काशी को देश की धार्मिक, सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। काशी, सर्वविद्या की राजधानी भी कही जाती है। क्या-क्या नहीं कहा जाता बनारस को। बनारस की तारीफ में ये भी कहा जाता है- बनारसी ठग होते हैं। ये सुनकर बनारसी गदगद हो जाता है। बनारस के बाहर जाता है तो बाहरियों से अपनी तारीफ़ सुन लजा जाता है। हालाँकि अब समय बदल गया है। ठगों को भी ठगने वाले आ गये हैं। वे बनारस वालों को भी ठग देते हैं। बाहर से ठग आते हैं। ठगकर चले जाते हैं। पर ठग कैसे स्वीकार कर ले कि वो ठगा गया। स्वीकार कर लेगा तो ठगी के ‘मार्केट’ में उसकी ‘रेपुटेशन’ खराब हो जाएगी।
जब मेरी तारीफ में कोई कहता है- बनारसी ठग होते हैं, तब मैं सोचने लगता हूं- ठगों की संख्या कहाँ अधिक होगी? वहीं, जहां मूर्खों की संख्या अधिक होगी। जहां कोई सड़कछाप ठग भी किसी को आसानी से बेवकूफ बनाकर ठग ले। पर मैं अपने शहर के बारे में ऐसा कभी नहीं सोच सकता कि यहां मूर्खों की संख्या अधिक है। सबकी तरह मैं भी अपने शहर से प्यार करता हूं। उसी प्यार का मान रखने के लिए मैं ये कभी नहीं मान सकता कि यहां मूर्खों की संख्या अधिक है। अपने शहर से प्यार जताने के लिए मूर्खता के सभी आरोप मैं अपने ऊपर लेता हूं- इस शहर में एकमात्र मूर्ख मैं हूं। बाकी सब तारीफ वाले ठग हैं। वे मुझे ठग सकते हैं। अपनी मूर्खता का मान रखने के लिए मैं बारम्बार ठगे जाने के लिए तैयार हूं।
सर्वविद्या की राजधानी में महामना की बगिया भी है- बीएचयू- बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी- काशी हिंदू विश्वविद्यालय। इसके नाम में भी विविधता है। अंग्रेजी में बनारस, हिंदी में काशी हो जाती है। विविधता को पूर्ण करने के लिए संस्कृत विद्वानों को इसमें बनारस, काशी का संस्कृत नाम जोड़ देना चाहिए। इससे महामना की बगिया की सांस्कृतिक विविधता भी पूर्ण हो जाएगी।
महामना की बगिया में भाँति-भाँति के पुष्प हैं। नागफनी के बड़े-बड़े पेड़ भी हैं। वे बगिया में सेटल हो चुके हैं, पर बगिया की नागफनी बनकर वे संतुष्ट नहीं हैं। वे महामना की बगिया से सरकार की आँखों में पड़ना चाहते हैं। काँटा से तारा बनने के लिए वे अपनी पहचान का दायरा बढ़ाना चाहते हैं। सरकार के कान को मंत्रमुग्ध करने के लिए अपनी सांस्कृतिक विविधता का परिचय देते रहते हैं। सेटल हो चुके हैं, इसलिए उनकी बात सुनी भी जाती है। वायरल भी होती है। की जाती है। सड़कछाप की तरह ये नहीं कहा जाता- इसका माथा फिरंट हो गया है।
बीएचयू के कला संकाय में संस्कृति-2018 का आयोजन हुआ। आयोजन के दौरान नाथूराम गोडसे आधारित नाटक ‘मी नाथूराम गोडसे बोलतोय’ पर एक प्रस्तुति हुई। बीएचयू के छात्रों ने ही प्रस्तुति का विरोध भी किया। उनका कहना था कि नाट्य प्रस्तुति के माध्यम से गोडसे का महिमामंडन और महात्मा गांधी का अपमान किया गया। इस संबंध में पूछे जाने पर कला संकाय प्रमुख ने एक अंग्रेजी समाचार पत्र को बताया- ‘मुझे इस घटना के बारे में पूछना होगा। मैंने इस बारे में नहीं सुना है। ऐसे चित्रण में कुछ गलत नहीं है। हर व्यक्ति को सम्मान और प्यार देना चाहिए, ये हमारे महापुरुष हैं। हमें इनका सम्मान करना चाहिए।’ वाक्चातुर्य से भरे कला संकाय प्रमुख के कथन में महापुरुष कौन है?
