तिर्यक आसन: गाँधी के अपभ्रंश और हाइजीनिक वैष्णवों का ब्लूप्रिन्ट


8 मार्च 2018 के अखबार से पता चला, पाकिस्तान में हाफिज सईद की पार्टी को पंजीकरण की अनुमति दे दी गई। अखबार के अनुसार भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसे चौंकाने वाला कदम बताया है। प्रवक्ता के अनुसार हाफिज सईद के हाथ निर्दोष लोगों के खून से रँगे हुए हैं। हाफिज सईद पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की प्रतिक्रिया औपचारिकता लगती है। पाकिस्तान में हाफिज सईद की पार्टी को पंजीकरण की अनुमति मिल गई, इसमें चौंकने वाली क्या बात है?

खबर पढ़ी तो हाफिज सईद समर्थकों की राय जानने की उत्सुकता जगी। कैसे जाऊँ पाकिस्तान? पाकिस्तान जाने के लिए एक पदाधिकारी के यहाँ पहुँचा। वो एक पार्टी की अनुषांगिक इकाई का मोहल्ला प्रभारी है। वो एक सोसाइटी में रहता है। सोसाइटी विशेष गुणों की खान है। सोसाइटी के कुछ सदस्यों के कान में नाक लगी हुई है। कुछ की आँख में नाक लगी हुई है। कुछ ऐसे गुणवान भी हैं, जो आँख और कान दोनों में नाक रखते हैं। विशेष गुणों की बदौलत सोसाइटी के निवासियों की लगन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’ से भी सुबह-शाम नियमित रूप से लगने लगी है।

सोसाइटी के मुख्य द्वार पर कई व्यक्तित्वों की आदमकद प्रतिमा है। कुछ पूर्ण हैं। कुछ निर्माणाधीन हैं। सोसाइटी ने उनके व्यक्तित्व में परिवर्तन किए हैं। व्यक्तित्व के पृष्ठों में काँट-छाँट की है। कुछ परिवर्तन पूर्ण हो चुके हैं। कुछ को पूर्ण बनाने के लिए परिवर्तन निर्माणाधीन है। एक प्रतिमा अपना शौचालय साफ कर रही है। उसने हाथ में दास्ताने पहने हुए हैं। मुँह पर मास्क लगा हुआ है। पैरों में ‘इम्पोर्टेड’ कीटाणु रक्षक है। बदन पर एक सफेद धोती लंगोट के रूप में है। सफेद धोती उस सोसाइटी की प्रतिबद्धता से मेल नहीं खाती। सोसाइटी धोती की जगह प्रतिमा को चड्ढी पहनाकर अपने रंग में रंगने के परिवर्तन में लगी हुई है। 

सोसाइटी से कई किलोमीटर दूर सड़क पर एक जानवर की आकस्मिक मृत्यु हुई। सोसाइटी में चर्चा शुरू हुई- जानवर वहीं पड़ा रहा तो बदबू यहाँ तक आ सकती है। चर्चा कान में लगी नाक ने सुनी। सुनते ही बदबू होंठ के ऊपर लगी नाक में आ गई। रुमाल से नाक बंद कर ली- कितनी बदबू आ रही है। मास्क पहनना पड़ेगा। आँख में लगी नाक ने कहा- मुझे भी देखना है। कई किलोमीटर दूर स्थित बदबू देखने के लिये उसने दूरबीन लगाई। दूरबीन ने बदबू को देखा। देखते ही बदबू होंठ के ऊपर लगी नाक में आ गई। रुमाल से नाक बंद कर ली- कितनी बदबू आ रही है। मास्क पहनना पड़ेगा।

