बात बोलेगी: अब मामला उघाड़ने और मनवाने से नाथ घालने तक आ चुका है!

रिलायंस जियो के बहिष्कार के बाद शायद निकट इतिहास में यह पहला मौका है जब अंबानीज़ इस तरह बौखलाए हुए हैं, हालांकि यह बौखलाहट अच्छी है। सर्फ एक्सल कहता है कि दाग बुरे नहीं हैं। कोरोना की तरह किसान आंदोलन को इस ‘उजागर करो अभियान’ का भरपूर श्रेय दिया जाना चाहिए।

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बात बोलेगी: ‘ज़रूरत से ज्यादा लोकतंत्र’ के बीच फंसा एक सरकारी ‘स्पेशल पर्पज़ वेहिकल’!

अमिताभ कांत का बयान अगर आधिकारिक तौर पर भारत सरकार का बयान है, जो निश्चित तौर पर है, तो यह इस किसान आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि उसने भारत सरकार की असल मंशाओं को उजागर करवा लिया है।

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बात बोलेगी: जो सीढ़ी ऊपर जाती है, वही सीढ़ी नीचे भी आती है!

ये सरकारें आती हैं आंदोलनों से और जाती भी हैं आंदोलनों से ही। आंदोलन, सरकार के लिए सीढ़ी हैं। इन सीढि़यों पर सरकारें चढ़ती हैं शौक से लेकिन उतरती हैं बेआबरू होकर। उतरती क्या, उतारी जाती हैं।

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बात बोलेगी: मास्क लगाएं, हाथ धोएं, देह दूरी बनाए रखें, वैक्सीन का इंतज़ार करें, और क्या?

उन्होंने एक शानदार घटिया किस्म की सड़कछाप शायरी से अपनी बात शुरू की और कहा- ‘आपदा के गहरे समंदर से निकलकर हम किनारे की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसा न हो जाए कि हमारी कश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था। हमें वैसी स्थिति नहीं आने देनी है’।

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बात बोलेगी: ‘लव जिहाद’ के सरपट घोड़े, दौड़े.. दौड़े… दौड़े…..

‘लव’ जैसा चिर-नवीन शब्द और अहसास इसलिए ‘जिहाद’ बना दिया जा रहा है ताकि इस अहसास के पनपने से पहले इसमें युद्धपोतों की गर्जनाएं और उनसे उत्पन्न रक्तरंजित दृश्य नज़रों के सामने शाया हो जाएं।

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बात बोलेगी: जीत के सौ अभिभावक और हार का अनाथ हो जाना

क्या बिहार के चुनाव में उन मुद्दों का कोई मतलब नहीं था, जिनसे राष्ट्रीय राजनीति की दशा-दिशा बनती बिगड़ती है? इन मुद्दों को उठाने की कीमत कांग्रेस ने न केवल बिहार, बल्कि तमाम राज्यों में चुकायी है, लेकिन प्रादेशिक चुनाव को महज़ स्थानीय तो नहीं बनाया जा सकता है न?

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बात बोलेगी: मैं दुनिया के मेयार पर खरा नहीं उतरा, दुनिया मेरे मेयार पर खरी नहीं उतरी…

अदालत थोड़ा मुहज्ज़िब लहज़े में मुनव्वर से पूछती है कि ज़रा अपनी पेशानी पर बल डालो और याद करो कि देश में इतने मासूमों की लिंचिंग के बाद भी कभी ज़ी न्यूज़ का कोई पत्रकार हिन्दी के किसी ऐसे कवि से उसकी प्रतिक्रिया लेने गया जो मोहब्बत के, श्रृंगार के गीत रचता है? क्या हिंदी के छपास कवियों से उसने कभी यह पूछा कि आपके धर्म के एक बंदे ने सरेआम एक गरीब मुसलमान को जला दिया है, आपको क्या कहना है?

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बात बोलेगी: ‘टिकाऊ’ और ‘बिकाऊ’ बटमारों के दो लोकतांत्रिक शगल

बिहार पर बहुत बात हो रही है। लगभग एक तरह की ही बात हो रही है। बदलते मौसम की बात करना वैसे भी सबसे बड़ा शगल है हमारे समाज का। चुनाव के संदर्भ में यह शगल सत्‍ताधारी दल के बदलाव को लेकर है। इस बीच मध्य प्रदेश का उपचुनाव मेले के किसी कोने में लगी उस दुकान की तरह है जहां आम तौर पर सट्टेबाज बैठते हैं जिन पर ध्यान सबका रहता है पर वहां कोई जाता नहीं।

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बात बोलेगी: डर के आगे नहीं, डर में ही जीत है!

टाटा ने इस विज्ञापन को दिखाने और हटाने की अल्पावधि के अभ्यास से मौजूदा सत्ता के लिए एक बहुत ठोस सर्वे का काम किया है। देश में सहिष्णुता मापने का सबसे प्रामाणिक मापक यंत्र फिलवक्त हिन्दू-मुस्लिम एकता ही है। इसे बेहद मुलायमियत भरे लहजे में दिखाइए और असर का आकलन कीजिए।

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बात बोलेगी: एक ‘सिविल सोसायटी’ के राज में दूसरे का ‘वध’ और तीसरे का मौन

अभी ये जो कानून आए हैं पंजीकृत नागरी समाज को नेस्तनाबूत करने के, वो आपको लग सकते हैं कि सरकार लायी है लेकिन असल बात ये है कि इन्हें यह अनसिविल सोसायटी लायी है ताकि सिविल सोसायटी का वध किया जा सके

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