रिहाई मंच ने हेट स्पीच को लेकर सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा करने वाले गोरखपुर के सामाजिक कार्यकर्ता परवेज़ परवाज़ को सज़ा सुनाए जाने को सत्ता द्वारा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का एक और उदारहण बताया. मंच ने कहा कि इस मामले में पुलिस ने पहले फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी और जिस दिन ज़मानत की सुनवाई होनी थी उसी रात को परवाज़ गिरफ्तार किया गया था.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ता परवेज़ परवाज़ को सश्रम आजीवन कारावास की सजा का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है. यह अनेक तथ्यों और सबूतों की अनदेखी और नेचुरल जस्टिस के सिद्धान्त का उल्लंघन है. परवेज़ परवाज़ ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसका बदला लेने के लिए ये साजिश की गई. याचिका में कहा गया था कि योगी आदित्यनाथ व अन्य लोगों द्वारा नफरत फैलाने वाले भाषण दिए गए थे जिसके बाद गोरखपुर में दंगा भड़क उठा था.
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ द्वारा मुकदमा वापसी की प्रक्रिया ली गई. परवेज परवाज पर मुकदमा वापस लेने का लगातार दबाव बनाया गया. अन्ततः जून 2018 में परवाज़ के खिलाफ सामूहिक बलात्कार का मामला दर्ज हुआ. पुलिस की जांच में मामला फर्जी पाया और फानल रिपोर्ट लग गई.
गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ को लेकर चल रहे मामले में 30 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट और 13 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई थी. दूसरी तरफ 18 अगस्त 2018 को एसएसपी गोरखपुर ने जून 2018 के सामूहिक बलात्कार मामले की अग्रिम विवेचना का 12 अगस्त 2018 की आख्या पर आदेश कर दिया. सवाल यह है कि मामले में फाइनल रिपोर्ट लगने के बाद 12 अगस्त 2018 की आख्या क्या थी जिसके आधार पर एसएसपी ने पुनः अग्रिम विवेचना महिला थाने की आईओ इस्पेक्टर को दे दिया. बिना विवेचक बनाए गए आखिर कैसे 12 अगस्त को इनवेस्टिगेशन टेक ओवर करके रिपोर्ट समिट कर दी गई. 16 को गवाहों को भी नोटिस जारी कर दिया गया कि वह आकर अपना बयान दर्ज कराएं. इस मामले की इलाहाबाद हाईकोर्ट में पैरवी कर चुके एडवोकेट फरमान अहमद नकवी भी सवाल उठा चुके हैं कि जब तक फाइनल रिपोर्ट रिजेक्ट करके दूसरे आईओ को नहीं दी जाती, तब तक कैसे कोई अन्य विवेचना की जा सकती है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद अपने खिलाफ दर्ज मामले में जज बनकर खुद पर मुकदमा न चलाने का फरमान देते हैं और अब उनके खिलाफ अदालत में खडे़ परवेज परवाज के खिलाफ राजनीतिक द्वेष के तहत कार्रवाई की जा रही है. यह सब कानून के परे जाकर योगी आदित्यनाथ के आदेश पर खुल्लमखुल्ला हो रहा है. वरना एसएसपी बताएं कि कैसे उनके आदेश से पहले नया विवेचक आ जाता है और रिपोर्ट भी दे देता है. इसके पहले भी 2007 के गोरखपुर सांप्रदायिक हिंसा में दर्ज हुए मुकदमें में योगी के साथ सहअभियुक्त और पूर्व विधान परिषद सदस्य वाईडी सिंह ने मुकदमें के वादी परवेज़ परवाज पर दबाव बनाया था. उन्होंने गोरखपुर सीजेएम के सामने याचिका दायर कर परवेज परवाज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने की कोशिश की थी.
योगी आदित्यनाथ के साथ सांप्रदायिक हिंसा के सहआरोपी वाईडी सिंह ने याचिका में आरोप लगाया था कि परवेज परवाज ने 2007 दंगे की योगी के भाषण की जो सीडी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है वह फर्जी है. इसमें उन्होंने परवेज पर साम्प्रदायिक व्यक्ति होने का भी आरोप लगाया था. यह भी कि परवेज ने दंगा किया और कई दुकानों में लूट-पाट की. लेकिन उन्होंने एक भी ऐसी दुकान या दुकान मालिक का नाम नहीं बताया जिसमें उनके मुताबिक परवेज परवाज ने लूटपाट की हो. यहां गौरतलब है कि 2015 में वाईडी सिंह की तरफ से परवेज परवाज के खिलाफ ऐसी ही एक याचिका गोरखपुर सीजेएम के सामने लगाई गई थी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था.
यह सब योगी आदित्यनाथ के ऊपर दर्ज मुकदमों को कमजोर करने की कोशिश है. सुप्रीम कोर्ट में हेट स्पीच मामले की सुनवाई से एक दिन पूर्व एसएसपी गोरखपुर ने अचानक सामूहिक बलात्कार मामले में पुनर्विवेचना का आदेश कर दिया. राजीव ने कहा कि इस पुनर्विवेचना के आधार पर परवेज़ परवाज़ को फर्जी तरीके से फंसाया गया जिसमें पुलिस पहले ही फाइनल रिपोर्ट लगा चुकी थी. परवेज़ परवाज़ ने इस सम्बंध में 2018 में ही कई संवैधानिक और प्रशासनिक संस्थाओं को पत्र भी लिखा था. परवेज परवाज ने यह अंदेशा कई बार जाहिर किया था कि योगी सरकार बनने के बाद वे खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. क्योंकि उन्होंने आदित्यनाथ की द्वेषपूर्ण राजनीति के खिलाफ आवाज उठाई है.
परवेज परवाज की पत्नी भी यह शिकायत कर चुकी हैं कि गोरखपुर पुलिस उन्हें और उनके पुत्रों को परेशान कर रही है. जबकि परिवार के किसी सदस्य पर कोई मुकदमा नहीं है. पुलिस धमका रही है और फर्जी मुकदमे में फंसाने के षड़यंत्र रच रही है. यह सब इसलिए कि परवेज मुकदमे से पीछे हट जाएं. न्याय की इस लड़ाई को तोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ ने परवेज और उनके परिवार के अन्य सदस्यों को तरह-तरह से प्रताड़ित किया. इसी कड़ी में परवेज के खिलाफ थाना राजघाट, जिला गोरखपुर में मुकदमा दर्ज करवाया गया. परवेज के जेल जाने के बाद उनका परिवार इतना आतंकित था कि घर में रहने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. परवेज का एक बेटा विकलांग है, सुनने व बोलने से लाचार है.
मंच महासचिव ने कहा कि मुकदमे की सुनवाई के दौरान परवेज़ परवाज़ ने इंसाफ न मिलने की आशंका जताते हुए सुनवाई किसी दूसरी अदालत में कराने की गुहार भी लगाई थी. फिर भी मुकदमे की सुनवाई उसी अदालत में की जाती रही. परवाज़ की आशंका सच साबित हुई, उन्हें सजा सुना दी गई.
द्वारा-
राजीव यादव
महासचिव, रिहाई मंच
9452800752