इनसे सोसाइटी के टेरेस पर गमले में उगे फूल की खुशबू पूछो, तो आँख और कान में लगी नाक काम करना बंद कर देती है। पेट और पीठ एक कर देने वाली साँस खींचने वाला योगा करने के बाद भी फूल की खुशबू नहीं आती। होंठ के ऊपर वाली नाक से सटाकर सूँघने के बाद ही बता पाते हैं- अच्छी खुशबू है। आँख और कान में लगी नाक सिर्फ बदबू की स्थापना करती है! पर हाँ, सोसाइटी के निवासियों की लगन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’ से सुबह-शाम नियमित रूप से लगने लगी है। वे ‘हाइजीनिक’ वैष्णव जन हैं। वे लगन का कुल्ला करते हैं।

हाइजीनिक वैष्णव जन यदा-कदा अपने सरकार से नाराज हो जाते हैं। शिकायत करते हैं- आँख और कान में नाक रखने की योग्यता के बाद भी हमारे सरकार बेल्जियम से स्निफर डॉग क्यों मँगवाते हैं? ऐसा कर वे रोजगार के हमारे मूलभूत अधिकारों का हनन करते हैं! सरकार इनकी नाराजगी दूर करने के लिए किसानों, श्रमिकों के खून से सने अध्यादेशों की हड्डी फेंक देती है। हड्डी पाकर उनकी नाराजगी दूर हो जाती है। वे हड्डी चुभलाने लगते हैं। 

पदाधिकारी के घर पहुँचा। वो कहीं निकलने की तैयारी कर रहा था। पार्टी द्वारा निर्धारित ‘अंडरस्टुड ड्रेस कोड’ धारण कर रहा था। मुझे देखा तो खुश हो गया। निकलने की तैयारी रोक दी। 

जब भी मैं उससे मिलने जाता हूँ, खुश होता है। मुझसे खूब बातें करता है। मैं चुपचाप सुनता हूँ। बताता है- बड़े नेताओं के बीच उसे बोलने का मौका नहीं दिया जाता। सवाल नहीं पूछने दिया जाता। जो कहा जाता है, उतना ही करने का निर्देश दिया जाता है। मेरा साथ पाकर वो भी बड़ा नेता बन जाता है। मैं बनने का मौका भी देता हूँ। सवाल ही नहीं करता हूँ। वो बोलता जाता है।

उसके साथ ऐसे संबंध में मुलाकात होने पर हाथ मिलाने की औपचारिकता नहीं निभानी पड़ती। हम दोनों का संबंध भारत-पाकिस्तान की तरह नहीं है। पिछले कई दशकों से भारत-पाक के बीच हाथ मिलाकर बातचीत की औपचारिकता निभाई जा रही थी। अब हाथ मिलाकर निंदा की औपचारिकता निभाई जा रही है। भारत-पाक की औपचारिकता देख, अमेरिका भी आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को फटकारने की औपचारिकता निभा देता है। 

उससे पूछा- कहाँ जाने की तैयारी है? उसने बताया- मोहल्ला कार्यालय जा रहा हूँ। लड़कों को कई दिन से कुछ कर दिखाने का मौका नहीं मिला है। वे ऊब रहे हैं। कार्यालय में उनकी उपस्थिति कम हो रही है। कुछ कर दिखाने की योजना तैयार करने के लिए आज मोहल्ला प्रभारियों की बैठक है। 

शायद उसने अखबार नहीं पढ़ा था, नहीं तो अब तक कुछ कर दिखाने वाली योजना तैयार हो गई होती। मैंने कहा- मुझे एक जानकारी दे दो। योजना मैं बता दूँगा। कुछ कर दिखाने की उम्मीद में उसकी आँखों की चमक बढ़ गई। बाजू फड़कने लगे- क्या जानकारी चाहिए? मैंने बताया- मुझे पाकिस्तान जाना है। कैसे जाऊँ? वो चौंक गया- नापाक देश जा कर क्या करोगे? वो सवाल करने लगा। उसकी आदत बिगड़े, इससे पहले ही सवालों को मारने वाली हाफिज सईद की खबर सुना दी। उसे ये नहीं बताना पड़ा- हाफिज सईद का पुतला फूँक दो। कुछ कर दिखाने का अवसर आ गया है, ये वो समझ गया था।

