अभिषेक श्रीवास्तव
जैसा हमेशा होता है, इस बार भी हुआ है। बनारस को छोड़ने के विदड्रॉल सिम्पटम से जूझ रहा हूं। किसी को शराब छोड़ने के बाद, किसी को सिगरेट छोड़ने के बाद तो किसी को बनारस छोड़ने के बाद शारीरिक और मानसिक दिक्कत आती है। बनारस एक नशा है। इस बार इसका सेवन इतने लंबे समय तक हुआ कि लौटने के बाद उभरे लक्षण भी इतनी जल्दी नहीं जाने वाले। बहरहाल, मोंछू और मौलाना के आखिरी संवाद से मैं काफी आश्वस्त था और श्रृंखला को वहीं रोक देना चाहता था, लेकिन लगा कि इस अफ़साने को अंजाम तक लाना ज़रूरी है। एक खूबसूरत मोड़ पर पहुंचकर अचानक रुक जाना डरावने भविष्य से मुंह फेर लेने की गैर-जिम्मेदारी जैसा कुछ है। मुझे जो डर है, उसे बताना ज़रूरी है।
बनारस में 10 मई की शाम चुनाव प्रचार की धूल बैठने के बाद शहर अपनी पुरानी रंगत में आ चुका था। अगला दिन यानी रविवार 11 मई बेहद गरम जान पड़ रहा था। सड़कें खाली थीं। भयंकर लू और तपन के बीच लंका पर तैनात कुछ टीवी कैमरे अपनी ओबी वैनों से दिल्ली को फीड भेजने में जुटे थे और पत्रकार स्टोरी की तलाश में भटक रहे थे। जनता अपने-अपने घरों में कैद थी। कुछेक अड़ीबाज़ थे जो दोपहर 12 बजे अस्सी पर पप्पू की दुकान में डेरा जमाए हुए थे जबकि इस दुकान के सियासी चरित्र को बदल देने का आरोप झेल रहे डॉ. कौशल किशोर मिश्र आश्चर्यजनक रूप से सड़क के दूसरी ओर बैठे किसी को बाइट दे रहे थे। चर्चा अरविंद केजरीवाल पर चल रही थी। मास्टर रामाज्ञा शशिधर ने उत्साह में कहा, ”अरविंद केजरीवाल एक लाख वोट से जीतने जा रहे हैं।” लोगों ने हुंकारी भरी। इस बीच अचानक दुकान में एक भगवावेशधारी बाबा का प्रवेश होता है और वहां बैठे कुछ लोगों को संबोधित करते हुए वे आकाशवाणी के लहजे में कहते हैं, ”केजरीवाल बम्पर वोट से जीतने जा रहा है।”
वहां बैठे कुछ भाजपा समर्थक बाबा का मज़ाक उड़ाते हैं तो कुछ दूसरे लोग उनकी हां में हां मिलाते हैं। बाबा पांच मिनट बाद उठकर चला जाता है, तो अचानक एक लूना दुकान के बाहर आकर लगती है। लूना पर बैठे व्यक्ति के पास एक गट्ठर है जिसमें कुछ केसरिया रंग के कपड़े दिख रहे हैं। लूना से आए सज्जन स्थानीय विधायक रविंदर जायसवाल के पीआरओ त्रिपाठीजी थे। वे भाजपा की टी-शर्ट बांटने आए हैं। दो मिनट के भीतर भगवा रंग की सादा टी-शर्ट वहां मौजूद लोगों में बंट जाती है। किसी का ध्यान सड़क के उस पार चुपके वीडियो बना रहे एक नौजवान की ओर नहीं जाता। पांच मिनट के भीतर दुकान खाली हो जाती है और लंका की तरफ से हूटरों की आवाज़ आती है। चौराहा खाली हो जाने के बाद खालिस फिल्मी स्टाइल में आरएएफ और पुलिस का फ्लैग मार्च अस्सी में प्रवेश करता है। घंटे भर बाद खबर आती है कि रथयात्रा स्थित भाजपा के केंद्रीय चुनाव कार्यालय पर चुनाव आयोग ने छापा मार दिया है।
एक नौजवान ने बताया कि समाजवादी पार्टी की लाल टी-शर्ट ज्यादा बढिया क्वालिटी की है। सपा रीबोक की टी-शर्ट बांट रही है जबकि भाजपा वाले लोकल ब्रांड की दे रहे हैं। भाजपा की टी-शर्ट दो तरह की थी। एक गोल गले की और दूसरी कॉलर वाली। जिधर के.के. मिश्रा बैठे थे, उधर से कॉलर वाली टी-शर्ट लेकर कुछ लोग निकले। टी-शर्ट के बंटवारे के बीच शैलेन्द्र सिंह अड़ी पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि आम आदमी वाले टोपी भी बांट रहे हैं। मैंने पूछा कहां है, तो बोले, ”यही त रखल रहल।” वे खोजने में जुट गए। टोपी नहीं मिली। भाजपा की टी-शर्ट पर किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। चुनाव आयोग को भी नहीं। इसीलिए बाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के आयोग ने छापे में बरामद कई पेटी टी-शर्ट के बोझ से भाजपा को मुक्त कर दिया। चुनाव आयोग की दलील थी कि इन्हें बांटने के लिए नहीं रखा गया था जबकि कई दर्जन टी-शर्ट पहले ही घरों में पहुंच चुकी थी।