बीएचयू के कला संकाय में नाटक के आयोजन के बाबत समाचार पत्रों में कला संकाय प्रमुख के अनुसार ये भी छपा- ‘मुझे इस आयोजन की जानकारी नहीं।‘ यह बयान संकाय प्रमुख के अधिकारों के प्रति उनका अज्ञान नहीं है। यह उनकी दूरदर्शिता का परिचायक है। ‘सेटल’ होने के लक्षण हैं। बैंकों में एलओयू का घोटाला होता रहा, सरकार को पता ही नहीं चला। छोटे सरकार उर्फ वित्तमंत्री ने कह दिया- ‘बैंककर्मियों की मिलीभगत से फ्रॉड हुआ।‘ बयानों से बनी और उन्हीं से चल रही सरकार की नज़र में ऊपर उठने के उपक्रमों से संकाय प्रमुख भली-भाँति परिचित हैं। वे जानते हैं, बयानों से सहारे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री बना जा सकता है।
दरबारियों के उत्कर्ष के दौर में तरक्की कौन नहीं चाहता? प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष बनना चाहते हैं। विभागाध्यक्ष, संकाय प्रमुख बनना चाहते हैं। संकाय प्रमुख, कुलपति बनना चाहते हैं। कुलपति, राज्यपाल बनना चाहते हैं। अब तो सेना प्रमुख भी सांसद बनना चाहते हैं। इसके लिए वे सेनाध्यक्ष के पद पर रहते हुए ही तैयारी शुरू कर दे रहे हैं। सामरिक सुरक्षा की रणनीति बनाने की जगह सांसद बनने की राजनीति करने लगे हैं। वाह रे सेटल…
इधर कई अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, सरकार की सेवा में रत हैं। सरकार की कई लुटेरी नीतियों से असहमत होने के बाद भी अपने पेशे के माध्यम से वे सेवारत हैं। कारण- किसी तरह अच्छी जगह सेटल हो जाएं। अनुदान बढ़ जाए। किसी मंत्री या पदाधिकारी के मीडिया प्रभारी बन जाएं।
इधर एक संकाय प्रमुख हैं। उनके घर मेरा आना-जाना लगा रहता है। वे कुलपति के रूप में सेटल होना चाहते हैं। वे जानते हैं, प्रचंड बहुमत वाली सरकार पूँजीपतियों की कठपुतली है। कठपुतली सरकार की ढाल संघ का ‘हिंदू खतरे में है’ है। संकाय प्रमुख भी पूँजीपतियों की तरक्की के लिए लायी जा रही लूट की योजनाओं की ढाल बनकर सेटल होना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने पुख्ता योजना तैयार की है। अपनी योजना का ‘प्रेजेंटेशन’ वे मुझे देते हैं। मेरे सामने अभ्यास करते हैं, कैसे दरबार में अपना रंग जमाएंगे- न्यू इंडिया सम्राट! जब राजकोष की वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में विरोधियों ने आपके साम्राज्य पर हमला किया था, उस दौरान मैंने महात्मा गांधी की अहिंसक टोली पर लाठीचार्ज किया था। सम्राट खुश हुए तो खुशखबरी सुनाने के एवज में अपना कोई डिजायनर सूट दे देंगे।
अगर कहीं सम्राट ने संकाय प्रमुख को कुलपति बनाने का आश्वासन दे दिया, तो संकाय प्रमुख अपना कपड़ा उतार देंगे। संघ के गणवेश में संकाय प्रमुख की कुर्सी पर बैठने लगेंगे। सामने टेबल पर कलम रखने वाला होल्डर भी होगा। उसमें से कलम हटवा देंगे। लाठी रखेंगे।
