राग दरबारी: मुद्दाविहीन चुनाव और लूज़र जनता है बिहार का सच

नेता राजनीतिक गणित जितना भी कर लें, हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि आम जनता परसेप्‍शन पर भी निर्णय लेती है। आम लोगों में चिराग पासवान के जेडीयू के प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ने को वह इस रूप में भी ले रही है कि इस खेल के पीछे बीजेपी है।

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तन मन जन: क्लिनिकल ट्रायल की भयावह हकीकत और वैक्सीन के खोखले वादे

भारत ऐसे ही मनमाने क्लिनिकल ट्रायल्स के लिए सबसे ज्यादा अनुकूल देश था। सन् 2011 में मध्यप्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज में मानसिक रूप से अस्वस्थ 241 लोगों पर एक बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनी के क्लिनिकल ट्रायल में काफी गड़बड़ियों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देकर भारत सरकार को सख्त गाइडलाइन बनाने का आदेश दिया था। इस सख्ती के बाद भारत में क्लिनिकल ट्रायल के धंधे में काफी मंदी आ गयी।

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पॉलिटिकली Incorrect: किसान क्रांति गेट पर यज्ञ-मंत्र का एक ‘इनसाइडर’ प्रेम-प्रसंग

भारतीय किसानों के सामने जितनी बड़ी मुसीबत खड़ी है, उनकी वैचारिक तैयारी उतनी ही कमज़ोर है। वे साम्प्रदायिकता और जातिवादी नफ़रत को अपने बर्चस्व का आधार मानते आये हैं। खेतिहर मज़दूरों, दलितों, भूमिहीन किसानों की समस्या इस पांत में बहुत पीछे छूट गयी है।

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गाहे-बगाहे: सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत…

एक बार भी उनके मुंह से बकार नहीं फूटी कि फैसला गलत हुआ है; कि हमने तो धर्म के लिए जोखिम लिया लेकिन यहां तो उस जोखिम और साहस की बेइज्जती हुई जा रही है। एक बार भी किसी ने एक शब्द नहीं कहा कि फैसला गलत हुआ था क्योंकि हमने धर्म के लिए जो राह चुनी थी वह सुनियोजित थी और भारतीय लोकतन्त्र में उसके लिए जो सजा मुकर्रर है उससे वे बरी नहीं होना चाहते।

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दक्षिणावर्त: न्‍याय की चिता पहले ही जल चुकी है, अब केवल प्रहसन बाकी है

कल एक चैनल की अदाकारा ने जिस तरह हाथरस के एसडीएम को लाइव जलील किया या धमकी दी, वह कौन सी पत्रकारिता है? इसका अंजाम तो वही होना था, जो हुआ। दूसरा एंकर अपने स्टूडियो में चीखते-नाचते हुए जुगाड़-मीडिया को बेनकाब करेगा ही। इसमें नुकसान किसका हुआ? गर्भपात तो न्याय का ही हुआ न!

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आर्टिकल 19: UN में गमकता महिला सशक्‍तीकरण का गजरा हाथरस में सूखकर बिखर गया है!

एक तस्वीर में डीएम धमकी दे रहा है। एक तस्वीर में एडीएम धमकी दे रहा है। एक तस्वीर में थानेदार धमकी दे रहा है। पूरे गांव के बाहर रस्सी से बैरिकेडिंग कर दी गयी है। इतनी सख्ती तो भारत पाकिस्तान सीमा पर भी नहीं। ये सारी तस्वीरें बहुत बेचैन करने वाली हैं। बहुत भयावह हैं। बहुत परेशान करने वाली हैं।

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तिर्यक आसन: गाँधी के अपभ्रंश और हाइजीनिक वैष्णवों का ब्लूप्रिन्ट

अफीम के डर से चाय मना कर दी थी। अंदाजा नहीं था कि बातों की अफीम खानी पड़ेगी। वो जारी रहा- महात्मा गांधी ने कहा था- पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। तुम उल्टा करते हो। पापी से घृणा करते हो, पाप से नहीं। हमने महात्मा गांधी के कथन को पूरी तरह अपनाया है। हम पापी से घृणा नहीं करते। न ही पाप से। अधिक सहिष्णु कौन हुआ?

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बात बोलेगी: भारतेन्दु की बकरी से बाबरी की मौत तक गहराता न्याय-प्रक्रिया का अंधेरा

‘गिल्ट बाइ एसोसिएशन’ जैसे आज के दौर की एक मुख्य बात हो गयी है। दिल्ली में हुई हिंसा हो या भीमा कोरेगांव की हिंसा, दोनों में न्याय प्रक्रिया उसी प्रविधि का इस्तेमाल कर रही है जो उस राज्य में प्रचलित थी, जिसकी कहानी हमें भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने सुनायी थी।

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तन मन जन: साल दर साल विकास लक्ष्यों का शतरंजी खेल और खोखले वादे

विश्व स्वास्थ्य संगठन का वादा था- सन् 2000 तक सबको स्वास्थ्य, लेकिन स्थिति नहीं बदली। फिर सहस्राब्दि (मिलेनियम) विकास लक्ष्य 2015 तय हुआ। वह भी हवा-हवाई हो गया। अब टिकाऊ (सस्टेनेबल) विकास लक्ष्य 2030 तय हुआ है। समझा जा सकता है कि “जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा”।

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