इंदौर, 26 अप्रैल, 2020। 22 अप्रैल 2020 को पिछली सदी के इंकलाब के महानायक कॉमरेड लेनिन की डेढ़ सौवीं वर्षगांठ थी। इस मौके पर दिल्ली स्थित जोशी-अधिकारी इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार का संयोजन इंदौर से जया मेहता और विनीत तिवारी ने तथा दिल्ली से विनोद कोष्टी और मनीष श्रीवास्तव ने किया।
वेबिनार का विषय था – लेनिन की याद में: आज की चुनौतियाँ और संभावित विकल्प।
लेनिन को याद करते हुए वेबिनार में लेनिन के व्यक्तित्व, रूसी क्रांति में उनके अप्रतिम योगदान और दुनिया के इंक़लाबियों के लिए प्रस्तुत सिद्धांतों पर चर्चा हुई। चर्चाकारों में प्रमुख थे भारत सरकार के वित्त सचिव और वाणिज्य सचिव तथा योजना आयोग के सदस्य रह चुके एस.पी. शुक्ला, अर्थशास्त्री जया मेहता, पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के महासचिव और वैज्ञानिक अशोक राव, जनवादी तकनीकों के विशेषज्ञ वैज्ञानिक दिनेश अबरोल, लेखक-सम्पादक सौरव बनर्जी, प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी और फिलाडेल्फिया, अमेरिका के सैटरडे फ्री स्कूल के वैज्ञानिक और शोधार्थी अर्चिष्मान राजू व मेघना चंद्रा। अन्य प्रतिभागियों ने भी चर्चा में भाग लिया।
वेबिनार की शुरुआत विनीत तिवारी द्वारा दिए गए लेनिन के एक संक्षिप्त जीवन परिचय से हुई। जिसमें उन्होंने लेनिन के लेनिन बनने की प्रक्रिया को उनके परिवार की पृष्ठभूमि, उनके क्रांतिकारी भाई अलेकज़ान्द्र के फाँसी पर चढ़ाए जाने, प्लेखानोव, बाकुनिन, वेरा जासुलिश, टॉलस्टाय, गोर्की, क्रुप्सकाया आदि के सन्दर्भों के ज़रिए प्रस्तुत किया।
उसके बाद जया मेहता ने लेनिन के साम्राज्यवाद के सिद्धांत को व्याख्यायित करते हुए बताया कि साम्राज्यवाद की अवस्था आने पर दुनिया के सारे देश एक-दूसरे के साथ संपर्क में आ जाते हैं। ऐसे में किसी भी देश के भीतर जब साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष होता है तो उसे समाजवादी क्रांति की ओर लेनिन ने एक कदम आगे बढ़ना माना था। इसलिए दुनिया के सभी उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों को लेनिन ने रूसी क्रांति के साथ नजदीकी से जोड़ा था। उन्होंने साम्राज्यवाद पर दिए गए लेनिन के सिद्धांत को मार्क्सवाद के सिद्धांत में आगे की कड़ी बताया। उन्होंने कहा कि प्रथम विश्वयुद्ध के दौर में जब साम्राज्यवादी ताकतें आपस में लड़ रही थीं तब लेनिन ने अपने देश और दुनिया के सर्वहारा को यह सन्देश दिया कि आपस में लड़ते हुए साम्राज्यवादी ताकतें कमजोर हो जाती हैं और वही सही समय होता है समाजवादी क्रांतिकारी ताकतों के आगे बढ़ने का।
दिनेश अबरोल ने अपनी बात लेनिन के दिए विभिन्न सिद्धांतों के हवाले से की। उन्होंने लेनिन द्वारा अपनायी गई मजदूर-किसान एकता की रणनीति की बात करते हुए आज के भारत के संदर्भ में उसकी आवश्यकता पर जोर दिया। साथ ही उन्होंने इस बात की जरूरत जताई कि क्रांतिकारी पार्टी, क्रांतिकारी कार्यक्रम, जनवादी केन्द्रीयता आदि मसलों पर आज के संदर्भ में विचार-विमर्श को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
