तिर्यक आसन: गाँधी के अपभ्रंश और हाइजीनिक वैष्णवों का ब्लूप्रिन्ट

अफीम के डर से चाय मना कर दी थी। अंदाजा नहीं था कि बातों की अफीम खानी पड़ेगी। वो जारी रहा- महात्मा गांधी ने कहा था- पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। तुम उल्टा करते हो। पापी से घृणा करते हो, पाप से नहीं। हमने महात्मा गांधी के कथन को पूरी तरह अपनाया है। हम पापी से घृणा नहीं करते। न ही पाप से। अधिक सहिष्णु कौन हुआ?

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बात बोलेगी: भारतेन्दु की बकरी से बाबरी की मौत तक गहराता न्याय-प्रक्रिया का अंधेरा

‘गिल्ट बाइ एसोसिएशन’ जैसे आज के दौर की एक मुख्य बात हो गयी है। दिल्ली में हुई हिंसा हो या भीमा कोरेगांव की हिंसा, दोनों में न्याय प्रक्रिया उसी प्रविधि का इस्तेमाल कर रही है जो उस राज्य में प्रचलित थी, जिसकी कहानी हमें भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने सुनायी थी।

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तन मन जन: साल दर साल विकास लक्ष्यों का शतरंजी खेल और खोखले वादे

विश्व स्वास्थ्य संगठन का वादा था- सन् 2000 तक सबको स्वास्थ्य, लेकिन स्थिति नहीं बदली। फिर सहस्राब्दि (मिलेनियम) विकास लक्ष्य 2015 तय हुआ। वह भी हवा-हवाई हो गया। अब टिकाऊ (सस्टेनेबल) विकास लक्ष्य 2030 तय हुआ है। समझा जा सकता है कि “जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा”।

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पॉलिटिकली Incorrect: लेनिन की किताब के उस मुड़े हुए पन्‍ने में अटकी देश की जवानी

जिस अनुपात में भारतीय अर्थव्यवस्था मिस-मैनेज हो रही है, हो सकता है कि आने वाले दिनों में किसी 15 अगस्त या 26 जनवरी को मोदी, बिड़ला की जागीर हो चुके लाल किले की प्राचीर से भगत सिंह को ‘टीम वर्क’ का गुरु घोषित कर दें और शहीदे आज़म भगत सिंह सरकारी कार्यालयों में मैनेजमेंट गुरू के फ्रेम में दिखना शुरू हो जाएं।

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गाहे-बगाहे: ‘लोग’ मुंह में ज़बान रखते हैं, काश पूछो कि…

मुझको यह देखकर हैरानी हुई कि अपने भीतर क्रूरता की हद तक देशभक्ति का जज्बा भरे जाने के बावजूद सिपाही अपने अफसरों के सामने एकदम दब्बू और कुंदज़ेहन बने रहते हैं। उन्हें डिसमिस और दण्डित होने का भीषण भय सताता रहता है। और इस प्रकार वे अपने लिए एक सतत झूठ का ताना-बाना बुनते रहते हैं।

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दक्षिणावर्त: More Power to You, Anushka! (ये शीर्षक नहीं, डिसक्लेमर है)

हाल यह है कि हम पोस्ट-ट्रुथ के युग में जी रहे हैं, जहां लिखे हुए शब्दों पर ही भरोसा नहीं है। जिस वक्त कुछ भी लिखा या कहा जा रहा है, लोगों के दिमाग में यह बात आती है कि यह झूठ तो नहीं, फ़ेक तो नहीं?

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पंचतत्व: देर आरे, दुरुस्त आरे

पिछली भाजपा सरकार यह मानती ही नहीं थी कि यहां, आरे में कोई वनक्षेत्र मौजूद भी है. सचाई यह है कि यहां करीब दस लाख पेड़ हैं. अब जब उद्धव ठाकरे ने यहां वनक्षेत्र को संरक्षित बनाने की घोषणा की है, तो इसे देर आयद दुरुस्त आयद निर्णय कहा जा सकता है.

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आर्टिकल 19: जो चैनल चला रहा है, उसी को किसानों को भी लूटना है! खेल समझिए…

दरअसल, करोड़पतियों के नींद, चैन, सुकून का हिसाब-किताब करने में व्यस्त टीवी चैनलों को फुर्सत नहीं मिल पा रही है कि वो माथे पर चुहचुहाते पसीने से तरबतर किसानों की छिन चुकी नींद और सुकून की खबर ले लें और खबर दे दें।

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तिर्यक आसन: विश्‍व का सबसे बड़ा गरीब गुंडा बनने के छोटे-छोटे नुस्‍खे

विकास के नाम पर जनता से लूट ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का भारतीय संस्करण है। लूट जितनी बढ़ेगी, रैंकिंग उसी अनुपात में सुधरेगी। लाखों करोड़ का कर्ज बट्टे खाते में डाल देने और कर्जदारों को दिवालिया घोषित करने से बिजनेस ‘ईजी’ हो जाता है।

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बात बोलेगी: महबूब की मेहंदी रंग लायी! मितरों… लख लख बधाई!

टाइम मैगजीन के संपादक ने खुद इनके बारे में लिखा है कि ‘’नरेंद्र मोदी ने सबको संदेह के घेरे में ला दिया है। मुसलमानों को निशाना बनाकर बहुलतावाद को नकारा है। महामारी उनके लिए असंतोष को दबाने का साधन बन गयी है और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतन्त्र और गहरे अंधेरे में चला गया है।‘’

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