आज खुश तो बहुत होगे तुम…



प्रधानमंत्री के नाम एक भक्‍त का खुला पत्र 

व्‍यालोक 

आदरणीय प्रधानमंत्री
नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदीजी,

आज, खुश तो बहुत होंगे आप। आखिर, कांग्रेसमुक्त भारत का आपका सपना पूरा होने वाला जो लगता है। पांच राज्यों के आए चुनावी नतीजों ने कांग्रेस को और भी हाशिए पर धकेल दिया है। पूर्वोत्तर में आपका खाता खुल गया है, असम में पहली बार पूर्ण बहुमत से आपकी सरकार बनने वाली है। तो क्या हुआ, अगर इस जीत की अगुवाई एक पूर्व कांग्रेसी कर रहा है। तमिलनाडु और केरल में आपका कुछ भी दांव पर ही नहीं था, तो वहां कांग्रेस का बुरी तरह सफाया ही आपके लिए राहत की बात है।
केरल में वामपंथियों का फिर से सत्ता में आ जाना भी आपके लिए राहत की ही बात होगी क्योंकि वाम वाले तो वैसे भी मात्र दो प्रदेशों में सिमट कर रह गए हैं। इनसे निबटना आपके लिए वैसे भी मुश्किल नहीं होगा, अगर कांग्रेस के मुकाबले देखें। वैसे भी, देश के एक कोने में पड़े वामपंथी कहीं अधिक ठीक हैं, बनिस्बत पूरे देश में फैले कांग्रेसी असंतुष्टों के।
वैसे, एक फौरी विश्लेषण तो यही बताता है कि आपके (य़ानी भाजपा के) मूल मुद्दे ही उसको जीत दिला सकते हैं, जैसे असम में आप अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ का मामला उठा सके और उसे ध्रुवीकृत कर सके, इसलिए अंततः आपको उसका फायदा मिला। तमिलनाडु और बंगाल में वहां की देवियों ने जमकर रेवड़ियां बांटी, इसलिए वह फिर से वापसी कर सकीं। कहने का मतलब यह कि आप अपने मूल मुद्दों (हिंदुत्व) से चिपके रहें और मतदाताओं को लुभावने सपने दिखाएं और बेचें (आखिर, लोकसभा चुनाव भी तो आपने केवल Rhetoric के बूते जीता था ही) तब ही आपका फैलाव होगा। वैसे, आप और आपके लोग तो इन नतीजों का विश्लेषण करेंगे ही, मैं तो एक अदना सा आपका भक्त हूं, जिसने अपनी फौरी प्रतिक्रिया दी है।
अरे हां, भक्त से याद आय़ा। चिट्ठी लिखते हुए तो मैंने पहले अपना परिचय दिया ही नहीं। तो, मेरा परिचय यह है कि मैं आपका एक सामान्य वोटर हूं, जिसे आपके विपक्षी आजकल भक्त भी कहते हैं। भक्त वैसे तो बहुत आध्यात्मिक, सकारात्मक और प्रीतिकर शब्द है, लेकिन आपके विपक्षियों ने इसे ताना मारने के अंदाज़ में कहना शुरू किया और आजकल यह इस मायने में रूढ़ हो गया है कि भक्त जो भी है, वह दक्षिणपंथी है, आपका समर्थक है और आपकी हरेक बात को आंख मूंदकर मानने को तैयार है।
ख़ैर, पहले तो आपकी सत्ता और सरकार के दो साल पूरे होने पर बधाई हो। साथ हीबड़ी विनम्रता से आपको याद दिला दूं कि अगले साल यानी 2017 में उत्तर प्रदेश और उसके ठीक दो साल बाद 2019 में देश के सबसे बड़े चुनाव की चुनौती आपके सामने है। दिल्ली और बिहार में चूंकि आपकी पार्टी (बाक़ी की तरह मैं इन चुनावों को केवल आपसे नहीं जोड़ता) बुरी तरह हार चुकी है, तो इस मौके पर आपके लिए आत्ममंथन का एक मौका तो बनता ही है न।
श्रीमान, आत्म-मंथन की शुरुआत इससे क्यों न हो कि भाजपा के जो भी गणमान्य या छुटभैये नेता हैं, वे यह अपने दिमाग में अच्छी तरह बैठा लें कि 2019 में उनको फिर से उसी मूढ़ जनता को जवाब देना है, जिसने आपको कांग्रेसी कुशासन और भ्रष्टाचार का खात्मा करने पूर्ण बहुमत से संसद में भेजा था। 

