पंचतत्व: सतभाया का शेष


उन दिनों मैं डीडी न्यूज़ में काम करता था और तब वहां के नए-नवेले नियुक्त एक भारतीय सूचना सेवा के मित्रवत अधिकारी ने अपनी एक तस्वीर दिखाई थी, जिसमें वह भीतरकनिका नेशनल पार्क के भीतर अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत भारत दर्शन में गए थे.

मैंने पूछा, आपने भारत दर्शन किए, भीतरकनिका देखा? उन्होंने गहिरमाथा घड़ियाल अभयारण्य (जो भीतरकनिका में ही है) देखा, पर भीतरकनिका के भीतर नहीं देखा.

ओडिशा में है केंद्रपाड़ा जिला, जिसमें है भीतरकनिका नेशनल पार्क और उसके भीतर है (थी) एक पंचायत- सतभाया. भीतरकनिका ऑलिव रिडले कछुओं के प्रजनन का इलाका भी. इसी के साथ जैव-विविधता की प्रचुरता भी है इस इलाके में.

भीतरकनिका ऑलिव रिडले कछुओं के प्रजनन का इलाका

सतभाया, उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर केंद्रपाड़ा ज़िले की एक पंचायत है. यह सात गांवों का समूह है. 1930 के भू-राजस्व के दस्तावेज़ यानी खतियान दिखाते हैं कि उस वक्त सतभाया पंचायत के तहत 320 वर्ग किलोमीटर की ज़मीन थी, जबकि 2000 के राजस्व रिकॉर्ड्स के मुताबिक इलाके में महज 155 वर्ग किलोमीटर की ज़मीन बची है और सात में से पांच गांवों को आगे बढ़ते समंदर ने लील लिया है. खतियान के रिकॉर्ड्स की पुष्टि उपग्रह से प्राप्त चित्रों ने भी की है.

खतरे की बात यह है कि बंगाल की खाड़ी उड़ीसा के कई गांवों की तरफ ख़तरनाक तरीके से बढ़ रही है. यह खेत-खलिहानों, गांव-जवार और जंगलों को अपनी आगोश में लिए जा रहा है. इससे आजीविका के लिए समुद्रों पर निर्भर गांववालों के लिए मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा है. इस आपदा से सबसे अधिक प्रभावित है सतभाया पंचायत.

पचपन साल पहले कानपुरू गांव से समुद्र कोई 5 किलोमीटर दूर था. आज समुद्र ने गांव को छू लिया है. कानपुरू के सतरह घर, दो ट्यूब वेल, और दो चावल मिलों को समंदर ने निगल लिया है. इनमें से एक ट्यूबवेल गांव के बीचों-बीच था और अब वह समंदर की तल में सौ फुट नीचे है. गांव के बचाव के लिए लगाई गई रेत की बोरियां भी समंदर की चपेट में हैं.

कानपुरू में 303 घर बचे हैं और उनमें अफरातफरी का, बेचैनी का आलम बना रहता है. पड़ोस के सतभाया गांव में भी परिस्थिति कमोबेश ऐसी ही है. हर साल समुद्र करीब 80 मीटर आगे बढ़ जाता है.

इन गांवों को इस इलाके में कनिका राजा के काल में शुरुआती 19वीं सदी में मैंग्रोव के जंगल साफ करके बसाया गया था. मैंग्रोव जंगलों की उपजाऊ ज़मीन में सतभाया एक संपन्न इलाके में तब्दील हो गया था.

मुझे कुदरत से मुहब्बत है और इस इलाके की अपार हरियाली से मुझे खुशी होनी चाहिए थी, लेकिन जब मैं गांव के पास पहुंचा तो वहां की हालत देखकर कलेजा धक्क से रह गया. अब वहां गोविंदपुर, खारीकुला, महनीपुर और सारापदा समेत पांच गांव पूरी तरह समुद्र के पेट में जा चुके हैं. कानपुरू आधा डूब चुका है और सतभाया आखिरी सांस लिए समंदर के आगे बढ़ जाने की बाट जोह रहा है.

समुद्र ने गांव की खेती लायक 1061 एकड़ ज़मीन, घर-बार सबकुछ निगल लिया है. समंदर अब भी रुका नहीं है, दिन-ब-दिन आगे ही बढ़ रहा है. दुनिया भर में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मालदीव, किरिबाती, तुवालू और पापुआ न्यू गिनी के डूब जाने का खतरा शायद कुछ दशक दूर हो, लेकिन सतवाया के गांव वाले चढ़ते समंदर का कोप झेल रहे हैं और यह विपदा आगे शायद और भी घनी हो.

इस पंचायत में बड़े पैमाने पर विस्थापन की शुरुआत 1966 में हुई, जब गोविंदपुर में समुद्री पानी चक्रवात की वजह से घुस आया और गांव को डुबो गया. उसके बाद वहां के लोग बागापटिया, ओकिलपाला और महाकालपाड़ा की तरफ जाकर बसने लगे.

1971 की चक्रवाती लहरों ने गोविंदपुर को पूरी तरह डुबो दिया. 1970 के पहले सतभाया पंचायत में सात गांव थे. उनमें से अब सिर्फ डेढ़ गांव बचे हैं. 1980 के दशक में समंदर में समाने वाले गांवों में सबसे पहले थे, गोविंदपुर, महनीपुर, और कुनरियोरा गांव. खारिकुला और सारीपदा गांव 1990 के दशक के मध्य में समंदर में डूब गए. धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए समंदर ने गोविंदपुर, खारीकुला, महनीपुर सारापदा समेत पांच गांवों को भारत के भौगोलिक नक्शे से मिटा दिया.

सतभाया का आखिरी मंदिर

सतभाया पंचायत के लोग अपनी जड़ों से उखड़ते गए, और पुनर्वास के लिए उन्हें कुछ जगहों पर बसाया गया. पर नेशनल पार्क के अंदर उनके लिए संभावनाएं कम थीं. जो डेढ़ गांव बचे हैं, वहां रहने वाले लड़कों का ब्याह नहीं होता.

सतभाया पंचायत के डूबते जाने के साथ ही उस इलाके की दस हजार परिवारों का भविष्य भी डूबा है. विस्थापन हमेशा दर्द देता है और धीरे-धीरे हो, टुकड़ो में हो तो प्रशासन की निगाह में रजिस्टर भी नहीं होता.

उसी तरह, जैसे हमारे मित्र अधिकारी भीतरकनिका तो गए, घड़ियाल तो देखा, लेकिन वहां के इंसानों का दर्द देखना भूल गए.



About मंजीत ठाकुर

View all posts by मंजीत ठाकुर →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *