महिला उत्‍पीड़न के खिलाफ जंतर-मंतर पर बड़ा जुटान


बढ़ती साम्प्रदायिकता और नारी उत्पीड़न के विरोध में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र ने 26 अप्रैल को जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन आयोजित किया। प्रदर्शन ने उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। प्रदर्शन की शुरुआत क्रांतिकारी नारों व गीतों के साथ हुई। 
”अच्छे दिनों” और महिलाओं के प्रति हिंसा के लिए “जीरो टाॅलरेंस” जैसे जुमलों के साथ सत्ता पर काबिज हुई मोदी सरकार ने न सिर्फ यह साबित कर दिया है कि वह अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से किसी भी प्रकार से भिन्न नहीं हैं, बल्कि उनसे भी ज्यादा जनविरोधी और काॅर्पोरेट समर्थक है। अपने हिन्दुत्ववादी एजेंडे के साथ भाजपा सरकार और उसके सहोदर संगठनों ने पूरे देश में साम्‍प्रदायिक उन्माद फैलाना शुरू कर दिया है। उनके इन घृणित मंसूबों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले तबकों मे महिलाएं सर्वोपरि है। “लव जेहाद”, “बेटी बचाओ, देश बचाओ” जैसे अभियान न केवल महिलाओं के प्रति पश्चगामी मूल्यों को दर्शाते हैं बल्कि भगवा ब्रिगेड के नेताओं द्वारा दिये जाने वाले बच्चे पैदा करने वाले वाहियात बयानों ने महिलाओं को एक बच्चा पैदा करने की मशीन के रूप में दर्शाया है।   
जहां एक तरफ भाजपा के संरक्षण में हिंदुत्ववादी-फासीवादी संगठन लगातार महिलाओं की अस्मिता की अवमानना कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार ने अपनी कार्पोरेट समर्थक नीतियों के तहत कार्पोरेट जगत के अथाह मुनाफा सुनिश्चित करने हेतु मजदूरों को तीव्र शोषण और उत्पीड़न की तरफ धकेल दिया है। जाहिर है यहां महिला मजदूर भी इन नीतियों का शिकार हो रही हैं। श्रम कानूनों में संशोधन कर महिलाओं को रात की पाली में काम करवाने की इजाजत जैसे कानून महिला मजदूरों के श्रम का किसी भी हद तक शोषण कर देशी-विदेशी पूंजीपतियों के लिए अथाह मुनाफा सुनिश्चित करती है। 
इन परिस्थितियों में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र द्वारा यह प्रदर्शन आयोजित किया। कार्यक्रम की शुरुआत में सभा को संबोधित करते हुए प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की अध्यक्ष शीला शर्मा ने कहा कि आज महिलाओं पर उत्पीड़न की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है। देश में भाजपा-संघ के गठजोड़ वाली मोदी सरकार ने तेजी के साथ देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाया है जिससे पहले से ही दोयम दर्जे का जीवन जी रही मजदूर-मेहनतकश महिलाओं का जीवन और दयनीय हो गया है। हर सांप्रदायिक घटना में मेहनतकश महिलाओं को निशाना बनाया जाता है। महिलाओं की इस स्थिति को बदलने के लिए मेहनतकश महिलाओं को अपने संगठनों को मजबूत बनाकर सांप्रदायिक व पूंजीवादी तत्वों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष छेड़ने की जरूरत पहले से भी ज्यादा बन गयी है। 
परिवर्तनकामी छात्र संगठन के महासचिव कमलेश ने कहा कि देश को सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंक कर पूंजीपतियों के मुनाफा और सिर्फ मुनाफा के घृणित एजेंडे को लागू करने के लिए पूंजीपतियों के पक्ष में श्रम कानूनों में मजदूर-मेहनतकश विरोधी बदलाव किये जा रहे हैं जिससे महिलाओं का शोषण व उत्पीड़न घर व कार्यस्थल दोनों ही जगह पर और घनीभूत हो गया है, जिसके खिलाफ निर्णायक संघर्ष छेड़े जाने की जरूरत है। 