आपकी पार्टी के जो बड़े नेता तोंद फुलाए और अधमुंदी आंखों से जनता को कुछ और समझते हुए आश्वासन देते हैं, वे समझ लें कि जनता सब कुछ जानती है।
आपकी पार्टी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार (विनम्र दक्षिणपंथी अटल बिहारी वाजपेयी वाली) अपने समर्थकों के सवाल पर गठबंधन का तर्क देती थी, कहती थी कि लोकसभा में स्पष्ट बहुमत दो। शाइनिंग इंडिया करते-करते खुद दस साल तक सत्ता से आउटशाइन हो गए। आपके पास तो लोकसभा का बहाना भी नहीं है, जनता ने झूमकर आपको बहुमत दिया है। अब, आप राज्यसभा में अल्पमत का झुनझुना कब तक थमाते रहेंगे
राम-मंदिर, धारा 370, समान नागरिक संहिता जैसे ज्वलनशील (!) मुद्दों की बात बाद में करेंगे, पहले तो इसी बात को ज़रा समझा दीजिए कि जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विधेयक जो लटके हुए हैं, उनकी आम जनता को क्या सफाई दी जाए आख़िर, आपसे तो किसी की हिम्मत होती नहीं, लेकिन भक्त होने के नाते हमें सब लोग निशाने पर रखते हैं। लोग जब किसी भी जरूरी विधेयक के मामले पर संयुक्त सत्र या ज्वाइंट सेशन बुलाने की दुहाई देते हैं, तो उनको क्या तर्क दिया जाए? लोग जब पूछते हैं कि रॉबर्ट वॉड्रा के मामले में क्या हो रहा है, नेशनल हेराल्ड के मामले में क्या हो रहा है, ऑगस्टा डील का क्या हुआ, तो फिर उनको क्या जवाब दिया जाए, यह बताइए प्रधानमंत्री महोदय?
आपकी पार्टी के छुटभैये नेता यह क्यों नहीं समझते कि ये एसी और कलफदार शर्ट माया है। जब सत्ता ही नहीं रहेगी, तो उनका कोई माई-बाप नहीं रहेगा। आपको जिताने के लिए लोगों ने दिन रात वर्चुअल से लेकर रीयल संग्राम किया था, तो अब तो उनको कुछ सवालों के जवाब देने चाहिए न। अच्छा, ये बताइए कि भ्रष्टाचार के मामले पर कांग्रेस को पानी पी-पी कर कोसने वाले हम भक्त भला ललित मोदी और वसुंधरा राजे, सुषमा स्वराज के आपसी संबंधों पर क्या सफाई दें हम लोग मध्यप्रदेश के व्यापमं घोटाले और उसके गवाहों की असामयिक मौत पर क्या बोलेंऔर, काला धन वापसी या 15 लाख को जुमला बतानेवाले अमित भाई के बयानों पर क्या रुख लें, ऑफेंसिव रहें या डिफेंसिव हो जाएं?
आप तो मुखिया हैं, सब कुछ जानते हैं, लेकिन आपके लिए सबसे जरूरी मंत्रालयों का हाल भी कुछ ठीक नहीं लग रहा। आखिर, शिक्षा को वामपंथियों से बचाने के लिए भी तो हमने आपके हाथ में नेतृत्व दिया था। प्रथमे ग्रासे मक्षिका पातः की तरह आपने स्मृतिजी को उसका मुखिया बनाया, फिर भी हम कुछ नहीं बोले (हालांकि, आपके पास उनसे बहुत बढ़िया विकल्प भी थे), लेकिन उनका प्रदर्शन तो कतई सराहने लायक नहीं है। एफटीआइआइ हो, या जेएनयू, हैदराबाद यूनिवर्सिटी हो या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, हरेक जगह सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। भद पिटी, सो अलग। इन सबके बावजूद सरकार की एचआऱडी मिनिस्टर को खड़ी होकर सफाई देनी पड़ी कि हम भेदभाव नहीं करते जी…हमारे फलाना पद पर एक वामपंथी है जी…।