फिर मैंने पूछा- कैसे जाऊँ? उसने बताया- देशद्रोहियों के साथ चले जाओ। उसका जवाब सुन मैं समझ गया, अपने बड़े नेताओं द्वारा दिखाए मार्ग पर आ गया है। मैंने राहत की साँस ली। आदत बिगाड़ने का आरोप मेरे ऊपर नहीं लगेगा। मैंने कहा- गुप्त अभियान पर जाना है। जासूस की तरह। उसने बताया- अगर ऐसा है, तब देशी जेम्स बांड के पास जाओ। वे रास्ता बताएंगे। मैंने हूँ में सिर हिलाया। वो जारी रहा- जानते हो न, वे पाकिस्तान की उतनी गलियाँ जानते हैं, जितनी पाकिस्तान वाले भी नहीं जानते। वे गाड़ी में आँख पर पट्टी बाँधकर बैठते हैं। ड्राइवर को निर्देश देते रहते हैं- 28 सेकेंड बाद बाएँ मुड़ना। तीन मिनट बाद दाएँ मुड़ना। मैंने वाह के साथ कहा- जा रहा हूँ देशी जेम्स बांड से मिलने। कुर्ते की बाजू मोड़ते हुए उसने कहा- जा रहा हूँ हाफिज सईद का पुतला फूँकने।

देशी जेम्स बांड के यहाँ पहुँचा। (वहाँ क्या-क्या देखा, इसका वर्णन अनुचित होगा। जासूस सरकार के लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। उसके कार्य को गोपनीय रखा जाता है।) 

देशी जेम्स बांड को अपना मंतव्य बताया। उन्होंने गंतव्य बताया- अमुक गली में दस मिनट सीधे चलना। दस मिनट पर बाएँ मुड़ चार मिनट सीधे चलना। चार मिनट पर दाएँ मुड़ सात मिनट सीधे चलना। सात मिनट पर चाय की दुकान मिलेगी। वहाँ अपना ‘मिशन’ पूरा कर सकते हो। चाय वाले को मैं तुम्हारे जाने की सूचना दे दूँगा। तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी।

देशी जेम्स बांड को बता दिया था, पैदल जाऊँगा। उन्होंने पदयात्रा के अनुसार लगने वाले समय की गणना कर दाएँ मुड़, बाएँ मुड़ बताया। समय और मुड़ में सटीकता के लिए थोड़ी देर अभ्यास भी करवाया- एक कदम लगभग सत्तर सेंटीमीटर का हो। अंत में चाय वाले को दिखाने के लिए एक टोकन दिया। 

देशी जेम्स बांड के बनाए ‘ब्लू प्रिंट’ के अनुसार पाकिस्तान में उस चाय की दुकान पर पहुँचा। वहाँ हाफिज सईद की ही चर्चा चल रही थी। चाय वाले ने ग्राहक समझ चाय पूछी। मैंने मना कर दिया। चाय पीकर अपने देश की अर्थव्यवस्था कुपोषण का शिकार हो गई है। पोषण की भूखी अर्थव्यवस्था को सरकार ने लगातार चाय पिलाई। खाली पेट चाय पी-पीकर अपनी भूख मारते अर्थव्यवस्था कुपोषण का शिकार हो गई। उसकी दयनीय स्थिति देखी नहीं जाती। खुलकर बोल भी नहीं पा रही। काँखते-कूँखते किसी तरह बोल पा रही है। उधर की चाय का क्या भरोसा? अफीम मिलाकर पिला दी तो?

