प्रशांत भूषण पर 11 साल पुराने अवमानना मामले में सुनवाई, दुनिया भर से समर्थन में आयी आवाज़ें


प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण पर अवमानना की कार्यवाही के खिलाफ दुनिया भर से अब आवाज़ें आ रही हैं। वैश्विक विद्वानों की ओर से एक बयान आया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जजों से मुकदमा वापस लेने का आग्रह किया गया है। इसके साथ ही आज 2009 के एक पुराने मामले में प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना पर आज सुनवाई भी हुई है जिसमें उन्‍होंने कोर्ट के कहने पर माफीनामा लिखने से इनकार कर दिया है।

वर्ष 2009 वाले अवमानना की कार्यवाही प्रशांत भूषण द्वारा एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार पर आधारित है। उन्होंने कहा था कि 1990 से लेकर 2010 तक बने लगभग आधे मुख्य न्यायाधीश भ्रष्ट रहे हैं। उन्होंने ये भी स्पष्ट किया था कि इसमें भ्रष्टाचार का सीधा मतलब सिर्फ घूस लेने या पैसों का इधर उधर करना जरूरी नहीं है। इस मामले में फिर तीन हलफनामे के जरिये सबूत सहित सुप्रीम कोर्ट में जमा किया जा चुका है। इन हलफनामों में कई घटनाओं का ज़िक्र है जो प्रशांत भूषण के बयान का आधार हैं। जवाब दायर करने के बाद कोर्ट ने सालों पहले तब जाँचने या परखने का नहीं सोचा और मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

इस मामले में आज जस्टिस अरुण मिश्र की खंडपीठ ने खुली सुनवाई करने के पक्षकारों के वकील राजीव धवन और कपिल सिब्‍बल से सुबह वॉट्सएप कॉल पर बात की और कहा कि वे इस अदालत और जजों की गरिमा को बचाने के लिए इस मामले को यहीं विराम देना चाहते हैं। इसलिए अदालत ने दोनों पक्षों को माफीनामा लिख कर देने को कहा, लेकिन प्रशांत भूषण ने माफी लिखने के बजाय एक वक्‍तव्‍य जारी किया।

इस वक्‍तव्‍य में उन्‍होंने कहा है कि तहलका को दिए इंटरव्‍यू में उन्‍होंने भ्रष्‍टाचार शब्‍द का प्रयोग व्‍यापक संदर्भों में किया था, किसी आर्थिक संदर्भ में नहीं। यदि इसके प्रयोग से किसी को भी या उनके परिवार को दुख पहुंचा है तो वे उस पर खेद जताते हैं। उन्‍हें खेद है कि उनके इंटरव्‍यू को गलत तरीके से समझा गया।

तेजपाल के लिए पैरवी कर रहे सिब्‍बल के मुताबिक तेजपाल ने अपने बयान में सशर्त माफ़ी रखी है। दोपहर में हालांकि कोर्ट दोबारा बैठी और जस्टिस मिश्रा ने कहा कि वे आदेश पारित कर सकते हैं कि न्‍यायपालिका में भ्रष्‍टाचार संबंधी कोई भी बयान कोर्ट की अवमानना है। इस पर धवन का कहना था कि अगर माननीय जज कोई फैसला देना ही चाहते हैं तो दोनों पक्षों को पहले पूरी तरह सुन लें।

कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।

भूषण के समर्थन में बुद्धिजीवियों की ओर से आए ताज़ा बयान में कहा गया है:

दुनिया भर की न्याय प्रणाली में यह मान्यता है कि न्यायाधीशों का आचरण हर वक़्त निडर, निस्वार्थ और निष्पक्ष रहना चाहिए जो सिर्फ और सिर्फ न्याय को बढ़ावा देने लिए बना है। जहाँ कहीं भी ये पाया गया है कि ‘जज’ खुद सत्ता भोग के करीब है या राज करने वालों से रिश्ता रखता है वहाँ इस गैर जिम्मेदारी के वजह से जनता का न्यायपालिका पर से भरोसा उठ जाता है। इससे पूरे न्यायिक प्रणाली से मोहभंग होने का भी खतरा होता है। लोकतांत्रिक ढाँचे का महत्व इसीलिए भी होता है क्योंकि वो ‘कानून के राज’ (Rule of Law) पर निर्भर रहता है और कानून का रक्षा करने वालों से ये उम्मीद की जाती है कि उनका आचरण संविधान के वाक्यों के साथ साथ उसकी मूल भावना और आत्मा से निर्धारित हो।

इसीलिए ऐसे व्यक्ति को जो लगातार न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए और न्यायपालीका के माध्यम से ही आम जनमानस को राहत के साथ साथ उनके कल्याण के लिए कई कदम उठाए, उसके किसी बयान पर उसे दंडित करना किसी भी पैमाने से उचित नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों को तो ऐसी प्रथा स्थापित करनी चाहिए जिसमें वो जनता के द्वारा अपनी कार्यशैली पर चर्चा और आलोचना का स्वागत करे और आपराधिक अवमानना या बदला लेने जैसी कार्यवाही की कोई जगह ना हो।
आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt) जैसे प्रावधानों को अमरीका और यूरोपीय देशों जैसे कई लोकतंत्र ने निर्जीव बना दिया है। भारत में कई कानूनविदों ने ये रेखांकित किया है कि न्यायपालिका को आलोचना दबाने के लिए अवमानना जैसी कार्यवाही का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। स्वर्गीय श्री विनोद बोबडे (वरिष्ठ अधिवक्ता) ने अपनी लेख ‘Scandal and Scandalising'[(2003) 8 SCC Jour 32] में लिखा है, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जिसमें नागरिक इस भय में जीने लगें कि वे जजों और न्यायपालिका की आलोचना नहीं कर सकते वरना उनपर अवमानना जैसी कार्यवाही चला दी जाएगी।”
न्याय और न्यायिक मूल्यों के लिए, न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा बनाए रखने के लिए हम माननीय न्यायधीशों के साथ माननीय मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि वे प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की यह कार्यवाही शुरू करने के फैसले को फिर से परखें और वापस लें। प्रशांत भूषण स्वयं लोकतांत्रिक भारत में वकालत जैसे पेशे में एक आदर्श हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भारतीय न्यायपालिका आत्मपरीक्षण कर किसी ऐसे जागरूक नागरिक और प्रखर वकील को उसके बयान और धारना सार्वजनिक करने के लिए चुप कराने की कोशिश नहीं करेगी।

पूरा बयान नीचे है:

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