48 वर्षीय फैसल खान ने अपनी सारी जिंदगी साम्प्रदायिक सदभावना के काम के लिए लगा दी है। लोगों के बीच में शांति और सौहार्द बना रहे, इसके लिए न जाने उन्होंने कितनी यात्राएं की हैं, सिर्फ भारत के अंदर ही नहीं बल्कि भारत से पाकिस्तान के बीच भी। फैसल खान अगर कुरान की आयतें पढ़ते हैं तो उतनी ही आसानी से रामचरितमानस की चौपाई भी पढ़ते हैं। वे मस्जिद में नमाज़ अता करते हैं, तो मंदिर में प्रसाद ग्रहण कर पुजारी से आशीर्वाद भी लेते हैं।
पिछले वर्ष उन्होंने अयोध्या में सरयू आरती में भी हिस्सा लिया। 2018 में जाने-माने संत मुरारी बापू ने उन्हें अपने स्थान महुआ बुलाकर सद्भावना पर्व पर पुरस्कार दिया और अपनी सभा में बोलने का मौका भी दिया। फैसल खान से रामचरित मानस के दोहे व चौपाई सुनकर मुरारी बापू इतने गदगद हो गए कि उन्होंने कहा कि वे एक दिन फैसल खान द्वारा जामिया मिल्लिया के निकट गफ्फार मंजिल में, किसी भी प्रकार के भेदभाव के कारण शहीद हुए लोगों को समर्पित, ‘सबका घर,‘ जो फैसल खान द्वारा स्थापित किया गया है, देखने जरूर आएंगे। ‘सबका घर‘ साम्प्रदायिक सद्भावना की एक मिसाल है जहां विभिन्न धर्मों को मानने वाले एक साथ रहते हैं और होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस सभी त्योहार सब मिलकर मनाते हैं।
हाल में फैसल खान ने चांद मोहम्मद, आलोक रतन व निलेश गुप्ता को लेकर बृज में 84 कोस की परिक्रमा की और इसी यात्रा के दौरान मथुरा के नंद बाबा मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। मंदिर में प्रसाद ग्रहण किया व पुजारी को रामचरितमानस की चौपाइयां सुनाईं। पुजारी ने प्रसन्न होकर उन्हें मंदिर प्रांगण में ही नमाज अता करने की अनुमति दे दी। यह घटना 29 अक्टूबर 2020 की है। मंदिर प्रांगण में नमाज अता करते हुए फैसल खान व चांद मोहम्मद की फोटो जब सार्वजनिक हुई तो ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ने दुर्भावना से मंदिर के पुजारी को पुलिस से शिकायत करने को कहा। इसीलिए घटना के तीन दिन बाद 1 नवम्बर को प्राथमिकी दर्ज हुई। चारों यात्रियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराएं 153ए, 295 व 505 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। 2 नवम्बर, 2020 को करीब चार बजे उत्तर प्रदेश पुलिस उन्हें दिल्ली में गिरफ्तारी के बाद मथुरा ले गई।
पुलिस द्वारा दर्ज धाराओं में विरोधाभास है। जो व्यक्ति मथुरा में 84 कोस की परिक्रमा कर रहा है उसका उद्देश्य किसी की धार्मिक भावना भड़काना कैसे हो सकता है? हिन्दू धर्म के अनुयायियों को तो इस बात से खुश होना चाहिए कि दूसरे धर्म को मानने वाले उनकी मान्यताओं के अनुसार परिक्रमा कर रहे हैं और मंदिर में भगवान का दर्शन कर प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। वैसे सभी धर्म मानते तो यही हैं कि भगवान एक है। तो फिर इससे क्या फर्क पड़ता है कि उस भगवान की पूजा कैसे की जाए? कोई नमाज़ पढ़कर वही पूजा कर सकता है। यानी मंजिल एक है, रास्ते ही तो अलग अलग हैं। जो समझदार होंगे उन्हें इसमें कोई आपत्ति नहीं हो सकती। हां, कोई धर्म के आधार पर राजनीति करना चाह रहा हो या धार्मिक भावनाओं के आधार पर समाज का ध्रुवीकरण करना चाह रहा हो तो वह जरूर इसको विवाद का मुद्दा बना सकता है।
फैसल खान अयोध्या के रामजानकी मंदिर, दुराही कुआं, सरजू कुंज स्थित सर्व धर्म सद्भाव केन्द्र न्यास के न्यासी भी हैं। आचार्य युगल किशोर शास्त्री के इस मंदिर को एक सर्व धर्म सद्भाव केन्द्र के रूप में विकसित करने की योजना है। इस मंदिर में फैसल खान ने कई बार आ कर नमाज अता की है और यहां किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। इस मंदिर में सभी धर्मों को मानने वाले व दलित समेत सभी जातियों का स्वागत होता है। इस मंदिर में लंगर को आयोजन होता है जिसकी संचालन समिति के अध्यक्ष फैजाबाद के दानिश अहमद हैं। धर्म का तो उद्देश्य ही यही है कि लोगों को मिलजुल कर रहने का संदेश दे। धर्म को यदि कोई झगड़े का आधार बनाता है तो वह धार्मिक कृत्य नहीं है।
हम समाज से अपेक्षा करते हैं कि फैसल खान को ठीक से समझे और सामाजिक सौहार्द को मजबूत करने के प्रयासों का साथ दे, न कि उनका जो समाज को अपने निहित स्वार्थ हेतु बांटना चाहते हैं। हम यह भी मांग करते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार व पुलिस अपनी गल्ती को सुधारते हुए फैसल खान व उनके साथियों के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस ले व फैसल खान को ससम्मान रिहा करे।
आचार्य युगल किशोर शारण शास्त्री, महंत, रामजानकी मंदिर, सरयू कुंज, दुराही कुआं, अयोध्या,
डॉक्टर संदीप पाण्डेय,
रेमन मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त