उसे टोकन दिखाया। टोकन देख उसने बैठने का इशारा किया। चर्चा कर रहे लोगों से मेरा परिचय हिंदुस्तान से आए कलाकार के रूप में कराया। परिचय के बाद चर्चा सुनता रहा। अनुमान लगाता रहा- इनमें हाफिज सईद का समर्थक कौन-कौन है। पाँच में तीन मिले। वे तीन-पाँच बतिया भी रहे थे। एक से मैंने कहा- हाफिज सईद पर बेगुनाहों के कत्ल का आरोप है। उस पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। अपने नेता का विरोध सुन उसने तड़ से कहा- गिरफ्तारी तो नहीं हुई है ना? जब वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे, तो अपने ऊपर से सभी मुकदमे हटाने वाला कानून बना देंगे। मैं सोचने लगा, ये किसके बारे में बता रहा है। मेरी सोच को दूसरे ने भंग किया- हाफिज सईद तो कभी जिलाबदर घोषित नहीं किये गए हैं। तब मैं समझा, ये व्यंग्य बोल रहा है। 

मैं हाफिज सईद के विरोध पर अड़ा रहा-नजरबंद तो होते रहते हैं। उसने कहा- तुम्हारे यहाँ इमरजेंसी में कई लोग नजरबंद किये गए थे। क्या वे सब अपराधी थे? उनमें से कई बाद में संसद तक पहुँचे। उसकी बातें सुन मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ- अपने साथ मोहल्ला प्रभारी को लेकर आना चाहिए था। वही इनका जवाब देता। पछता रहा था। तभी तीसरे ने पूछा- महात्मा गांधी को जानते हो? मैंने हाँ में सिर हिलाया। उसने बताया- तुम आधा जानते हो। आधा मानते हो। वो भी उल्टा। हम पूरा जानते हैं। पूरा मानते हैं।

अफीम के डर से चाय मना कर दी थी। अंदाजा नहीं था कि बातों की अफीम खानी पड़ेगी। वो जारी रहा- महात्मा गांधी ने कहा था- पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। तुम उल्टा करते हो। पापी से घृणा करते हो, पाप से नहीं। हमने महात्मा गांधी के कथन को पूरी तरह अपनाया है। हम पापी से घृणा नहीं करते। न ही पाप से। अधिक सहिष्णु कौन हुआ?

कब्ज का शिकार हो जाऊँ, उससे पहले ही वहाँ से उठ गया। दाएँ मुड़, बाएँ मुड़ करते हुए वापस चला। गांधी दर्शन का अपभ्रंश सुन, कदम लगभग सत्तर सेंटीमीटर का अभ्यास भूल गए। चाय की दुकान से सात मिनट सीधे चलने के बाद मुड़ना था। सात मिनट बाद बीच में अटक गया। बराबर दूरी पर आगे भी गली। पीछे भी। वापस चाय की दुकान से फिर सात मिनट शुरू किया। कई ‘री-टेक’ के बाद मिनट और मुड़ में सटीकता आई। 

रास्ते में उसके बताए गांधी दर्शन के बारे में सोचता रहा। अपने यहाँ भी कई लोग सदुपयोग के नाम पर दुरुपयोग कर लेते हैं। 
गांधी जयंती पर एक माध्यमिक विद्यालय में निबंध प्रतियोगिता आयोजित थी- वर्तमान दौर में गांधी की प्रासंगिकता। आयोजकों ने मेरा चयन बतौर निर्णायक किया। प्रतिभागियों द्वारा लिखे गए निबंध की कॉपी मेरे यहाँ पहुँचा दी। मुझे सबसे अच्छा लिखने वाले का नाम तय करना था। जो निबंध मुझे सबसे अच्छा लगा, उसकी अविकल प्रस्तुति यहाँ दे रहा हूँ:

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी, माता का नाम पुतलीबाई था। पत्नी का नाम कस्तूरबा गांधी था। देश की आजादी में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। देश को दिये गए योगदान के लिए उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई। महात्मा गांधी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में राष्ट्रीय पर्व मनाया जाता है। इस दिन महात्मा गांधी को याद किया जाता है। उनकी जीवनी, दर्शन आदि पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। शिक्षक और विद्यार्थी उन्हें 2 अक्टूबर को याद करते हैं। वहीं विमर्शों की भीड़ में प्रशस्ति पत्र और राजनीति के हुल्लड़ में वोट बनाने वाले पूरे वर्ष उन्हें याद करते हैं।

