडिया मित्रों की पहचान छोटी है। बड़ी पहचान वाले मीडिया मित्र प्रसाद के अत्यधिक सेवन के कारण धुत पड़े हुए हैं। कुत्ता उनका मुँह चाटे जा रहा है। उनका नशा पता नहीं कब उतरेगा?
आपको पता है ना अधिवक्ता आहत देव कालभैरव को कौन सा प्रसाद चढ़ाते हैं? और कालभैरव की सवारी कौन है? नहीं पता? तो मैं बताने का खतरा क्यों मोल लूँ? भोग और सवारी का नाम लेने से अधिवक्ता अमुक देव की भावना आहत हो सकती है। उन्हें एक और परिवाद दायर कर अपनी पहचान का दायरा दो-चार किलोमीटर बढ़ाने का मौका मिल सकता है। ये मौका मैं उन्हें दूँगा नहीं।