प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र की हेमलता ने कहा कि जब-जब पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था संकट में पड़ी है तब-तब पूंजीपतियों ने पूरी दुनिया को युद्धों की आग में धकेला है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय साम्राज्यवादियों ने अपने को इस संकट से निकालने व मेहनतकशों को निचोड़ डालने के लिए हिटलर जैसे फासीवादी को आगे बढ़ाया। उस समय के समाजवादी देश रूस की मजदूर मेहनतकश जनता ने फासीवाद को मुकम्मल शिकस्‍त दी थी। उसी तरह आज जब देश में बेरोजगारी विकराल रूप से बढ़ती जा रही है, खेतों में अनाज व अन्य फसलें पैदा कर पूरे देश की रोटी और कपड़े की जरूरतों को पूरा करने वाला किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। ऐसे समय में देश के 75 प्रतिशत  शासक वर्ग ने फासीवादी मोदी को केन्द्र की सत्ता पर ला कर बिठा दिया है। तब एक ही रास्ता संघर्षशील जनता के पास बचता है कि वह पूंजीवाद-साम्राज्यवादी-फासीवादी निजाम के खिलाफ अपने संघर्ष और तेज करे। 
इंकलाबी मजदूर केन्द्र के वक्ताओं ने कहा कि देशी-विदेशी एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग ने घोर प्रतिक्रियावादी-फासीवादी संगठन के साथ गठजोड़ कायम कर लिया है। यह नापाक गठजोड़ जहां एक तरफ पूंजीपतियों के हितों के लिए श्रम कानूनों में बदलाव कर रहा है, मजदूर-मेहनतकशों पर होने वाले खर्च में कटौती कर रहा है वहीं दूसरी तरफ सांप्रदायिक व फासीवादी उभार को भी बढ़ा रहा है। 
श्रम कानूनों में बदलाव व कटौती कार्यक्रम से जहां मजदूर-मेहनतकश परिवारों की महिलाओं को घर चलाना मुश्किल हो रहा है वहीं सांप्रदायिकता की आग भी मेहनतकश महिलाओं को सर्वाधिक झुलसा रही है। हर सांप्रदायिक घटना में महिलाओं को विशेष तौर पर निशाना बनाया जाता है। संघी व भाजपाई नेता जब तब कुत्सित बयान देकर महिलाओं के प्रति अपनी घृणित सोच का प्रदर्शन करते रहे हैं। कोई कहता है कि महिलाओं को दस बच्चे पैदा करने चाहिए तो कोई लव जेहाद का हव्वा खड़ा कर महिलाओं को मात्र बच्चा पैदा करने तथा रसोई तक सीमित कर देना चाहते हैं। असल में संघियों व भाजपाइयों का लक्ष्य महिलाओं को मध्य काल की स्थितियों में ले जाने का है। 
कार्यक्रम में समता मूलक संगठन के हरियाणा से आये वक्ता ने हरियाणा में महिलाओं की बुरी  स्थिति को देखते हुए काम करने की जरूरत को प्रमुखता से रखा। प्रदर्शन में ”मेरे मैके में गड़ा है झंडा लाल” गीत तथा ”फिलीस्तीनी बच्चे” कविता पर नृत्य नाटिका की भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का समापन गीत व क्रांतिकारी नारों के साथ हुआ। 
सभा में महिलाओं ने मोदी सरकार के सांप्रदायिक एजेंडे व महिलाओं के उत्पीड़न पर तीखा आक्रोश व्यक्त किया और सांप्रदायिकता, महिला उत्पीड़न की जड़ पूंजीवादी निजाम को खत्म कर समाजवादी व्यवस्था की स्थापना का प्रण व्यक्त किया। समाजवाद के लिए निर्णायक संघर्ष छेड़ने का संकल्प सभा-प्रदर्शन में लिया गया। सभा को परिवर्तनकामी छात्र संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता विमला, महिला रक्षा बाल रक्षा अभियान से कृष्ण रज्जाक, क्रांतिकारी नौजवान सभा से आर्या, इंकलाबी मजदूर केन्द्र, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, समता मूलक संगठन के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया।  
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