हम लोग तो आपको लौहपुरुष मानते हैं। आपने पार्टी के अंदर जिस तरह अपने विरोधियों को किनारे किया, उनको मार्गदर्शक मंडल में डाला, उसके बाद भला ये कांग्रेसी-वामपंथी आपके सामने क्या हैं फिर भी, लगता है जैसे 44 सांसद आपकी पार्टी पर हावी हैं, उन्होंने संसद को अपहृत कर रखा है। आपकी पार्टी के फ्रिंज एलिमेंट (साध्वी निरंजनाा, योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज) जो भी बयानबाजी करते हैं, उसकी आपको ख़बर (या आपका आशीर्वाद) नहीं होती होगी, ऐसा मानने को मन नहीं करता है। हालांकि, लव जिहाद, बीफ बैन जैसे मसलों से आपको कौन सा राजनीतिक फायदा होने जा रहा है, वह भक्त को समझ नहीं आ रहा है…। देखिए न, एक दादरी ने कितना बवाल मचाया था। इस पर क्या किया जाए, थोड़ा समझा दीजिए प्रधानसेवक महोदय।
आपका सूचना मंत्रालय थोड़ा कमज़ोर लगता है, हालांकि आप सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया के खुद ही मास्टर हैं। तभी तो, आपके तमाम पॉजिटिव काम (लगभग एक करोड़ लोगों का एलपीजी सब्सिडी छोड़ना, डेढ़ करोड़ फर्जी राशन कार्ड रद्द होने, पहल, मुद्रा, कौशल योजना आदि-इत्यादि) तो लोगों तक नहीं पहुंचते, लेकिन स्वच्छ भारत अभियान, गंगा सफाई अभियान, योग दिवस आदि की कमियां या खामियां सब तक पहुंच जाती हैं। अपने सूचना-प्रसारण मंत्री को थोड़ा कसिए सर, हाथ से लगाम फिसल न जाए। हालांकि, कुछ तो यह भी आरोप लगाते हैं कि आपके कुछ करीबी ही (जिनका नाम भी इटली से मिलता है) कांग्रेसी चोला धारण कर आपको नुकसान पहुंचा रहे हैं, लेकिन हमें आपकी राजनीतिक सूझ-बूझ पर पूरा भरोसा है।
आपके हृदय के करीब के मुद्दों पर क्या कहूं- जी की जरनी न जाए। कश्मीर से 370 हटाने की जगह आपने पीडीपी के साथ सरकार बना ली। अब राजनीति के सॉमरसॉल्ट तो आप समझते हैं, लेकिन मूढ़ जनता को, भक्तों को क्या कहा जाए, कैसे सांत्वना दी जाएअभी सायरा बेगम के बहाने आपके पास समान नागरिक संहिता का अच्छा मौका है, लेकिन उस पर भी कुछ ठोस काम कम से कम होता दिख तो नहीं रहा है। रहे बेचारे रामलला, तो वो पिछले 24 वर्षों से तिरपाल में हैं, दो साल और रह लेंगे, लेकिन आप तो अब भूले से भी उनका नाम नहीं लेते हैं। रॉबर्ट वाड्रा भी अभी तक सींखचों के पीछे तो छोड़िए, मुकदमे का भी शिकार नहीं बना है। इस पर भक्तों का विश्वास तो हिलता है न….
श्रीमन् प्रधानसेवक! कहने को तो बहुत सी बातें थीं, लेकिन जानता हूं आपके पास समय कम है। आप कहां तक मेरी शिकायतें सुनेंगे। निष्‍कर्ष रूप में सर, अर्थनीति से विदेशनीति तक, घरेलू से लेकर रेलनीति तक… सब पर आप बैकफुट पर ही दिख रहे हैं। हंगामा बरपा है और आपके 270 सांसद सोए हुए हैं, पता नहीं मूली उखाड़ रहे हैं या रोप रहे हैं…।
मोदीजी, बेल्ट कसिए… 2017 में यूपी और उसके बस दो साल बाद संसदीय चुनाव है। विकास नाम का आपका बेटा कुपोषित है…. काम नहीं देगा।
आपका अपना
एक भक्त
(जो खुद से ही मोबाइल में नेट पैक डलवा कर आपके विरोधियों पर ताबड़तोड़ हमले करता है, उनकी गालियां सुनता है, हंसी-मज़ाक का पात्र बनता है, फिर भी आपसे उम्मीदें लगाता है) 

Read more

8 Comments on “आज खुश तो बहुत होगे तुम…”

  1. व्यालोक भाई, लगता है कि हमारी (आम भारतीय, जिसे लोग भक्त कहते हैं) की भावनाओं को आपकी लेखनी से सटीक शब्द मिल गये हैं। काश ये पत्र हमारे प्रधानमंत्री जी की नज़रों में आ जाये। कोटिशः धन्यवाद इस खुले पत्र के लिये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *