13 अगस्त को फिदेल कास्त्रो का 96वाँ जन्मदिन था। इस अवसर पर दिल्ली स्थित क्यूबा दूतावास ने एक छोटा-सा आत्मीय कार्यक्रम रखा था। वक़्त से पहले पहुँच जाने के कारण क्यूबा के भारत में राजदूत कॉमरेड अलेजांद्रो सीमांकास मारिन ने बताया कि वे हाल में केरल होकर आये हैं और उन्हें वो ख़ूबसूरत अनुभव जीवन भर याद रहेगा।
उन्होंने कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत में कॉमरेड डी. राजा एवं अन्य अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हाल में 5 अगस्त को क्यूबा के सबसे बड़े तेल के भण्डार मंतंजास सुपरटैंकर बेस में भीषण आग लगी थी। इसी से क्यूबा की लगभग समूची बिजली का उत्पादन होता है। इस भयंकर दुर्घटना ने क्यूबा के सामने बिजली के संकट के साथ ही रोज़मर्रा के जीवन में भी मुश्किलें पैदा कर दी थीं। कुछ लोगों की इसमें जानें भी गईं जिनमें अग्निशमन दल के लोग, मीडिया के लुछ लोग और एक मंत्री भी शामिल हैं जो घटनास्थल पर पहले विस्फोट के बाद मुआयना करने गए हुए थे, कि तभी दूसरा विस्फोट हुआ।
कॉमरेड अलेजांद्रो ने बताया कि ऐसे मुश्किल वक़्त में हमें दुनिया के अनेक देशों जिनमें भारत और अन्य एशियाई देश भी शामिल हैं, से एकजुटता के हौसले भरे सन्देश प्राप्त हुए और अनेक पड़ोसी लैटिन अमेरिकी देशों ने तुरंत अनेक किस्म की सहायता भी पहुँचाई। उन्होंने क्यूबा की जनता और क्यूबा की सरकार की ओर से इस बात के लिए सबका आभार माना।
इतनी भीषण आग को बुझाने और उस पर काबू पाने में 6-7 दिनों का समय लगा लेकिन आग की भयावहता को देखते हुए यह बहुत जल्दी हो गया।
राजदूत के संक्षिप्त सम्बोधन के बाद फिदेल कास्त्रो के जीवन और उनके कर्म पर केंद्रित दो छोटी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। पहली फिल्म हाल में संयुक्त राज्य अमेरिका में संपन्न हुए अमेरिकाज़ के देशों के नवें सम्मेलन के बारे में थी जिसमें जो बाइडेन ने क्यूबा, वेनेज़ुएला आदि उन देशों के प्रतिनिधियों को बहिष्कृत रखा था जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका के मुताबिक तानाशाही है। इस वजह से मेक्सिको के राष्ट्राध्यक्ष ने भी इस सम्मेलन का बहिष्कार किया था। फिल्म यह बताती है कि किस तरह अमेरिका में लोगों ने इस सम्मेलन के समानांतर एक जनसम्मेलन किया जिसमें क्यूबा, वेनेज़ुएला और तमाम देशों को प्रतिनिधित्व दिया गे और उनके प्रति सम्मान और एकजुटता प्रदर्शित की गयी। यह जनसम्मेलन जनता ने अपने ही प्रयासों से किया था जो युद्ध, प्रतिबन्ध, बेरोज़गारी और साम्राज्यवादी दादागिरी को चुनौती देने का सन्देश लिए हुए था।
दूसरी फ़िल्म थी “फिदेल इज़ फिदेल” जो फिदेल कास्त्रो के जीवन के अलग-अलग कार्यों और उनके व्यक्तित्व के अलग-अलग पहलुओं से परिचित करवाती थी। एक तरफ़ अपने देश के लोगों को क्रन्तिकारी कवि होसे मार्ती की रचनाओं के माध्यम से मानवताबोध से भरना और दूसरी ओर साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ अपनी दहाड़ती निडर आवाज़ से लोगों को निडर बनाना। फिदेल कास्त्रो बीसवीं सदी की एक जीवित किंवदंती थे। उन पर अमेरिका ने ज्ञात सूत्रों के मुताबिक 638 बार जानलेवा