सेटल होने की कोशिश करने वालों में सामुदायिकता का प्रबल भाव होता है। सेटल समुदाय के सदस्य एक दूसरे के सहयोग से अपने ‘बॉयोडाटा’ को मजबूत बनाते हैं। न्यू इंडिया में सिर्फ प्रभावशाली शैक्षणिक योग्यता पर योग्य की मुहर नहीं लगती। ‘एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी’ प्रभावशाली होनी चाहिए। एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी अर्थात पाठ्येतर गतिविधि? नहीं जी, ‘न्यू इंडिया’ में इसके भी मायने बदल गये हैं।
जब मैं विश्वविद्यालय में था, तब ही हम लोगों ने एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी की परिभाषा बदल दी थी। विश्वविद्यालय में इलाके के अनुसार छात्रों के गुट थे। विश्वविद्यालय में शोर मचता। प्राक्टोरियल बोर्ड की सीटी बजती। पुलिस जीप का सायरन सुनाई देता। बाहर बैठे छात्र-छात्राएं अपनी कक्षा में भागते। इन क्रमिक घटनाओं से हम समझ जाते- भारत माता मंदिर में छात्र गुटों के बीच एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी हुई है।
संकाय प्रमुख, कुलपति के संभावित इंटरव्यू की प्रेजेंटेशन भी देते हैं। नाट्य रूपांतरण के साथ, जिसके अनुसार, वे इंटरव्यू देने पहुंचते हैं जहां बिना देखे ही उनका अकैडमिक रिकॉर्ड किनारे लगा दिया जाएगा- एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी रिकॉर्ड पेश करिए। वे सूटकेस से मोटी फाइल निकालेंगे। जैसे आज़ादी के बाद से ही वित्तमंत्री बजट के दौरान सूटकेस से गरीबी मिटाओ योजना निकालते आ रहे हैं। फाइल के पन्ने पलटे जाएंगे- गांधी की टोली पर लाठीचार्ज किया था। वाह। संकाय प्रमुख के अधिकार भी नहीं जानते। गज़ब। आप न्यू इंडिया की अर्हताओं पर खरे उतरते हैं। बधाई हो।
अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए अभी वे ‘कटिंग’ इकट्ठा कर रहे हैं; एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी की फ़ाइल का वज़न बढ़ाने के लिए। इस कार्य में सेटल समुदाय के दूसरे सदस्य उनका सहयोग कर रहे हैं। सहयोग के एवज में- आप सेटल हो जाइएगा तो मेरा भी देख लीजिएगा।
उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद इंडिया टीवी पर ‘आप की अदालत’ में रजत शर्मा ने योगी आदित्यनाथ को उनके दिए कुछ विवादास्पद बयानों की याद दिलायी थी, जैसे- “अगर वो एक हिंदू लड़की को उठाएंगे तो हम सौ मुसलमान लड़कियों को उठाएंगे… अगर वो हिंदू को मारेंगे तो हम सौ मुसलमानों को मारेंगे।” आदित्यनाथ ने इस पर जवाब डिया था- ‘’ये ‘कंडीशनल’ बयान है’’।
