स्वतंत्रता-दिवस पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने जो संदेश दिए हैं, वे काफी रचनात्मक हैं और यदि आप सिर्फ उन पर ही ध्यान दें तो वे उत्साहवर्द्धक भी हैं। हर प्रधानमंत्री लाल किले से सारे देश को पहले तो यह बताता है कि उसकी सरकार ने देश के कई तबकों के लिए क्या-क्या किया है और भविष्य में उसकी सरकार जनता के भले के लिए क्या-क्या करने वाली है। इस दृष्टि से नरेंद्र मोदी के भाषण में कोई कमी ढूंढना मुश्किल है। मेरे लिए ही नहीं, राहुल गांधी के लिए भी मुश्किल होगा लेकिन लाल किले से जो कुछ कहा गया है, उससे भी ज्यादा जरूरी वह पहलू है, जो नहीं कहा गया है।
कहा तो यह भी जाना चाहिए था कि हर भारतवासी को गर्व है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और एशिया और अफ्रीका का ऐसा विलक्षण देश है, जिसमें 7 दशकों से एक ही संविधान चला आ रहा है। हमारे पड़ौसी देशों में उनके संविधान कई बार बदल दिए गए, उनके तख्ता-पलट कर दिए गए और उनके टुकड़े हो गए लेकिन भारत में लोकतंत्र (आपात्काल के अपवाद को छोड़कर) बराबर बना रहा है। भारत में न केवल बहुदलीय व्यवस्था दनदना रही है बल्कि आम लोगों को भारत की अदालतों, सरकारों और सत्तारुढ़ नेताओं की कड़ी आलोचना करने का भी पूरा अधिकार है। कोई जान-बूझकर गुलामी करना चाहे, जैसे कि कुछ टीवी चैनल और अखबार करते हैं तो उन्हें उसकी भी सुविधा है लेकिन स्वतंत्रता-दिवस के इस अवसर पर हम सिर्फ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते रहें, यह ठीक नहीं है।
यह सही है कि हम दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं लेकिन यह मोर का नाच है क्योंकि 1 प्रतिशत सेठों के हाथ में देश की 60 प्रतिशत संपदा है। देश के सिर्फ 10 प्रतिशत शिक्षितों, शहरियों और ऊंची जातियों के लोगों के पास देश की 80 प्रतिशत संपदा है। देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हैै। दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब लोग यदि कहीं रहते हैं तो वे भारत में ही रहते हैं। अशिक्षा और भ्रष्टाचार में भी हम काफी आगे हैं।
शिक्षा और चिकित्सा में हम पश्चिम के नकलची बने हुए हैं। ये दोनों बुनियादी खंभे हमारे देश में सीमेंट की बजाय गोबर के बने हुए हैं। भाजपा सरकार ने इस दिशा में कुछ उल्लेखनीय कदम जरूर उठाए हैं लेकिन जब तक देश की जनता खुद खाँड़ा नहीं खड़काएगी, अकेली सरकारें सिर्फ नौकरशाही के दम पर क्या कर पाएंगी?
स्वतंत्रता हमने आंदोलन करके पाई है लेकिन स्वतंत्रता-दिवस पर कोई नेता किसी आंदोलन की बात भूलकर भी नहीं करता।