तन मन जन: कोरोना ने प्राइवेट बनाम सरकारी व्यवस्था का अंतर तो समझा दिया है, पर आगे?

स्वास्थ्य और उपचार का सवाल जीवन से जुड़ा है और यह हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। स्वास्थ्य सेवाओं को निजीकरण के जाल से बाहर निकाले बगैर आप स्वस्थ मानवीय जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। अभी भी वक्त है। जागिए और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की गारन्टी के लिए आवाज बुलंद कीजिए।

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तन मन जन: पब्लिक हेल्थ और जनसंख्या नियंत्रण की विभाजक राजनीति

चुनाव से पहले भारत में जहां भी आबादी नियंत्रण की बात उठती है तो साफ तौर पर समझा जा सकता है कि उनकी चिंता के पीछे जनसंख्या से ज्यादा धर्म, नस्लवाद, जेनोफोबिया या कट्टरता है। उनकी नजर में केवल कोई एक सम्प्रदाय है जिसकी आबादी को नियंत्रित करने की जरूरत है।

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तन मन जन: कोरोना की तीसरी लहर के लिए कितना तैयार हैं हम?

सवाल है कि इस महामारी से जूझते हुए लगभग डेढ़ वर्ष के तजुर्बे के बाद भी क्या हम देश की जनता को यह आश्वासन दे सकते हैं कि हमारी सरकार एवं यहां की चिकित्सा व्यवस्था महामारी से जनता को बचाने एवं निबटने में सक्षम है?

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तन मन जन: महामारी का राजनीतिक अर्थशास्त्र और असमानता का वायरस

जब लॉकडाउन में सभी जगह का उत्पादन बन्द था, पेट्रोल, डीजल की बिक्री भी बाधित थी, दुकानें बन्द थीं, गोदामों में तैयार माल डम्प थे, जीडीपी का ग्राफ नीचे जा रहा था तब इन अरबपतियों की सम्पत्ति दिन दूनी रात चौगुनी कैसे बढ़ रही थी? यह सवाल हर किसी की जिज्ञासा है।

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तन मन जन: रामदेव के दावे और IMA का गुस्सा

इस विवाद की आड़ में सरकार ने जनता को रामदेव एवं आइएमए के सर्कस में व्यस्त कर अपनी विफलता से लोगों को ध्यान बंटा दिया। कुल नतीजा क्या निकला पता नहीं मगर इस नूराकुश्ती ने वर्तमान सरकार के विफल कोरोना संक्रमण नियंत्रण के प्रति उत्पन्न जनाक्रोश को थोड़ा ठंडा कर दिया।

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तन मन जन: जनस्वास्थ्य के अधूरे ढांचे और गाँव गणराज्य की उपेक्षित संकल्पना के सबक

गांव गणराज्य की कल्पना भारत के पूर्व आइएस एवं सिद्धान्तकार डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा ने स्पष्ट रूप से ढाई दशक पहले ही दी थी जिसे सरकारों ने कूड़े में डाल दिया। यदि जनस्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा का प्रबन्धन और कार्यान्वयन गांव या प्रखण्ड के स्तर पर हो तो देश में कभी भी ऐसी मारामारी और हाहाकार की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।

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तन मन जन: जन-स्वास्थ्य की कब्र पर खड़ी कॉरपोरेट स्वास्थ्य व्यवस्था और कोविड

मुनाफे के लालच में देश में गोबरछत्ते की तरह उगे पांच सितारा अस्पतालों की हकीकत को देश ने इस बार देख लिया। वैश्विक आपदा की इस विषम परिस्थिति में भी आखिरकार सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक एवं चिकित्साकर्मियों ने ही अपनी जान जोखिम में डालकर पीड़ितों की सेवा की और हजारों जानें बचायीं।

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तन मन जन: कोरोना की दूसरी लहर का कहर और आगे का रास्ता

यदि वैक्सीन लगाने की रफ्तार नहीं बढ़ाई गई तो 70 फीसद आबादी को वैक्सीन लगाने में दो साल से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में अब तक लगभग 30 करोड़ लोग कोरोनावायरस की चपेट में आ चुके हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अभी 100 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित नहीं हुए हैं और उन्हें बचाना सबसे बड़ी चुनौती है।

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विश्व स्वास्थ्य दिवस: एक साफ, स्वस्थ विश्व के निर्माण का संकल्प

गांधी जी ने कहा है कि स्वतंत्रता पाने के लिए व्यक्ति को इसके लायक बनना होता है और इसके लिए व्यक्तिगत अनुशासन, साफ सफाई, इन्सानियत आदि सबसे पहली जरूरत है।

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तन मन जन: लाकडाउन का एक साल और निराशा के कगार पर खड़ी 130 करोड़ की आबादी

स्कूल बंद हैं। यातायात बाधित है। व्यापार लगभग ठप है। युवा तनाव में है। लोगों के आपसी रिश्ते दरक रहे हैं। पुलिस और प्रशासन की निरंकुशता ज्यादा देखी जा रही है। लोगों की ऐसी अनेक आशंकाओं को यदि ठीक से सम्बोधित नहीं किया गया तो 130 करोड़ की आबादी में जो निराशा फैलेगी उसका इलाज इतना आसान नहीं होगा।

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