ऑनलाइन मीडिया मंचों के गले तक पहुंचा सरकारी निगरानी का फंदा, OTT भी जद में

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से टीवी, मीडिया के प्रसारण पर नियंत्रण और कन्टेन्ट पर निगरानी के सम्बन्ध में जवाब मांगा था, जिसके जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया था कि ऑनलाइन माध्यमों का रेगुलेशन टीवी से ज्यादा जरूरी है.

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स्मृतिशेष: कवि का कमरा, कवि की दुनिया

तमाम शोरगुल, आत्म-प्रशंसा और प्रचार से दूर रह कर विष्णुजी आजीवन चुपचाप अपने लेखन और सृजन कर्म में लगे रहे। जैसे मुक्तिबोध के जीवनकाल में उनका मूल्यांकन नहीं किया मठाधीशों ने और उनके जाने के बाद उन्हें खूब खोज कर पढ़ा गया, उसी तरह।

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CPI(M) की चुनावी रणनीति में कांग्रेस को लेकर दुविधा बरकरार, केरल में कोई समझौता नहीं

येचुरी ने कहा, ‘केरल में हम एलडीएफ का हिस्सा रहते हुए चुनाव लड़ना जारी रखेंगे. माकपा तमिलनाडु में द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा होगी. असम में हम कांग्रेस समेत सभी धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ सहयोग करते हुए चुनाव लड़ेंगे.’

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एक हम्माम में तब्दील हुई है दुनिया, सब ही नंगे हैं किसे देख के शरमाऊँ मैं!

बड़े नेता दिल्ली स्तर पर पार्टी बदलते हैं, उनसे छोटे नेता राज्य स्तर पर और सबसे निचले स्तर के जिला स्तर पर दल बदल करते हैं. मीडिया का सारा ध्यान केवल राष्ट्रीय स्तर पर रहता है. उधर जमीन पर बदलाव पर ध्यान ही नहीं जाता किसी का.

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बिहार में NDA के खिलाफ लोगों के विरोध और खाली मैदान दिखाने से मीडिया शरमाता है

इस बार बिहार के मतदाताओं में मौजूदा सरकार यानी बीजेपी-जदयू वाले गठबंधन के खिलाफ़ भारी आक्रोश है. हालत यह है कि खाली सभाओं को छिपाने के लिए पुरानी तस्वीरें लगाकर सोशल मीडिया पर झूठा प्रचार तक किया गया.

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बेमौसम कुछ भी अच्छा नहीं होता, बारिश हो या खैरात!

अब यदि भविष्य में बरसात से पहले कहीं चुनाव का मौसम हो, तो संकल्प-पत्रों में मुफ़्त छाता, नाव और लाइफ जैकेट बांटने की घोषणाओं का सिलसिला शुरू हो सकता है. वैसे भी हमारे प्रधानजी को तो यह तक पता होता है कि कौन-कौन रेनकोट पहनकर नहाता है देश में. उनके लिए रेनकोट को भी मुफ्त वाली सूची में शामिल किया जा सकता है.

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CAA पर सिलीगुड़ी में नड्डा का ऐलान बंगाल चुनाव की ज़मीन तैयार कर चुका है!

नड्डा द्वारा सीएए जल्द लागू करने की घोषणा के बाद पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी पर तीखा हमला किया है. तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट में लिखा- सुनो बीजेपी, कागज दिखाने से बहुत पहले हम तुम्हें दरवाजा दिखा देंगे.

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बरसों तक भीख मांग कर खाने वाला एक फ़कीर हंगर इंडेक्स को कैसे स्वीकार करे!

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार 27.2 स्कोर के साथ भारत में भूख के मामले में स्थिति ‘गंभीर’ है. रिपोर्ट के अनुसार भारत की करीब 14 फीसदी जनसंख्या कुपोषण का शिकार है.

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अदालत का फैसला अगर ‘न्याय’ से चूक जाए, तो आदमी क्या करे? कहां जाए?

जिस तरह भारतीय किसान की उम्मीद मानसून पर होती है हर साल, ठीक उसी तरह एक आम नागरिक की उम्मीद अदालत और देश की न्याय व्यवस्था से होती है। मानसून पर इन्सान का वश नहीं है, किन्तु अदालतें इन्सान यानी न्यायाधीशों के सहारे चलती हैं।

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ज़मीन में उग आयी है नदी, गांवों में घुस आये हैं जानवर! असम में दोहरी तबाही का मंज़र…

क्यों हर साल वहां के लोगों को डूब कर मरना पड़ता है? क्यों बाढ़ नियंत्रण के लिए सरकारें कोई योजना बना कर हल नहीं खोजतीं? हर साल पता होता है कि तबाही आ रही है लेकिन हर साल सरकारें और प्रशासन शुतुरमुर्ग की तरह ज़मीन में सिर गड़ा लेते हैं?

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