हिंदुत्व की भ्रामक अवधारणा के बरक्स भारत की विवेकवादी परंपरा

प्रकृति और मानव शरीर के सजग निरीक्षक के रूप में भारत के प्रारंभिक वैज्ञानिकों और दार्शनिकों ने मानवीय ज्ञानेन्द्रियों का अध्ययन किया, स्वप्न, स्मरण शक्ति और चेतना का विश्लेषण किया। उनमें जो सर्वश्रेष्ठ थे उन्होंने प्रकृति के द्वंद को गुणात्मक और परिमाणात्मक दोनों रूप से समझा तथा आधुनिक परमाणु सिद्धांत के एक प्रारंभिक ढांचे की भी परिकल्पना कर ली। यह तर्कवादी आधार ही था जिस पर भारतीय सभ्यता पल्लवित हुई।

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क्यूबा में हालिया प्रदर्शन और तख्तापलट की साजिशों का नया अध्याय

क्यूबा पिछले 30 साल के सबसे गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने क्यूबा पर 200 से अधिक आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। अब वहां अर्थव्यवस्था की स्थिति अत्यधिक खराब है और नागरिकों के बीच असंतोष है।

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उसने कहा था- “यह महाद्वीप एक दूसरे को काटने को दौड़ती हुई बिल्लियों का पिटारा है”!

धर्म को गुलेरी जी बराबर कर्मकाण्ड नहीं बल्कि आचार-विचार, लोक-कल्याण और जन-सेवा से जोड़ते रहे। इन बातों के अतिरिक्त गुलेरी जी के विचारों की आधुनिकता भी हमसे आज उनके पुनराविष्कार की मांग करती है।

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न्याय की अवधारणा, मानवाधिकार और विलंबित न्याय: संदर्भ BK-16

अदालती फैसलों में पांच-छह साल लगना तो सामान्य-सी बात है, पर यदि बीस-तीस साल में भी निपटारा न हो तो आम लोगों के लिए यह किसी नारकीय त्रासदी से कम नहीं है। वैसे तो न्याय का मौलिक सिद्धांत यह है कि ‘न्याय में विलंब होने का मतलब न्याय को नकारना है’।

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सज़ा तो मिलेगी आतताइयों को यदि चला यह चक्र युगों तक…!

शैलेन्द्र चौहान की पांच कविताएं ईहा सारंगी के तारों से झरताकरुण रसहल्का हल्का प्रकाशकानों में घुलने लगते मृदु और दुःखभरे गीतशीर्षहीन स्त्रीसारंगी तू सुनमद्धम सी धुन अनवरत तलाश एक चेहरे …

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अमरकांत के कथा साहित्य में स्त्री की उपस्थिति

आज कथाकार अमरकांत की जयन्‍ती है। उनके लेखन का दायरा निम्नमध्यवर्ग और मध्यवर्ग की समस्याओं के आसपास केन्द्रित रहा है। इस समाज की आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को अमरकांत ने व्यापक विस्तार के साथ चित्रित किया है।

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महाविनाश को आमंत्रण है महाकाली पर बन रहा पंचेश्वर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट

2010 में एक अंतरराष्ट्रीय संस्था इंस्टीट्यूट फॉर एनवायर्नमेंटल साइंसेज (आइईएस) के लिए वैज्ञानिकों (मार्क एवरार्ड और गौरव कटारिया) के अध्ययन के अनुसार, यदि केवल महाकाली घाटी के पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं का आकलन किया जाए तो इस परियोजना की लागत, लाभ से कई गुना अधिक होगी। इस अध्ययन के अनुसार भारत और नेपाल को मिला कर घाटी के 80 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे, जिसमें मुख्यतः किसान, मजदूर, मछुआरे हैं।

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राजनीतिक उत्प्रेरक के रूप में सांप्रदायिकता का इस्तेमाल और राष्ट्रीय आंदोलन से सबक

दुर्भाग्य से हमारे कुछ बुद्धिवादियों के पास साम्प्रदायिकता एक ऐसा बांड है जिसे वे कभी भी और कहीं भी भुना सकते हैं। साम्प्रदायिकता पर उनका इतना विशद अध्ययन है कि अब उनसे कोफ़्त होने लगी है क्योंकि पूरे भारतीय समाज की हर समस्या को वे साम्प्रदायिकता से कमतर आंकते हैं। यह भी कोई अच्छी स्थिति नहीं है।

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क्‍या अब मूल्यहीन राजनीति के विकल्प के बारे में नहीं सोचना चाहिए?

क्या चुनावी राजनीति में दलों द्वारा सत्ता के बदलाव से समाज की नैतिक न्यूनतम जरूरतें पूरी होती या हो सकती हैं? हो सकती हैं अगर चुनाव सिर्फ सत्ता हासिल करने मात्र का जरिया न हों। जनता के प्रति उत्तरदायित्व निर्वहन के लिए हों। इसलिए उन वास्तविक तत्वों को समझना जरूरी है जिनके आधार पर नैतिक न्यूनतम के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है।

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आदिवासियों के लिए बिरसा भगवान क्यों हैं?

जिस समय महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट कर रहे थे, लगभग उसी समय भारत में बिरसा मुंडा अंगग्रेजों-शोषकों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ चुके थे। गांधी से लगभग छह साल छोटे बिरसा मुंडा का जीवन सिर्फ 25 साल का रहा।

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