आर्टिकल 19: UN में गमकता महिला सशक्‍तीकरण का गजरा हाथरस में सूखकर बिखर गया है!

एक तस्वीर में डीएम धमकी दे रहा है। एक तस्वीर में एडीएम धमकी दे रहा है। एक तस्वीर में थानेदार धमकी दे रहा है। पूरे गांव के बाहर रस्सी से बैरिकेडिंग कर दी गयी है। इतनी सख्ती तो भारत पाकिस्तान सीमा पर भी नहीं। ये सारी तस्वीरें बहुत बेचैन करने वाली हैं। बहुत भयावह हैं। बहुत परेशान करने वाली हैं।

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आर्टिकल 19: जो चैनल चला रहा है, उसी को किसानों को भी लूटना है! खेल समझिए…

दरअसल, करोड़पतियों के नींद, चैन, सुकून का हिसाब-किताब करने में व्यस्त टीवी चैनलों को फुर्सत नहीं मिल पा रही है कि वो माथे पर चुहचुहाते पसीने से तरबतर किसानों की छिन चुकी नींद और सुकून की खबर ले लें और खबर दे दें।

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आर्टिकल 19: सरकार को डिजिटल से दिक्‍कत है, मने टीवी चैनल अब अप्रासंगिक हो चुके हैं

टीवी चैनलों के प्रासंगिकता खो देने की बात हवा में नहीं है। खुद मोदी सरकार ने अदालत में सील ठप्पे के साथ ये हलफनामा दिया है कि ये सब तो हमारे काबू में हैं, लेकिन डिजिटल मीडिया वाले नहीं आ रहे। आप उन पर लगाम कसिए।

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आर्टिकल 19: आजतक नहीं, रिपब्लिक! जब खालिस दुर्गंध यहां मिले तो कोई वो क्‍यूं ले, ये न ले…

आजतक की ये दुर्गति इसलिए हुई है कि अरुण पुरी ने अर्णब गोस्वामी बनने में पूरी ताकत झोंक दी। उसके पास न अपनी रिपोर्टें थीं, न अपना कोई पत्रकारीय विमर्श और न ही कोई स्वतंत्र सोच। आजतक बस ईवेंट जर्नलिज्म कर सकता था।

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आर्टिकल 19: लोकतंत्र के शून्‍यकाल में…

भारत की संसदीय व्यवस्था में लोकतंत्र का मतलब बीजेपी का, बीजेपी के लिए और बीजेपी के द्वारा हो चुका है। बीजेपी ही सवाल पूछ सकती है। बीजेपी को ही जवाब देना है और बीजेपी को ही सुनना है। इसीलिए 14 सितंबर से शुरू होने जा रहे संसद के सत्र में विपक्ष के सांसदों की जुबान पर ताला लगा दिया गया है।

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आर्टिकल 19: दिल्‍ली दंगे पर एमनेस्‍टी की रिपोर्ट और सन् चौरासी के प्रेत की वापसी

एमनेस्‍टी ने एक विस्तृत जांच के बाद जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें भारत की सबसे शानदार पुलिस माने जाने वाली दिल्ली पुलिस का रंग रूप बहुत घिनौना, बहुत डरावना और बहुत भयानक नजर आता है।

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आर्टिकल 19: प्रशांत भूषण ने नैतिकता की एक लंबी लकीर खींच दी है, जिसका नज़ीर बनना तय है

फैसला कुछ भी हो लेकिन प्रशांत भूषण हीरो बन चुके हैं। अगर सजा मिलती है तब भी और अदालत उन्हें सिर्फ फटकार लगाकर छोड़ने का फैसला करती है तब भी। भारत के न्यायिक इतिहास में अवमानना के मामले में अदालत से बाहर इतनी जोरदार बहस कभी नहीं हुई।

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आर्टिकल 19: हम उस बुलडोज़र पर बैठे हैं जो हमारी आज़ादी को कुचलते हुए आगे बढ़ रहा है!

झूठ कहती हैं किताबें कि आज़ादी की लड़ाई में देश का हर तबका शामिल था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के लोग इसी देश के लोग तो थे। गोडसे भी इसी देश में रहता था, लेकिन आरएसएस को तो आज़ादी नहीं चाहिए थी? यह तिरंगा भी नहीं चाहिए था। संविधान भी नहीं चाहिए था। वही संघ देश चला रहा है।

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आर्टिकल 19: सामाजिक न्याय की पुकार 5 अगस्त को धर्म की मिट्टी के नीचे दफन कर दी गयी है!

लक्ष्य अयोध्या नहीं है। राम का मंदिर नहीं है। रामराज तो कतई नहीं है। रामराज सामाजिक न्याय के खिलाफ उछाला गया ऐसा जुमला है जिसके झांसे में आकर ओबीसी ने माथे से रामनामी बांध ली है। लक्ष्य है सामाजिक न्याय की पुकार को धर्म की मिट्टी के नीचे दफन कर देना।

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आर्टिकल 19: जनता सड़कों पर है, लेखक दड़बों में!

लेखकों की अक्सर शिकायत रहती है कि लोग उन्हें सुनते नहीं। उन्हें पढ़ते नहीं। लेकिन इन सवालों से पहले जो सवाल बनता है वो ये कि जब लेखक अपने समय के सवालों से लड़ेगा नहीं तो उसे पढ़ेगा कौन? और क्यों पढ़े। उससे क्यों जुड़े।

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