यह बयान देते समय योगी आदित्यनाथ की क्या ‘कंडीशन’ थी? वे गोरखनाथ मंदिर के महंत थे। गोरखपुर के सांसद थे। ऐसे बयानों से वे मुख्यमंत्री बनने की कंडीशन तैयार कर रहे थे। मंदिर के महंत से प्रदेश के महंत के रूप में सेटल होने का ‘ब्लूप्रिंट’ तैयार कर रहे थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने धर्म की राजनीति का सच बता दिया। धर्म का प्रयोग ‘कंडीशनल’ है। कंडीशन के कारण नवढ़े न समझने पाएं, इसलिए धर्म को ‘कम्पल्सरी’ साबित करने वाले बयान लगातार दिए जाते हैं।
महंतों की माया मेरे पल्ले नहीं पड़ती। महंतई छोड़ कर वे नेता क्यों बनना चाहते हैं? महंत बनकर देवी-देवताओं की सेवा करने की जगह वे कीड़े-मकोड़ों की तरह जीने वाले आदमियों की सेवा क्यों करना चाहते हैं? देवी-देवताओं का दरबार छोड़ वे जनता के दरबार में क्यों आते हैं? शायद देवी-देवताओं को जोड़ने वाली उनकी ’हॉटलाइन’ ख़राब हो जाती हो। ये हॉटलाइन मिलाते हों तो आवाज़ आती हो- ‘’डिअर सब्सक्राइबर, आपने जो नम्बर डायल किया है, वो अभी दूसरी कॉल पर व्यस्त है। कृपया होल्ड करें या कुछ देर बाद कॉल करें।‘’ घंटों तक होल्ड और महीनों तक री-डायल करने पर भी हॉटलाइन नहीं जुड़ती। तब उन्हें किसी अन्य भूतपूर्व महंत (जो जनता के दरबार में सेटल हो चुका है) का मैसेज आता है- ‘’हॉटलाइन जोड़ने वालों की बहुत भीड़ है।‘’
मैं वर्षों तक जोड़ने की कोशिश करता रहा। नहीं जुड़ी। तब मैंने नंबर बदल कर लगाया। तुरंत लग गया। देवी-देवताओं का दरबार छोड़ जनता के दरबार में आ गया। इस दरबार में नियमित आरती करने और भोग लगाने की आवश्यकता नहीं। दरबार में जनता जब ज्यादा शोर करती है, तब उसकी आरती कर देता हूं। चरण धो देता हूं। भोग लगा देता हूं। उनके साथ बैठ भोजन कर लेता हूं। अनुभव है, इसलिए सलाह दे रहा हूं- देवी-देवताओं का दरबार छोड़ जनता के दरबार में सेटल हो जाओ।
कभी-कभार परिस्थितियां जटिल हो जाती हैं। बचाव में दिया जाने वाला बयान नहीं सूझता। ऐसे में सेटल होने की कोशिश में लगे दूसरे सहयोग करते हैं। वो अपने बयान से मुश्किल कम करते हैं- ‘कहिए तो ऐसा बयान छाप दें।‘
अमुक धर्म खतरे में है भी एक व्यवसाय है। स्टार्ट-अप का एक रूप है। इस व्यवसाय के माध्यम से जो सेटल हुए हैं, जिनको रोजगार मिला है, उनकी ठीक-ठीक संख्या बता पाना मुश्किल है क्योंकि इस स्टार्ट-अप से सेटल होने वालों की संख्या स्थिर होने का नाम ही नहीं ले रही। दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। महंत और मौलवी तो सेटल हो चुके हैं। नवढ़ा को भी इस स्टार्ट-अप को अपना धर्म मान इसमें लग जाना चाहिए ताकि वो लिंक मांगने की जगह लिंक देने लगे। अमुक धर्म खतरे में है के स्टार्ट-अप की योग्यता के साथ न्याय ये होगा कि नवढ़ा खुद लिंक बनाने लगे जिसे प्रौढ़, सवालों के जवाब के तौर पर प्रस्तुत करने लगें। इससे प्रौढ़ों को भी युवाशक्ति का अहसास हो जाएगा। युवाशक्ति का अहसास कराने के लिए नवढ़ा को स्टार्ट-अप में लग जाना चाहिए। अमुक धर्म खतरे में है कि टर्म्स एंड कंडीशन तो आती-जाती रहेंगी।