अशोक राव ने लेनिन की वैज्ञानिक दूरदृष्टि का उल्लेख किया। लेनिन ने बिजली की महत्त्व को समझते हुए 1914 में कहा था कि कम्युनिज्म का अर्थ देश में मजदूरों का शासन और साथ में पूरे देश का विद्युतीकरण है। उन्होंने बताया कि 1913 में जहाँ रूस में महज 1.9 अरब किलो वॉट ऑवर बिजली का उत्पादन होता था उसे लेनिन की योजनाओं ने क्रांति के बाद तीन दशकों के भीतर ही 1940 तक 48 अरब किलो वॉट ऑवर तक बढ़ा दिया था और गाँव-गाँव तक बिजली पहुँचा दी थी। लेनिन की इस समझ के कारण रूस में आज भी बिजली के बल्ब को “लैम्प ऑफ इल्यीच” कहा जाता है।
इन सभी प्रस्तुतियों के बाद वरिष्ठ राजनीतिक विचारक एस. पी.शुक्ला ने लेनिन के सैद्धांतिक और व्यवहारिक दायरे के भीतर मौजूदा संकट का विश्लेषण किया और संकट में निहित सामाजिक आर्थिक विकल्प की संभावनाओं का एक कार्यक्रम प्रस्तावित किया। उन्होंने कहा कि कोरोना संकट के चलते पैसे और वित्त का जो बुलबुला बना था वह फूट गया है और वास्तविक वस्तुएँ व सेवाएँ जीवन के केंद्र में वापस आने लगे हैं। उस पैसे का क्या इस्तेमाल जब खरीदने के लिए सामान और सेवाएँ ही न हों। इस तरह श्रमिक भी केंद्र में आए हैं जो दरअसल सम्पत्ति के वास्तविक सर्जक होते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के कारण मजबूरी में देशों को अपनी सीमाएँ बन्द करनी पड़ीं। इस अवसर का इस्तेमाल अपने सामाजिक-आर्थिक ढाँचे को दुरुस्त करने में किया जाना चाहिए। बेशक ठप्प पड़ी अर्थव्यवस्था को वापस ज़िंदा करने के लिए कीन्स की तर्ज पर उन अरबों लोगों के हाथों में क्रयशक्ति देनी होगी जो आज इस आर्थिक विध्वंस का सबसे बुरा असर झेल रहे हैं। लेकिन कदम दर कदम ऐसे रास्ते को अपनाना पड़ेगा जो लोगों को वैश्विक वित्तीय पूँजी के जबड़ों से बचाए और अर्थव्यवस्था को जनपक्षीय बनाए। लोगों को इन प्रक्रियाओं में शामिल करने के लिए अनेक नए कदम उठाने होंगे जो वित्तीय भी होंगे और वैधानिक भी। इन उपायों को कोऑपरेटिव और सामूहिक (कलेक्टिव) तरह से लागू करना होगा। अंत में उन्होंने दुनिया के उन देशों के बीच नई एकजुटताएँ बनाने पर जोर दिया जो अपने-अपने देशों में शोषण विहीन समाज की रचना करना चाहते हैं।
एस. पी.शुक्ला के वक्तव्य के बाद हुई परिचर्चा में सैटरडे फ्री स्कूल, फिलाडेल्फिया की शोधार्थी मेघना चन्द्र ने यह सवाल उठाया कि कोविड-19 ने अनेक देशों में ऐसे शासकों को और अधिक शक्तियाँ प्रदान की हैं जो अपनी प्रवत्ति में लोगों के खिलाफ हैं, जैसे ब्राजील में बोलसेनारो, इज़राइल में नेतन्याहू , इंग्लैंड में बोरिस जॉनसन। इससे कैसे निपटा जाएगा और कोविड-19 और जुल्म और दमन के इस दौर में विश्व के शांति आंदोलन की क्या भूमिका होगी।
सौरभ बनर्जी ने कहा कि लेनिन को याद करते हुए क्रांति को केंद्र में रखना जरूरी है वरना ऐसे संकट गुजर जाने के बाद एक दूसरी पूंजीवादी सरकारें ही देश और दुनिया को चलाएँगी और फिर नए संकट को जन्म देंगी। नीना राव ने इस ओर ध्यान खींचा कि लेनिन ने महिलाओं की मुक्ति के लिए अविस्मरणीय योगदान दिया।
इस वेबिनार में दिल्ली, पुणे, लखनऊ, इंदौर, अमरीका, लखनऊ, कोल्हापुर, मुम्बई, झारखंड, रायगढ़ ( छग), गोवा और फ़िलेडैल्फ़िया, अमेरिका सहित अनेक जगहों से करीब 50 लोगों ने भागीदारी की। अंत में विनीत तिवारी ने सभी का धन्यवाद दिया।
रिपोर्टः विनीत तिवारी और सारिका श्रीवास्तव