पॉलिटिकली Incorrect: लेनिन की किताब के उस मुड़े हुए पन्‍ने में अटकी देश की जवानी

जिस अनुपात में भारतीय अर्थव्यवस्था मिस-मैनेज हो रही है, हो सकता है कि आने वाले दिनों में किसी 15 अगस्त या 26 जनवरी को मोदी, बिड़ला की जागीर हो चुके लाल किले की प्राचीर से भगत सिंह को ‘टीम वर्क’ का गुरु घोषित कर दें और शहीदे आज़म भगत सिंह सरकारी कार्यालयों में मैनेजमेंट गुरू के फ्रेम में दिखना शुरू हो जाएं।

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गाहे-बगाहे: ‘लोग’ मुंह में ज़बान रखते हैं, काश पूछो कि…

मुझको यह देखकर हैरानी हुई कि अपने भीतर क्रूरता की हद तक देशभक्ति का जज्बा भरे जाने के बावजूद सिपाही अपने अफसरों के सामने एकदम दब्बू और कुंदज़ेहन बने रहते हैं। उन्हें डिसमिस और दण्डित होने का भीषण भय सताता रहता है। और इस प्रकार वे अपने लिए एक सतत झूठ का ताना-बाना बुनते रहते हैं।

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दक्षिणावर्त: More Power to You, Anushka! (ये शीर्षक नहीं, डिसक्लेमर है)

हाल यह है कि हम पोस्ट-ट्रुथ के युग में जी रहे हैं, जहां लिखे हुए शब्दों पर ही भरोसा नहीं है। जिस वक्त कुछ भी लिखा या कहा जा रहा है, लोगों के दिमाग में यह बात आती है कि यह झूठ तो नहीं, फ़ेक तो नहीं?

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पंचतत्व: देर आरे, दुरुस्त आरे

पिछली भाजपा सरकार यह मानती ही नहीं थी कि यहां, आरे में कोई वनक्षेत्र मौजूद भी है. सचाई यह है कि यहां करीब दस लाख पेड़ हैं. अब जब उद्धव ठाकरे ने यहां वनक्षेत्र को संरक्षित बनाने की घोषणा की है, तो इसे देर आयद दुरुस्त आयद निर्णय कहा जा सकता है.

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आर्टिकल 19: जो चैनल चला रहा है, उसी को किसानों को भी लूटना है! खेल समझिए…

दरअसल, करोड़पतियों के नींद, चैन, सुकून का हिसाब-किताब करने में व्यस्त टीवी चैनलों को फुर्सत नहीं मिल पा रही है कि वो माथे पर चुहचुहाते पसीने से तरबतर किसानों की छिन चुकी नींद और सुकून की खबर ले लें और खबर दे दें।

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तिर्यक आसन: विश्‍व का सबसे बड़ा गरीब गुंडा बनने के छोटे-छोटे नुस्‍खे

विकास के नाम पर जनता से लूट ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का भारतीय संस्करण है। लूट जितनी बढ़ेगी, रैंकिंग उसी अनुपात में सुधरेगी। लाखों करोड़ का कर्ज बट्टे खाते में डाल देने और कर्जदारों को दिवालिया घोषित करने से बिजनेस ‘ईजी’ हो जाता है।

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बात बोलेगी: महबूब की मेहंदी रंग लायी! मितरों… लख लख बधाई!

टाइम मैगजीन के संपादक ने खुद इनके बारे में लिखा है कि ‘’नरेंद्र मोदी ने सबको संदेह के घेरे में ला दिया है। मुसलमानों को निशाना बनाकर बहुलतावाद को नकारा है। महामारी उनके लिए असंतोष को दबाने का साधन बन गयी है और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतन्त्र और गहरे अंधेरे में चला गया है।‘’

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राग दरबारी: संपादक से सभापति के बीच ठाकुर हरिवंश नारायण सिंह के करतब

क्या सचमुच वे सारे के सारे बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता इतने भोले थे/हैं कि उन्हें संपादक हरिवंश की कमी नजर नहीं आयी? और तो और, जब उन्हें नीतीश कुमार ने राज्यसभा में मनोनीत किया तब भी इन समझदार लोगों को समझ में नहीं आया कि हरिवंश कितने शातिर खिलाड़ी रहे हैं?

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पॉलिटिकली Incorrect: सत्ता का वर्ग-युद्ध बनाम ट्रेड यूनियनों की सदिच्‍छा

तीन लेबर कोड बिल- इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी और ऑक्‍युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा गया था और मामूली रद्दोबदल के साथ वो अब सीधे लोकसभा में प्रवेश कर चुके हैं।

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तन मन जन: COVID-19 के बीच ग्‍लोबल वार्मिंग के खिलाफ़ अपनी इम्‍यूनिटी बढ़ा रहे हैं वायरस

स्विस वैज्ञानिकों के इस अध्ययन के अनुसार पानी में पनपने वाले वायरस जो बढ़ते तापमान में रहने योग्य बन जाते हैं, वे लम्बे समय तक रोगों को फैला सकते हैं। इन पर क्लोरीन जैसे कीटाणुनाशकों का भी असर नहीं होता।

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