अफगानिस्तान: बैठे रहो और देखते रहो?

यह कितनी बड़ी विडंबना है कि विदेश सेवा का एक अनुभवी अफसर हमारा विदेश मंत्री है और हमारे पड़ोस में हो रहे इतने गंभीर उथल-पुथल के हम मूक दर्शक बने हुए हैं। अफसोस तो हमारे राजनीतिक दलों के नेताओं पर ज्यादा है, जो अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।

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काबुल: अभी असल सवाल सभी जातियों और कबीलों को मिला के सरकार बनाने का है

पिछले 200 साल में ब्रिटेन, रूस और अमेरिका को पठान धूल चटा चुके हैं। अब शायद चीन की बारी है। पाकिस्तान को मोहरा बनाकर यदि अब चीन अपनी चाल चलेगा तो वह भी मुँह की खाएगा।

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काबुल: भारत अपंगता छोड़े!

भारत सरकार की अफगान नीति वे मंत्री और अफसर बना रहे हैं, जिन्हें अफगानिस्तान के बारे में मोटे-मोटे तथ्य भी पता नहीं हैं। हमारे विदेश मंत्री इस समय न्यूयार्क में बैठे हैं और ऐसा लगता है कि हमारी सरकार ने अपनी अफगान-नीति का ठेका अमेरिकी सरकार को दे दिया है। वह तो हाथ पर हाथ धरे बैठी है।

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अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर भारत की बोलती बंद क्यों है?

तालिबान पाकिस्तान के प्रगाढ़ ऋणी हैं लेकिन वे भारत के दुश्मन नहीं हैं। उन्होंने अफगानिस्तान में भारत के निर्माण-कार्य का आभार माना है और कश्मीर को भारत का आतंरिक मामला बताया है। हामिद करजई और डॉ. अब्दुल्ला हमारे मित्र हैं। यदि वे तालिबान से सीधी बात कर रहे हैं तो हमें किसने रोका हुआ है?

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सांकेतिक तस्वीर

अंग्रेजीः लोकतंत्र बना जादू-टोना

यह देश के 10-15 प्रतिशत मुट्टीभर लोगों के हाथ का खिलौना बन गया है। ये लोग कौन हैं? ये शहरी हैं, ऊँची जाति के हैं, संपन्न हैं, शिक्षित हैं। इनके भारत का नाम ‘इंडिया’ है। एक भारत में दो भारत हैं। जिस भारत में 100 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं, वह विपन्न, अल्प-शिक्षित है, पिछड़ा है, ग्रामीण है, श्रमजीवी है।

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म्यांमार में तख्तापलट: एक साल के लिए आपातकाल, आंग सान सू की और राष्ट्रपति नज़रबंद

1 फरवरी को जबकि नई संसद को समवेत होना था, सुबह-सुबह फौज ने तख्ता-पलट कर दिया। कई मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और मुखर नेताओं को भी उसने पकड़कर अंदर कर दिया है। यह आपातकाल उसने अभी अगले एक साल के लिए घोषित किया है।

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अब जनता खुद खांड़ा खड़काए!

यह सही है कि हम दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं लेकिन यह मोर का नाच है क्योंकि 1 प्रतिशत सेठों के हाथ में देश की 60 प्रतिशत संपदा है।

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