हमले करवाए या जान लेने की साज़िशें कीं लेकिन अमेरिका कभी कामयाब नहीं हो सका। फिल्म में दिखाया गया है कि जब वे विदेश जाते थे तो लोग उनसे पूछते थे कि क्या वे 24 घंटे बुलेटप्रूफ जैकेट पहनते हैं? वे शर्ट खोलकर बताते थे कि शर्ट के नीचे कोई जैकेट नहीं, उनका खुला सीना है और अगर कोई जैकेट है तो वो निडरता और नैतिकता का कवच है। पढ़ने के प्रति फिदेल का इतना लगाव था कि वे बच्चों को एक हाथ से टॉफी का डिब्बा भेंट कर के कहते थे कि ये तो ख़त्म हो जाएगी लेकिन अब मैं तुम्हें जो उपहार दे रहा हूँ, ये तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा- और फिर वो होसे मार्ती की बच्चों को प्रिय लगने वाली किताब दिया करते थे। उनका और वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ का बच्चों के साथ घुलना-मिलना और लोगों के साथ मस्ती में नाचना-गाना उन्हें लोगों से गहराई से जोड़े रखता था।
फिल्म में एक जगह फिदेल कहते हैं कि दूसरों की मदद करने से जो ख़ुशी हासिल होती है वो दुनिया का सारा सोना भी नहीं दे सकता। इसी फिल्म में चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र की दुर्घटना के बाद उक्राइनी बच्चों को क्यूबा में बसाने को लेकर भी एक अंश था। जो बच्चे चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में घटी रिसाव की दुर्घटना की वजह से बेघर या अनाथ हुए थे, क्यूबा ने न केवल उनके लिए अपने दरवाज़े खोल दिए थे बल्कि ऐसे बच्चों को लेने और उनका स्वागत करने के लिए ख़ुद क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो हवाई अड्डे पहुँचे थे। उन्होंने एक-एक बच्चे से हाथ मिलाया, उसे स्नेह दिया। एक उक्राइनी बच्चा उनके लिए टोपी लेकर आया था। वो फिदेल के सिर के नाप से छोटी थी लेकिन फिदेल ने किसी तरह उसमें अपना सिर घुसाकर अपनी टोपी उस बच्चे को दे दी। कॉमरेड अलेजांद्रो ने बताया कि आज क्यूबा में कम से कम बीस हज़ार उक्राइनी लोग रहते हैं।
इन फिल्मों को हिंदी में डब करके हिंदी के दर्शकों को दिखाना भी बहुत ज़रूरी है ताकि नयी पीढ़ी के लोग हाड़-माँस के बने फिदेल कास्त्रो, चे गुएवारा, सल्वादोर अलेंदे, शेख मुजीबुर्रहमान आदि जैसे अजूबे करिश्माई व्यक्तित्वों को जान सकें और उनसे ये सीख सकें कि लोग ऐसे करिश्माई पैदा नहीं होते बल्कि असाधारण हालात साधारण लोगों को भी करिश्माई बना देते हैं। क्यूबा आज सिर्फ़ एक देश नहीं है बल्कि सारी दुनिया की चिंता का पर्याय है। एक छोटा-सा देश जो अपने सीमित संसाधनों के बाद भी युद्ध में पीड़ित बच्चों की फ़िक्र करता है, जो ज्वालामुखी फटने पर या भूकंप आने पर या बाढ़ आने पर या महामारी के प्रकोप में अपने डॉक्टर मदद के लिए दुनिया के कोने-कोने में भेजता है। वैसे ही फिदेल किसी एक देश के महानायक नहीं हैं, वो सारी मानवता के उच्चतम मूल्यों के पर्याय हैं। क्यूबा और फिदेल इस तरह मानवता के उत्कृष्टतम मूल्यों के प्रतीक हैं।
इस आत्मीय शाम में वेनेज़ुएला सहित अन्य दूतावासों व अन्य राजनीतिक दलों के भी चुने हुए लोग उपस्थित थे।
जो इन फिल्मों को अंग्रेजी में देखना चाहें, उनके लिए दोनों फिल्मों के लिंक नीचे दिए जा रहे हैं।