तो पहला डर मेरा यह है कि चुनाव आयोग बनारस में भाजपा की राह आसान कर रहा था। वह चाहता तो गुलाब बाग के भाजपा दफ्तर में बरामद शराब पर कार्रवाई कर सकता था, लेकिन एक स्थानीय पत्रकार की मानें तो मौके पर ही डील हो गई। बात आई और चली गई। ठीक अगले दिन यानी 12 तारीख को मतदान के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय को पार्टी के चुनाव चिह्न का बिल्ला लगाए पाया जाता है और उन पर एफआइआर का आदेश हो जाता है। बिल्कुल इसी दौरान भाजपा के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी गांधीनगर से राष्ट्र के नाम संदेश दे रहे होते हैं जो सारे टीवी चैनलों पर चलता है जिसमें उन्होंने बाकायदा अपने संसदीय क्षेत्र का नाम लिया था। एक टीवी चैनल पर एक बूथ पर पिछले दिन बांटी गई भगवा टी-शर्ट पहने भाजपा के पोलिंग एजेंटों को दिखाता है, उनकी बाइट चलाता है, लेकिन इस पर कहीं कोई कार्रवाई नहीं होती। दरअसल, अजय राय जब लाइन में लगे थे वोट डालने के लिए, तो इंडिया टीवी के एक पत्रकार ने उन्हें बार-बार याद दिलाया था कि वे बिल्ला लगाए हुए हैं। उन्होंने हंसते हुए यह बात टाल दी थी। वे जानते थे कि प्रचार और परसेप्शन की इस लड़ाई में आखिरी हथियार आचार संहिता का उल्लंघन ही है, भले ही उन पर इसके लिए एफआइआर हो जाए। आखिरकार वही हुआ। अजय राय सुर्खियों में आ गए और घर में बैठ की टीवी देख रही जनता को लगा कि आखिरी लड़ाई मोदी और राय के बीच ही है। इस तरह बड़ी सफ़ाई से केजरीवाल को प्रचार युद्ध में किनारे लगा दिया गया।
अजय राय को लेकर मतदान से तीन दिन पहले अचानक एक माहौल बेशक बना था। कांग्रेसियों की मानें तो रोहनिया विधानसभा क्षेत्र के वोट पूरे के पूरे कांग्रेस में आ चुके थे। मुसलमानों में भी दो फाड़ होने की खबरें आ रही थीं। वरुणा पुल से ठीक पहले पान की दुकान चलाने वाले इम्तियाज़ का कहना था कि दूसरे नंबर पर अजय राय ही रहेंगे। यह बात राहुल गांधी की रैली के बाद कई लोगों ने कही, लेकिन मतदान के दिन दोपहर में इन्हीं लोगों के सुर बदले हुए थे। अजय राय पर 12 मई को एफआइआर की खबर आने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. लेनिन रघुवंशी ने बताया, ”मुसलमान समझ ही नहीं रहा है। सब केजरीवाल के साथ चले गए हैं। बाकायदे रात में एक फतवा जारी हुआ है केजरीवाल को वोट देने के लिए।”
दरअसल, बनारस में पिछले एक माह के दौरान जो बुनियादी चीज़ बदली है वह नरेंद्र मोदी विरोधी वोटों को काटने वाले की पहचान है। अरविंद केजरीवाल ने 25 अप्रैल को जब बेनिया मैदान में रैली की थी, तब यह बात आम थी कि वे मोदी विरोधी वोटों को काटकर नरेंद्र मोदी की राह को आसान करेंगे। अजय राय के कांग्रेस से परचा भरने के बाद दो सप्ताह तक जब कांग्रेस का प्रचार अभियान शहर से बिल्कुल गायब रहा और अरविंद केजरीवाल का अभियान कई गुना गति से बढ़ा, तो स्थिति बदल गई। कहा जाने लगा कि अब अजय राय मोदी विरोधी वोटों को काटेंगे। कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर अनौपचारिक बातचीत में बताया, ”केजरीवाल की तरफ आकर्षित मुसलमान अगर बंट गए तब तो ठीक है, अगर ऐसा नहीं हुआ तो आखिरी दिन हम लोग मोदी को अपने वोट डलवा देंगे।” वैसे, यह बात लोगों से छुपी हुई नहीं थी। बनारस के लोग जानते हैं कि पिछले चुनाव में मुख्तार अंसारी को जीतता देखकर अजय राय ने मुरली मनोहर जोशी को वोट डलवाए थे जिसके चलते जोशी 17000 के मामूली अंतर से जीत पाए थे। इसलिए वे इस बार भी ऐसा कर सकते हैं, इसकी आशंका प्रबल थी। रेवड़ी तालाब के कांग्रेसी नेता जमाल भाई कहते हैं, ”एक बार अजय राय पर भाजपा का ठप्पा लग चुका है। यह उन्हें नुकसान करेगा। कांग्रेस में भी लोग इस बात को समझ रहे हैं।”