वर्तमान दौर में महात्मा गांधी की प्रासंगिकता पर मुझे सबसे अच्छा निबंध यही लगा। सबसे अच्छे निबंध को अन्य प्रतिभागियों के सामने पढ़ा भी जाना था। उसके पहले आयोजकों ने पढ़ा। बड़े नाराज हुए। मेरे द्वारा घोषित सबसे अच्छे को रद्द कर दिया। दूसरे किसी निबंध को सबसे अच्छा घोषित कर दिया। मुझसे संबंध विच्छेद भी कर लिया। 

निबंध की कॉपी चेक करते समय ही दुविधा में था- सबसे अच्छा लिखने वाले या सबसे अच्छा जानने वाले का चयन करूँ? लिखने वाले प्रथम स्थान या परीक्षा में अच्छे नम्बर लाने के लिए मोहनदास करमचंद गांधी पर निबंध रट लेते हैं। परीक्षा हो गई। भूल गए।

रटने का शिकार सिर्फ महात्मा गांधी नहीं हुए हैं। हमारी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली ने यही किया है- अमुक का पूरा नाम ये था। वहाँ पैदा हुए थे। क्रांतिकारी थे। देश की आजादी में योगदान दिया था। यों कि किसी दोपाए पर निबंध लिखना है, जिसका गोबर किसी काम का नहीं। उनके विचार क्या थे? ये सत्वचन के रूप में विद्यालय की दीवारों पर दो-चार की संख्या में लिखे रहते हैं। 

विद्यार्थी अपनी प्रतिभा विद्यालय की दीवार पर लिखे सत्वचनों पर दिखाते हैं। वे सत्वचनों का अपभ्रंश तैयार करते हैं। स को रा बना देते हैं। रा को स। विद्यार्थियों के पास अपनी प्रतिभा का अपभ्रंश ही बचता है। मूल प्रतिभा शिक्षा प्रणाली और माता-पिता की इच्छाओं के कब्जे में है। हमारी शिक्षा प्रणाली प्रतिभाओं की कद्र भले न करे, माता-पिता की इच्छाओं का पूरा ध्यान रखती है।

मेरे सामने एक दीवार पर किसी समाज सुधारक ने अपनी समझ के अनुसार सत्वचन लिखवाया- जय माँ दुर्गा जय माँ काली, घर-घर आम लगावा हाली। बच्चों ने इस पर भी अपनी प्रतिभा दिखा दी। म को खुरचकर ग बना दिया- घर-घर आग लगावा हाली।

अपभ्रंश प्रतिभाओं के बारे में सोचता-विचरता अपने देश पहुँचा। पहुँचते ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक खबर मिली। एक युवक मीडिया के सामने खुलकर अपना अपराध स्वीकार कर रहा था-

पहले मैंने इसको मारा। फिर पैसे न देने पर उसको मारा। छूटने के बाद उसको मारूँगा। क्यों मारते हो? शौक है मेरा। मैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा डॉन बनना चाहता हूँ। 

इसके पास भी ब्लू प्रिंट है। उसने आधा बताया। वो माफिया से माननीय बनना चाहता है। जब वो डॉन बन जाएगा, तब संसद या विधानसभा में बैठने का नामांकन करेगा। तब वो मीडिया को बताएगा- वे अपराध जनप्रतिनिधि बनने का ब्लू प्रिंट थे। 

हाफिज सईद का भी यही ब्लू प्रिंट है। वो प्रधानमंत्री बनना चाहता है। इसलिए उसके अपराध का दायरा देश-विदेश व्यापी है। प्रदेश को प्रभावित करने वाले अपराध करेगा तो मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री बनेगा। जिले को प्रभावित करने वाला अपराध करेगा तो विधायक या सांसद बन सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का डॉन बनने की तैयारी कर रहा अपराधी इसी ब्लू प्रिंट का पालन कर रहा है।



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