तिर्यक आसन: ‘हिन्दू खतरे में’ का लिंक और आहत देव का प्रसाद

उनकी एक दुकान है- मेंस सलोन। दुकान के बाहर नवढ़ों को वे ‘’हिंदू खतरे में है’’ का लिंक देते हैं। दुकान के अंदर मुसलमान कारीगरों से बाल-दाढ़ी बनवाते हैं। फेशिअल, ब्लीच कराते हैं। मसाज भी कराते हैं।

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छान घोंट के: जवाबदेही मांगने वाली सिविल सोसाइटी की FCRA पर चुप्पी और कार्टेल-संस्कृति

दुनिया के किसी भी देश में परिवर्तनकारी और दीर्घकालीन बदलाव का क्रांतिकारी आन्दोलन केवल विदेशी अंशदान से कभी नहीं खड़ा हुआ है। यह अलग बात है कि जनवादी निर्वात के खात्मे में विदेशी अंशदान का काफी योगदान रहता है।

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बात बोलेगी: इंस्पेक्टर मातादीन की वापसी उर्फ़ इंस्पेक्टर मातादीन रिटर्न्स

अगर लोग किसी दैवीय आपदा के कारण उत्पन्न हुए संकटकाल में अपने नोट बदलने के लिए बैंको की लाइन में खड़े हों और सरकार के खिलाफ कुछ बात मन में भी सोच रहे हों, तो ये जाकर उसकी गर्दन दबोच सकते हैं। इन्हें मतलब तत्काल या निकट भविष्य में होने वाले किसी भी क्राइम, विरोध और अभिव्यक्ति के खतरे को भाँप लेने की जबर्दस्त शक्ति मिल गयी है।

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राग दरबारी: मुद्दाविहीन चुनाव और लूज़र जनता है बिहार का सच

नेता राजनीतिक गणित जितना भी कर लें, हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि आम जनता परसेप्‍शन पर भी निर्णय लेती है। आम लोगों में चिराग पासवान के जेडीयू के प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ने को वह इस रूप में भी ले रही है कि इस खेल के पीछे बीजेपी है।

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तन मन जन: क्लिनिकल ट्रायल की भयावह हकीकत और वैक्सीन के खोखले वादे

भारत ऐसे ही मनमाने क्लिनिकल ट्रायल्स के लिए सबसे ज्यादा अनुकूल देश था। सन् 2011 में मध्यप्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज में मानसिक रूप से अस्वस्थ 241 लोगों पर एक बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनी के क्लिनिकल ट्रायल में काफी गड़बड़ियों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देकर भारत सरकार को सख्त गाइडलाइन बनाने का आदेश दिया था। इस सख्ती के बाद भारत में क्लिनिकल ट्रायल के धंधे में काफी मंदी आ गयी।

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पॉलिटिकली Incorrect: किसान क्रांति गेट पर यज्ञ-मंत्र का एक ‘इनसाइडर’ प्रेम-प्रसंग

भारतीय किसानों के सामने जितनी बड़ी मुसीबत खड़ी है, उनकी वैचारिक तैयारी उतनी ही कमज़ोर है। वे साम्प्रदायिकता और जातिवादी नफ़रत को अपने बर्चस्व का आधार मानते आये हैं। खेतिहर मज़दूरों, दलितों, भूमिहीन किसानों की समस्या इस पांत में बहुत पीछे छूट गयी है।

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गाहे-बगाहे: सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत…

एक बार भी उनके मुंह से बकार नहीं फूटी कि फैसला गलत हुआ है; कि हमने तो धर्म के लिए जोखिम लिया लेकिन यहां तो उस जोखिम और साहस की बेइज्जती हुई जा रही है। एक बार भी किसी ने एक शब्द नहीं कहा कि फैसला गलत हुआ था क्योंकि हमने धर्म के लिए जो राह चुनी थी वह सुनियोजित थी और भारतीय लोकतन्त्र में उसके लिए जो सजा मुकर्रर है उससे वे बरी नहीं होना चाहते।

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दक्षिणावर्त: न्‍याय की चिता पहले ही जल चुकी है, अब केवल प्रहसन बाकी है

कल एक चैनल की अदाकारा ने जिस तरह हाथरस के एसडीएम को लाइव जलील किया या धमकी दी, वह कौन सी पत्रकारिता है? इसका अंजाम तो वही होना था, जो हुआ। दूसरा एंकर अपने स्टूडियो में चीखते-नाचते हुए जुगाड़-मीडिया को बेनकाब करेगा ही। इसमें नुकसान किसका हुआ? गर्भपात तो न्याय का ही हुआ न!

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आर्टिकल 19: UN में गमकता महिला सशक्‍तीकरण का गजरा हाथरस में सूखकर बिखर गया है!

एक तस्वीर में डीएम धमकी दे रहा है। एक तस्वीर में एडीएम धमकी दे रहा है। एक तस्वीर में थानेदार धमकी दे रहा है। पूरे गांव के बाहर रस्सी से बैरिकेडिंग कर दी गयी है। इतनी सख्ती तो भारत पाकिस्तान सीमा पर भी नहीं। ये सारी तस्वीरें बहुत बेचैन करने वाली हैं। बहुत भयावह हैं। बहुत परेशान करने वाली हैं।

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