जमाल भाई समेत कांग्रेस के कई स्थानीय नेता आखिरी दम तक पार्टी से बेहद नाराज़ थे। मसलन, रेवड़ी तालाब में एक दिन गुलाम नबी आज़ाद को शाम की सभा करने आना था लेकिन बिना किसी सूचना के वे गायब हो गए। उसी शाम नई सड़क पर खुद अजय राय को एक सभा में पहुंचना था लेकिन वे नहीं आए और जनता इंतज़ार करती रह गई। जमाल भाई कहते हैं, ”आप लोग ये बात पहुंचाइए कि लोग नाराज़ हैं। बताइए, वादा कर के नेता गायब हो जा रहे हैं। ऐसे कहीं चुनाव लड़ा जाता है? गाली हम लोगों को सुननी पड़ रही है।” जमाल भाई अनी बात कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचाने को इतने बेचैन थे कि वे बजरडीहा में न्यूज़ एक्सप्रेस के कार्यक्रम में चले आए और उन्होंने ऑन एयर यह बात कह डाली।
जहां तक चुनाव के नतीजे की बात है, तो सामान्य तौर पर अब भी नरेंद्र मोदी की जीत की ही बात की जा रही है, अलबत्ता जीत का मार्जिन घटा है। पहले चार लाख, फिर दो लाख और अब एक लाख से कम वोटों से मोदी के जीतने की बात को लोग स्वीकार रहे हैं। यह अंतर पचास हज़ार भी रह जा सकता है। उधर आम आदमी पार्टी पिछले सप्ताह किए अपने सर्वेक्षण पर टिकी हुई है और अरविंद केजरीवाल के एक लाख वोटों से जीतने के दावे को खूब प्रचारित कर रही है। कांग्रेस के नेता चुप हैं। उनकी नाराज़गी मुसलमानों से है जिन्होंने इस बार उसे मौका नहीं दिया और एक ”बाहरी” के साथ चले गए। चौक पर ठंडई की दुकान चलाने वाले भाजपा के एक समर्थक ओमप्रकाश कहते हैं, ”इस बार बनारस में अगर दंगा हुआ, तो जान लीजिए कि उसे भाजपा नहीं करवाएगी।” एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अल्ताफ़ की मानें तो कांग्रेस के समक्ष अपनी सेकुलर पहचान को बहाल करने का संकट सबसे बड़ा है और एक संकट भी है कि उसने अजय राय को ”काशी का पुत्र” बताकर खड़ा किया था, जबकि जनता ने दोनों ”बाहरियों” पर भरोसा जता दिया। इन दोनों संकटों से एक साथ कांग्रेस को निपटना है और इसीलिए, कौन जीतता है या कौन हारता है, फिलहाल बनारस का सवाल यह है ही नहीं।
मेरा दूसरा डर चंदौली के सरकारी स्कूल में गणित पढ़ाने वाले बनारस निवासी सर्वेंद्र सिंह से बात कर के पैदा होता है। वे कहते हैं, ”बनारस का दिल तो केजरीवाल ने जीत ही लिया है, चुनाव में वे भले हार जाएं। उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। असली खेल तो चुनाव के बाद होना है। देख लीजिएगा, कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी।”
क्या चुनाव के बाद बनारस में माहौल बिगड़ेगा? क्या दंगा हो सकता है? क्या कांग्रेस वास्तव में चुप नहीं बैठेगी? या फिर, मामला कांग्रेस का नहीं, बल्कि निजी तौर पर अजय राय के अपने अहं से कहीं ज्यादा जुड़ा है? क्या मुसलमान का पहली बार खुल कर किसी पार्टी के पक्ष में आ जाना उसके लिए खतरे की घंटी है? नरेंद्र मोदी बनारस से हार जाएं, तब भी एक सवाल मैं जरूर अंत में पूछना चाहूंगा कि क्या अरविंद केजरीवाल को बनारस से चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था?
मैं लौटकर लगातार मना रहा हूं कि सब कुछ ठीक रहे। कोई जीते, कोई हारे, बस बनारस बना रहे। बनारस से निकले किसी आदमी को और क्या चाहिए?
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